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Vakrokti Jivitam (वक्रोक्तिजीवितम् प्रथमोन्मेषः)

136.00

Author Parmeshwar Deen Pandey
Publisher Chaukhamba Surbharati Prakashan
Language Sanskrit Text and Hindi Translation
Edition 2023
ISBN -
Pages 238
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSP0979
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Description

वक्रोक्तिजीवितम् प्रथमोन्मेषः (Vakrokti Jivitam) प्रस्तुत शास्त्रीय-प्रन्थ ‘वक्रोक्ति-जीवितम्’ कविवर आचार्य राजानक कुन्तक की एकमात्र उपलब्ध अपूर्ण अर्थात् खण्डित रचना है जिसका संस्कृत-साहित्य-क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान है। यही कारण है कि इसका पठन-पाठन विभिन्न विश्व-विद्यालयों की संस्कृत-स्नातक एवं स्नातकोत्तर परीक्षाओं में अनिवार्य रूप से किया जाता है। इसके तीन भाग हैं- १ कारिका, २ वृत्ति तथा ३ उदाहरण। सम्भवतः आचार्य कुन्तक ने प्रथम कारिकाएँ लिखकर स्वयं ही उन पर वृत्ति एवम् उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। ऐसे उत्कृष्ट प्रन्थ के प्रथम तथा द्वितीय उन्मेष का सर्वप्रथम सम्पादन डा० सुशीलकुमार डे ने सन् १९२३ में किया। पुनः उन्होंने ही १९२८ तया १९६१ में इसके द्वितीय एवं तृतीय संस्करण प्रकाशित कराये, जिनमें पूर्व प्रकाशित ग्रन्य-भाग के आगे तृतीय उन्मेष का कुछ ही भाग बढ़ाया जा सका। शेष भाग का केवल संक्षिप्त विवेचन ही प्रस्तुत किया गया। इसके अतिरिक्त डा० नगेन्द्र ने आचार्य विश्वेश्वर सिद्धान्तशिरोमणि की हिन्दी व्याख्या तथा अपनी भूमिकायुक्त ‘वक्रोक्तिजीवित’ का सम्पावन सन् १९५५ में किया; तदनन्तर ‘प्रकाश’ हिन्दी व्याख्यायुक्त श्रीराधेश्याम मिश्र एम० ए० द्वारा इसका सम्पादन किया गया।

प्रकृत शास्त्रीय ग्रन्थ ‘वक्रोक्तिजीवितम्’ कविवर आचार्य राजानक कुन्तक की एक मात्र उपलब्ध अपूर्ण अर्थात् खण्डित रचना है। यद्यपि अपने पूर्ववर्ती महाकवियों की परम्परा के अनुसार ही आचार्य कुन्तक ने भी ग्रन्थारम्भ में आत्मवृत्तविषयक कोई भी निर्देश नहीं दिया है। सम्भव है कि ग्रन्थ की परि-समाप्ति पर उन्होंने आत्मविषयक कुछ लिखा हो। किन्तु ग्रन्थ का अन्तिम भाग अद्यावधि अप्राप्य होने के कारण तद् विषयक कुछ भी पता नहीं चलता है।

प्रथम उन्मेष आचार्य कुन्तक के प्रकृत ग्रन्थ में कुल चार उन्मेष हैं जिनमें चतुर्थ उन्मेष अपूर्ण ही रह जाता है। कवि ग्रन्थ की निर्विघ्न परिसमाप्ति हेतु शक्ति के परि- स्पन्द मात्र उपकरण वाले, त्रिभुवन में विचित्र कर्म करने वाले परमतत्त्वशिव की वन्दना करता है तदनन्तर कवीन्द्र-वक्त्रेन्दु-लास्यमन्दिर-नत्तंकी, सुभाषित-विलास रूप अभिनयोज्ज्वला वाग्देवी को प्रणाम कर लोकोत्तरचमत्कारकारि-वैचित्र्यसिद्धि के लिए इस काव्य विषयक अलङ्कार ग्रन्थ की रचना की घोषणा करता है। अलङ्कार ग्रन्थ एवम् अलङ्कार्य काव्य के लक्षणों तथा प्रयोजनों का वर्णन कर काव्य के प्राण-भूत शब्द तथा अर्थ की तर्कयुक्त विवेचना की जाती है।

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