Tajika Padmakosha (ताजिकपद्मकोश:)
₹36.00
Author | Abhay Katyayan |
Publisher | Chaukhamba Surbharati Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2005 |
ISBN | - |
Pages | 90 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSP0946 |
Other | Dispatched in 3 days |
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ताजिकपद्मकोश: (Tajika Padmakosha) इस ग्रन्थ का नाम ‘ताजिक पद्मकोश’ है। इसके लेखक का नाम ज्ञात नहीं है, क्योंकि पूरे ग्रन्थ में ग्रन्यकर्त्ता ने कहीं भी न तो अपना नाम दिया है और न ही कहीं पर रचनाकाल का उल्लेख किया है। ज्योतिष के किसी अन्य ग्रन्थ में भी इस ग्रन्थ का नाम देखने में नहीं आया है; किन्तु ताजिक नीलकण्ठी के एक हिन्दी टीकाकार ने अपनी टीका में अनेक स्थानों पर इस ग्रन्थ के श्लोक उद्धृत किये हैं। इससे इस ग्रन्थ के महत्त्व का पता चलता है। हाँ; इतना अवश्य है कि इस ग्रन्थ का नाम ‘ताजिक पद्मकोश’ ही है; जैसा कि इस ग्रन्थ के प्रथम श्लोक में लिखा भी है-
गणेशं हरं पद्मयोनिश्च नत्वा हरिं भारतीं खेचरान्सूर्यपूर्वान् ।
विलोक्याऽखिलं ताजिकं पद्मकोशं प्रवक्ष्ये फलं वर्षलग्ने ग्रहाणाम् ।।
इस ग्रन्थ की रचना का आधार यवनादि शास्त्रों को माना गया है; जिसकी घोषणा ग्रन्थ के दूसरे श्लोक में की गयी है –
अथ प्रवक्ष्ये यवनादिशास्त्रात् तन्वादिकानां रविपूर्वकाणाम् ।
सामान्यतो भावफलं खगानां कौतूहलात्खेटविदां हिताय ।।
इस प्रकार द्वितीय श्लोक में की गयी घोषणा के अनुसार इस ग्रन्थ में सूर्यादि ग्रहों तथा मुन्या की द्वादश भावों में स्थिति के अनुसार फलादेश लिखा गया है। सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु तथा मुन्या- इन दस ग्रहों का फल लग्न से बारहवें भावपर्यन्त लिखा गया है। ग्रन्थ के प्रारम्भ में दो श्लोक मंगलाचरण के हैं; तत्पश्चात् बारह-बारह श्लोकों में प्रत्येक ग्रह का भावफल लिखने से मंगलाचरणसहित श्लोकों की संख्या १०×१२-१२०+२= कुल १२२ श्लोकों में ग्रन्य की समाप्ति है।
ग्रन्थ की रचना-शैली मधुर, प्रौढ़, प्राञ्जल, सरल तथा सौष्ठवयुक्त है। ग्रन्थ में वर्णित फलादेश अनुभव की कसौटी पर खरा उतरता है। जिस प्रकार जातकग्रन्थों में श्री नारायण भट्टकृत ग्रन्थ ‘चमत्कारचिन्तामणि’ में मात्र ११२ श्लोकों में नव ग्रहों के भावफल को गागर में सागर की भाँति भरा गया है, उसी भाँति इस ग्रन्थ में भी ताजिक शास्त्र के अनुसार ग्रहों के भावफल को प्रयत्नपूर्वक समाविष्ट किया गया है। दोनों ग्रन्थों में अन्तर केवल एक ही बात का दिखाई पड़ता है कि जहाँ चमत्कारचिन्तामणि में केवल एक ही प्रकार के छन्द ‘भुजङ्गप्रयात’ का प्रयोग किया गया है, वहीं ताजिकपद्मकोश में विविध छन्दों का प्रयोग हुआ है।
इस ग्रन्थ की लोकप्रियता का पता तो इस बात से ही चलता है कि दीनदारपुरा (मुरादाबाद) निवासी पं० कन्हैयालाल मिश्र ने लगभग एक शताब्दी पूर्व ताजिकसंग्रह नामक लघु ग्रन्थ लिखा था, जिसमें इस ग्रन्थ के १२३ श्लोकों को उद्धृत किया गया है।
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