Loading...
Get FREE Surprise gift on the purchase of Rs. 2000/- and above.

Vana Durga (वनदुर्गा)

35.00

Author Om Prakash Mishr Shastri
Publisher Shiv Sanskrit Sansthan Varanasi
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2014
ISBN -
Pages 64
Cover Paper Back
Size 11 x 1 x 13 (l x w x h)
Weight
Item Code SSSV0012
Other Dispatched In 1 - 3 Days

 

10 in stock (can be backordered)

Compare

Description

वनदुर्गा (Vana Durga) इस चराचर जगत के समस्त प्राणी सुख-समृद्धि, समस्त विघ्नबाधाओं तथा अनिष्ट ग्रहों की शान्ति एवं भूत-प्रेतादिक ब्रह्मशान्ति के लिए सतत् प्रयत्नशील है। हमारे वन्दनीय स्मरणीय मनीषियों ने अनेक सिद्ध प्रयोगों के अनुभवों को हम तक पहुँचाने का अथक प्रयास किया है।

प्रस्तुत वनदुर्गा की प्रति मुझे अपने पिता (पं० रामावतार मिश्र) के पितामह (पं० सन्तशरण मिश्र) के पितामह (पं० शम्भूनाथमिश्र, मझौलीराज्य देवरिया, जो तत्कालीन मझौलीराज्य नरेश के सम्मानित आचार्य थे) द्वारा हस्तलिखित प्रति मुझे सन् १९७० में घरेलु पुस्तकालय में जीर्णशीर्ण स्थिति में प्राप्त हुयी। उस समय मुझे इसके महत्त्व के सन्दर्भ विशेष ज्ञान नहीं था फिर भी पढ़ने में रुचि थी। ग्रन्थ के एक-एक पन्ने को संजोकर रख लिया। समय बीतता गया अकस्मात् इस ग्रन्थ के प्रति मेरी जिज्ञासा प्रकट हुयी तो मैंने सन् १९८० में अपने पितामह (पं० जगन्नाथ मिश्र) के अनुज (आचार्य पं० शिवदत्त मिश्रशास्त्री जिन्होंने देववाणी की सेवा में अपने जीवन को अर्पण करते हुए शताधिक ग्रन्थों का सम्पादन किया है) के सम्मुख रखा तो उन्होंने मुझे ग्रन्थ की उपयोगिता का ज्ञान कराया तथा बताया कि इसके साधना का क्या फल है और इस ग्रन्थ से साधकजनों का बड़ा उपकार होगा यह प्रकाशित कराने योग्य है। मैंने उन्हीं के सान्निध्य में उक्त विषय की विधा का ज्ञान करते हुए जीर्ण-शीर्ण पुस्तक को उसी रूप में शुद्धि-अशुद्धि को देखते हुए कापी कर लिया।

विद्वानों द्वारा इस-वनदुर्गा की माँग बहुत दिनों से थी। प्रायः साधकजनों द्वारा ग्रन्थ को प्रकाशित करने का दबाव बनता ही जा रहा था, आस्तीकजनों को सुलभ कराने की दृष्टि से प्रकाशित किया गया है। इसके मुद्रण, छपाई, कागज आदि पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस ग्रन्थ में मेरा अपना कुछ भी नहीं है। पूर्वजों के धरोहर को संजोकर जीवन्त करना ही ग्रन्थ की उपलब्धता का परिचायक है। साथ ही इसमें शूलिनीदुर्गामन्त्र, रुद्रचण्डीस्तोत्र तथा परमदेवीसूक्त का समावेश कर उपयोगी बनाने का प्रयास है। साधकजन इससे लाभान्वित हों यही मां-गुरु से प्रार्थना है। साथ ही प्रार्थना है कि कोई त्रुटि दिखाई दे तो अवश्य सूचित करें, जिसे अगले संस्करण में सुधार किया जा सके। गुरु अथवा अधिकारी से दिशा-निर्देश प्राप्त कर ही प्रयोग करें।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Vana Durga (वनदुर्गा)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Navigation
×