Bharat ke Mahan Yogi Set of 7 Vols. (भारत के महान योगी 7 भागो मे)
₹637.00
Author | Vishwanath Mukharjee |
Publisher | Vishwavidyalay Prakashan |
Language | Hindi |
Edition | 2019 |
ISBN | 978-81-89498-33-7 |
Pages | 1580 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 7 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | VVP0026 |
Other | Dispatched in 3 days |
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भारत के महान योगी 7 भागो मे (Bharat ke Mahan Yogi Set of 7 Vols.) भारतवर्ष योगियों-सन्तों का देश है। अनादिकाल से न जाने कितने महात्मा परमब्रह्म परमात्मा के दर्शन तथा मोक्ष के लिए साधना करते आ रहे हैं। वास्तविक योगी या संन्यासी वही व्यक्ति होते हैं जो कर्मफल की चिन्ता नहीं करते। गीता में इस सम्बन्ध में श्रीकृष्ण ने कहा है-
अनाश्रितः कर्मफलं कार्य कर्म करोति यः । स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः ॥
किसी देश या जाति की कसौटी उसकी आध्यात्मिकता और बौद्धिक स्वरूप होती है। इस दिशा में भारत कितना समृद्ध है, इसका प्रमाण वेद, उपनिषद्, पुराण और ब्राह्मण ग्रन्थ हैं। इन ग्रन्थों के निर्माता ऋषि-मुनि थे जो हमारे पूर्वज थे। इन ग्रन्थों के निर्माण में उनका कोई स्वार्थ नहीं था। वे मानव जाति के कल्याण के लिए लिखते रहे। महाभारत में व्यासजी ने लिखा है-
“मनुष्यलोके यच्छ्रेयः परं मन्ये युधिष्ठिर ।”
इसी मनुष्य लोक या जीवन में जो कल्याण है, उसे ही हम श्रेष्ठ या अच्छा समझते हैं (वनपर्व १८३/८८)। यही भारतीय संस्कृति की विशेषता है जिसका प्रचार महर्षि अगस्त से लेकर रामतीर्थ स्वामी तक विदेशों में करते रहे। हमने अपना विचार किसी पर लादा नहीं और न बल प्रयोग करके अनुयायी बनने को बाध्य किया। जिन लोगों ने भारतीय संस्कृति को परखा, अपने अनुकूल पाया, वे स्वतः आकृष्ट हुए। ऐसे ही सन्तों का जीवन विवरण लिखने का प्रयास किया है। इसमें कितनी सफलता मिली है, इसका निर्णय पाठक करेंगे।
इस ग्रन्थ को लिखने में अनेक ग्रन्थों से सहायता ली गयी है। केवल यही नहीं, उन सन्तों की जन्मभूमि की यात्रा भी करनी पड़ी है। उनके शिष्यों और भक्तों से अनेक विवरण प्राप्त हुए हैं। ऐसे लोगों के प्रति सश्रद्ध कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। योगियों की जीवनी लिखते समय केवल योग विभूति पर नहीं बल्कि उनके दर्शन तथा विचारों पर भी प्रकाश डाला गया है। योग क्या है, धर्म क्या है, इस सम्बन्ध में उनके विचारों को स्थान देने का प्रयास किया गया है ताकि पाठकों को इस सम्बन्ध में जानकारी मिल जाय।
प्रथम संस्करण समाप्त होने पर यह निश्चय किया गया कि पूर्व प्रकाशित दो पुस्तकों को एक भाग में प्रकाशित किया जाय। इसकी शुरुआत ७-८ भाग से की गयी है। आगे इस श्रृंखला में ३-४ तथा ५-६ भागों को दो खण्डों में प्रकाशित किया जायेगा ताकि पाठकों पर आर्थिक बोझ न पड़े।
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