Surjan Charit Mahakavyam (सुर्जनचरितमहाकाव्यम)
₹255.00
Author | Dr. Chandradhar Sharma |
Publisher | Chaukhambha Krishnadas Academy |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | - |
ISBN | - |
Pages | 231 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0642 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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सुर्जनचरितमहाकाव्यम (Surjan Charit Mahakavyam) प्रस्तुत ‘सुर्जनचरितमहाकाव्य’ सोलहवीं शताब्दी के बूँदी-नरेश राव सुर्जन पर लिखा गया है। इस महाकाव्य की अमुद्रित आदर्शपुस्तक मुझे सौभाग्य से अपने पूज्य पितामह द्वारा सञ्चित अपने ही पुस्तकालय में मिली। आदर्शपुस्तक की लिपि भी मेरे दिवङ्गत पूज्य पितामह सर्व- तन्त्रस्वतन्त्र पदवाक्यप्रमाणपारावारीण श्रीमान् पण्डितहरिशास्त्रिमहोदय की ही है। बहुत खोज करने पर भी मुझे इस ग्रन्थ की अन्य प्रतिलिपि का पता नहीं लगा। बूंदी और कोटा के राजकीय पुस्तकालयों में भी इसका पता नहीं चला। राव सुर्जन के प्रतापी पुत्र राव भोज ने इस महाकाव्य की अनेक हस्तलिखित प्रतियों का पण्डितों में वितरण किया होगा। मेरे पूर्वजों का, राजपुरोहित होने के कारण, कोटा-बूंदी के राज्यवंश से सदा से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। इस प्रसङ्ग से मेरे पूर्वजों को भी इस काव्य की एक पुस्तक मिली होगी और उस पुस्तक का, प्रकाशन करने के निमित्त, संशोधन करके मेरे पितामह ने यह आदर्शपुस्तक लिखी होगी। मेरे पूज्य पिताश्री का कहना है कि पूज्य पितामह की इस ग्रन्थ को प्रकाशित करने की बड़ी इच्छा थी। अनुकूल अवसर न मिल सकने के कारण पितामह की इच्छा पूर्ण न हो सकी। पूज्य पिता- श्री की आज्ञा पाकर और इस काव्य के गुणगण से प्रभावित होकर मेने इस ग्रन्थरत्न का प्रकाशन आवश्यक समझा। इस सम्बन्ध में मेने श्रीमान् वर्तमान कोटानरेश से प्रार्थना की और अपने पूर्वजों के गौरव का प्रसार करने के निमित्त गुणग्राही और उदार श्रीमान् कोटा-नरेश ने सहर्ष मेरी प्रार्थना स्वीकार करके इस काव्य के सम्पादन, हिन्दी-अनुवाद, प्रकाशन आदि का सम्पूर्ण व्यय प्रदान करने की कृपा की है।
श्रीमान् कोटा-नरेश महिमहेन्द्र महाराव श्री भीमसिंह जी साहब की कृपा के कारण ही यह महाकाव्य आज प्रकाश में जा रहा है। श्रीमान् कोटा- नरेश जैसे दानवीर, गुणग्राही और साहित्य-प्रेमी नरेश विरले ही हैं। मुझे बड़ा हवं है कि इस महाकाव्य को प्रकाश में लाने के लिये ईश्वर ने मुझे निमित्त बनाया ।राजस्थान के कोटा और बूंदी राज्यों का राजवंश अग्निवंशी हाड़ा क्षत्रिय कुल है। हाड़ा वंश चौहानवंशान्तर्गत है। कोटा के राजचिह्न की मुद्रा में ‘अग्नेरपि तेजस्वी’ शब्द रक्खे गये हैं। चन्द बरदाई के ‘पृथ्वीराजरासो’ में लिखा है कि मर्हाव वसिष्ठ ने आबू पर्वत पर यज्ञ करके यज्ञा- ग्निकुण्ड से प्रतिहार, चालुक्य और परमार इन तीन क्षत्रिय वीरों को उत्पन्न किया, किन्तु जब इस पर भी असुरों का उपद्रव शान्त न हो सका तो वसिष्ठ ने ब्रह्मा जी की स्तुति करके वेद मंत्रों से अत्यन्त तीव्र आहुति दी जिससे क्षत्रिय वीर चौहान उत्पन्न हुये जिनके चार हाथ थे और जो तलवार से सुशोभित थे। सूर्यमल्ल कृत ‘वंशभास्कर’ में भी लिखा है कि आबू पर्वत पर वसिष्ठ की यज्ञ-रक्षा के लिये प्रतिहार, चालुक्य, परमार और अत्यन्त तीव्र आहुति द्वारा-चौहान, ये चार क्षत्रिय वीर उत्पन्न किये गये जिनमें चौहान के चार हाथ थे और वे भीषण तलवार लिये हुये थे। उन्हींको चह्वाण, चटुवाण, चुहाण, और चौहाण कहा जाता है।
चन्द बरदाई और सूर्यमल्ल की कथाओं के आधार पर ही ये चारों वंश स्वयं को अग्निवंशी कहने लगे हैं। इन कथाओं को आलंकारिक मान कर जेम्स टॉड, विन्सेन्ट स्मिथ और जेम्स केम्बेल आदि राजस्थान के कोटा और बूंदी राज्यों का राजवंश अग्निवंशी हाड़ा क्षत्रिय कुल है। हाड़ा वंश चौहानवंशान्तर्गत है। कोटा के राजचिह्न की मुद्रा में ‘अग्नेरपि तेजस्वी’ शब्द रक्खे गये हैं। चन्द बरदाई के ‘पृथ्वीराजरासो’ में लिखा है कि मर्हाव वसिष्ठ ने आबू पर्वत पर यज्ञ करके यज्ञा- ग्निकुण्ड से प्रतिहार, चालुक्य और परमार इन तीन क्षत्रिय वीरों को उत्पन्न किया, किन्तु जब इस पर भी असुरों का उपद्रव शान्त न हो सका तो वसिष्ठ ने ब्रह्मा जी की स्तुति करके वेद मंत्रों से अत्यन्त तीव्र आहुति दी जिससे क्षत्रिय वीर चौहान उत्पन्न हुये जिनके चार हाथ थे और जो तलवार से सुशोभित थे। सूर्यमल्ल कृत ‘वंशभास्कर’ में भी लिखा है कि आबू पर्वत पर वसिष्ठ की यज्ञ-रक्षा के लिये प्रतिहार, चालुक्य, परमार और अत्यन्त तीव्र आहुति द्वारा-चौहान, ये चार क्षत्रिय वीर उत्पन्न किये गये जिनमें चौहान के चार हाथ थे और वे भीषण तलवार लिये हुये थे। उन्हींको चह्वाण, चटुवाण, चुहाण, और चौहाण कहा जाता है। चन्द बरदाई और सूर्यमल्ल की कथाओं के आधार पर ही ये चारों वंश स्वयं को अग्निवंशी कहने लगे हैं। इन कथाओं को आलंकारिक मान कर जेम्स टॉड, विन्सेन्ट स्मिथ और जेम्स केम्बेल आदि।
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