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Tarka Sangrah (तर्कसंग्रह:)

191.00

Author Govind Acharya
Publisher Chaukhamba Surbharti Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2023
ISBN 978-93-83721-62-7
Pages 406
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSP0950
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Description

तर्कसंग्रह: (Tarka Sangrah) तर्कसंग्रह न्यायशास्त्र और वैशेषिकशास्त्र का प्रारम्भिक ग्रन्थ है अथवा यूँ कहा जाय कि न्यायशास्त्र और वैशेषिकशास्त्र के दर्शनों व सिद्धान्तों का मिश्रित निरूपण तर्कसंग्रह में किया गया है, जिससे उक्त दोनों शास्त्रों में प्रवेश पाने में सरलता हो सके। इसके प्रणेता विद्वान् अन्नम्भट्ट हैं। ये दाक्षिणात्य ब्राह्मण थे। इन्होंने तर्कसंग्रह, उसकी टीका तर्कसंग्रहदीपिका, व्याकरण में महाभाष्य-प्रदीपोद्योतन और अष्टाध्यायी मिताक्षरा एवं वेदान्त में ब्रह्मसूत्रव्याख्या आदि ग्रन्थ लिखें हैं। इन्होंने तर्कसंग्रह में प्रमाणों के विषय में न्यायदर्शन का और प्रमेयों के विषय में वैशेषिकदर्शन का अनुसरण किया है। अतः तर्कसंग्रह को उभयशास्त्र का प्रवेश ग्रन्थ माना जाता है। यद्यपि तर्कसंग्रह सूत्ररूप में नहीं है किन्तु जिस तरह से यह बनाया गया है, वह सूत्रात्मक ही लगता है। सूत्र का तात्पर्य यह है कि कम शब्दों में अधिक बात को कहना। इस कार्य में अन्नम्भट्ट पूर्णतया सफल हैं। यह ग्रन्थ संक्षिप्त होते हुये भी सम्यक्तया गूढार्थ-प्रकाशन करता है।

इस ग्रन्थ में मंगलाचरण के बाद द्रव्यादि, सप्त पदार्थों का उल्लेख किया गया है। उद्देशप्रकरण में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय और अभाव ये ही सात पदार्थ बताये गये हैं। प्रथम पदार्थ द्रव्य के नौ भेद हैं- पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, दिक्, आत्मा और मन। द्वितीय द्रव्य गुण के चौबीस भेद हैं- रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, गुरुत्व, स्नेह, शब्द, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म और संस्कार। तृतीय पदार्थ कर्म के तीन भेद हैं- उत्क्षेपण, अपक्षेपण, आकुञ्चन, प्रसारण और गमन। चतुर्थ पदार्थ सामान्य के दो भेद हैं- पर और अपर। पंचम पदार्थ विशेष के अनन्त भेद हैं। षष्ठ पदार्थ समवाय के कोई भेद नहीं हैं। सप्तम पदार्थ अभाव के चार भेद हैं- प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, अत्यन्ताभाव और अन्योन्याभाव।

नामपूर्वक वस्तुओं को बताना उद्देश कहलाता है। इस तरह यह उद्देशप्रकरण बताया गया। इसके बाद लक्षणप्रकरण प्रारम्भ किया गया है। लक्षणप्रकरण में ही परीक्षा भी आ जाती है। अतः अलग से परीक्षाप्रकरण नहीं है। लक्षणप्रकरण में प्रथम पदार्थ द्रव्य के भेद पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, दिक्, आत्मा, मन का निरूपण करके गुणनिरूपण किया गया है। उसके बाद गुणनिरूपण में रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, गुरुत्व, स्नेह, शब्द का निरूपण करके बुद्धि का निरूपण करते समय ही बीच में बुद्धि के भेद स्मृति और अनुभवों का निरूपण हुआ है। अनुभव को दो प्रकार का बताया गया है- यथार्थानुभव और अयथार्थानुभव। यथार्थानुभव के चार भेद हैं- प्रत्यक्षात्मक यर्थार्थानुभव अनुमित्यात्मक यथार्थानुभव, उपमित्यात्मक यथार्थानुभव और शाब्दात्मक यथार्थानुभव। उक्त चारों यथार्थानुभव के करण भी क्रमशः चार ही बताये गये हैं- प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द।

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