Vachan (वचन)
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Author | Dr. Bhagwan Tiwari |
Publisher | Bharatiya Vidya Sansthan |
Language | Hindi |
Edition | 1st edition, 2002 |
ISBN | 81-7415-37-1 |
Pages | 184 |
Cover | Paper Back |
Size | 12 x 2 x 19 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | BVS0088 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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वचन (Vachan) कहानी समकालीन परिवेश की संगतियों-विसंगतियों के यथार्थ रूप को बिम्बित करने की एक सशक्त विधा है। बहुत दिनों से मेरे मन में कहानी लिखने की लालसा उफनती रही। पर मन में इच्छा उत्पन्न होना एक बात है और उसे रूपायित करना अलग बात है। जब तक संकल्प दृढ़ नहीं होता तब तक कोई सपना पूरा नहीं होता है। लगन और दृढ़ता इच्छा और रूप के बीब की कड़ी है। आस-पास की घटनाओं को देखकर मन आन्दोलित होता रहा। एक दिन अचानक पता नहीं, किसकी प्रेरणा हुई, कागज और कलम लेकर मैं कुर्सी पर बैठ गया और कहानी लिखने में जुट गया। कहानी लिखने का जो सिलसिला एक बार शुरू हुआ, वह अनवरत चलता रहा। लेखक अपने समय का प्रहरी भी होता है और ब्रह्मा भी। अपने इर्द-गिर्द भ्रष्टाचार, अत्याचार, न्याय-अन्याय तथा शोषण को देखकर कोई भी कहानीलेखक चुप नहीं बैठ सकता, क्योंकि उसके अन्तःकरण में बवंडर चलने लगता है और तब तक झकझोरता रहता है जब तक वह अपने आन्तरिक भावों को शब्द-वित्र के माध्यम से अभिव्यक्त नहीं कर देता।
आज जिस युग में हम जी रहे हैं, वह राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक तथा वैयक्तिक विद्रूपताओं से भरा पड़ा है। राजनीतिक सत्ता देश की नियामक शक्ति होती है। यदि वही डगमग हो जाय, भ्रष्ट हो जाय तो आम जनता का जीना दूभर हो जाता है। आज की व्यवस्था में अर्थ प्रधान हो गया है और नैतिकता गौण। आज की व्यवस्था पर शक्तिशाली वर्ग का वर्चस्व कायम हो गया है। प्रजातंत्र का स्वभाव ही ऐसा होता है। आजादी के कई दशक बीत गये। मुट्ठी भर लोग जहाँ चैन की बाँसुरी बजा रहे हैं, वहाँ आम आदमी अभावों, असफलताओं, विवशताओं तथा गरीबी से घिरा छटपटा रहा है। समाज में चारो तरफ वैषम्य ही वैषम्य दिखलाई पड़ रहा है। यह विषमता ईश्वर की नहीं, मनुष्य की देन है। मजबूर व्यक्ति मेहनत कर रहा है औरधनवान उसका शोषण। समाज की इस विषमता तथा मजदूरों और नारी-शोषण की समस्याओं को मैंने अपनी कहानियों का विषय बनाया है।
आज का आदमी अभिमन्यु की तरह अनेक प्रकार के संकटों से घिर गया है। उसके सामने एक तरफ समाज की जड़ता है और दूसरी ओर जीवन-संपर्व। आज की युवा पीढ़ी को दोनों से लड़ना है। एक को तोड़ना है और दूसरे से जूझना है। चड़ी भारी चुनौती है- नयी पीढ़ी के सामने। खुशी है कि आज की नयी पीढ़ी अपने कार्य में जुट गयी है। पर, सवाल यह उठता है कि क्या सारी युवा-शक्ति पुरानी रूढ़ियों, मान्यताओं और मर्यादाओं को तोड़ने की प्रक्रिया में संलग्न हो गयी है? नहीं, यह संभव नहीं है। सभी लव-कुश और बभ्रुवाहन के अनुगामी नहीं बन सकते। युवक और युवतियों के सप्रयास और सूझ-बूझ से समाज की पुरानी रुड़ियों और जड़ताएँ चरमराकर टूट रही है। जीवन के मूल्यों उसको विनाम पात्रों तक स्वीक आव बदली हुयी परिस्थितियों से उत्पन्न सन्दर्भों को सही ढंग से अपनी कहानियों में प्रस्तुत करना एक लेखक का फर्ज है, क्योंकि कहानी-लेखक का सम्बन्ध जीवन से होता है। अपने आस-पास की घटनाओं और जीवन-प्रसंगों को रूप देकर कहानी-लेखक उसमें प्राण-संचार करता है।
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