Subodh Vivah Paddhati (सुबोध विवाह पद्धतिः)
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Author | Dr. Surendra Nath Tripathi |
Publisher | Chaukhambha Sanskrit Pustakalay |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2022 |
ISBN | - |
Pages | 178 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0449 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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सुबोध विवाह पद्धतिः (Subodh Vivah Paddhati) काम समस्त प्राणियों की सहज प्रवृत्ति है। विवाह कामोद्वेग की मर्यादित सामाजिक अभिव्यक्ति है। विवाह से परिवार और परिवार से समाज की संरचना होती है। परिवार सामाजिक व्यवस्थाओं तथा आदर्शों की पाठशाला, प्रयोगशाला और कार्यशाला है। विवाह परिवार की प्राथमिक प्रतिज्ञा है। अतएव इसका असंदिग्ध महत्व स्वतः सिद्ध है। विवाह के द्वारा काम सन्तुष्टि, मनोवैज्ञानिक स्थिरता, आर्थिक सुरक्षा, व्यक्तित्व संवर्धन, सामाजिक विकास तथा सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण हेतु समुचित अवसर उपस्थित होते हैं क्योंकि स्त्री और पुरुष दोनों में परमात्मा ने कुछ विशेषतायें एवं कुछ अपूर्णतायें रखी हैं।
इस सम्मिलन से एक-दूसरे की अपूर्णताओं को अपनी विशेषताओं से पूर्ण करते हैं। वासना का दाम्पत्य जीवन में अत्यन्त तुच्छ और गौड़ स्थान है। मुख्यरूप से विवाह का उद्देश्य दो आत्माओं के मिलने से उत्पन्न होने वाली उस महाशक्ति का निर्माण करना है जो दोनों के लौकिक तथा आध्यात्मिक जीवन के विकास में सहायक सिद्ध हो सके। विवाह शब्द दो शब्दों के योग से बना है-विवाह। ‘वि’ अर्थात् विशेष रूप से ‘वाह’ का अर्थ है वहन करना । विवाह शब्द का शाब्दिक अर्थ है गृहस्थ के भार को विशेष रूप से वहन करना। इस प्रकार जब दो प्राणी अपने अलग अस्तित्व को समाप्त कर धार्मिक संस्कार के माध्यम से प्रेमपूर्वक आकर्षित होकर अपने आत्मा, हृदय और शरीर को एक-दूसरे को अर्पित कर एक सम्मिलित इकाई का निर्माण करते हैं, तब हम सांसारिक भाषा में उसे ‘विवाह’ कहते हैं।
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