Varanasi Ek Paramparagat Nagar (वाराणसी एक परम्परागत नगर)
₹245.00
Author | Rambachan Singh |
Publisher | Bharatiya Vidya |
Language | Hindi |
Edition | 2023 |
ISBN | 978-81-93539-57-6 |
Pages | 272 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0231 |
Other | Dispatched in 3 days |
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वाराणसी एक परम्परागत नगर (Varanasi Ek Paramparagat Nagar) वाराणसी विश्व के प्राचीनतम सांस्कृतिक नगरों में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। हमारे देश के ऋषियों, पौराणिकों एवं साहित्यकारों ने काशी के सम्बन्ध में बहुत कुछ लिखा है। इस नगर को हम प्राचीन भारतीय संस्कृति का प्रतीक तथा विभिन्न प्रादेशिक संस्कृतियों का संगम कह सकते हैं। ऐसे नगर के उलझे हुए जीवन का समाज-शास्त्रीय अध्ययन स्वयं में एक चुनौती है।
वाराणसी नगर का सामाजिक परिस्थितकीय अध्ययन शीर्षक शोध प्रबन्ध काशी विद्यापीठ की पी० एच० डी० उपाधि के निमित्त प्रस्तुत किया गया था; जिस पर सन् १९७० ई० में उक्त उपाधि प्राप्त हुई। उसो शोध प्रबन्ध को ‘वाराणसी’ एक परम्परागत नगर, शीर्षक से प्रकाशित किया गया है। पुस्तक के अन्त का परिशिष्ट शोध प्रबन्ध के पश्चात जोड़ा गया है।
शास्त्रों में वर्णित गाथाओं एवम् प्रशस्तियों के अवलोकन से पता चलता है कि काशी विश्व के प्राचीनतम नगरों में अप्रतिम है। चाहे काल चक्र के वशीभूत उसका इतिहास समय-समय पर अन्धकार के गर्त में भले ही डूब गया हो किन्तु उसके अस्तित्व पर किसी प्रकार की आँच नहीं आने पायी है।
विद्वानों ने काशी के आध्यात्मिक, आधिदैविक एवम् आधिभौतिक स्वरूपों की चर्चा की है। इनमें प्रथम दो का ज्ञान तो मनन एवम् चिन्तन द्वारा महापुरुषों के लिए ही सम्भव है किन्तु तृतीय का बोध भौतिक जगत के सम्यक अनुभावात्मक एवम् व्यवहारिक ज्ञान के द्वारा ही हो सकता है। मेरा प्रयत्न इसी प्रकार का कहा जा सकता है।
प्रश्न उठता है कि काशी को समझने के लिए निगमन या आगमन पथ को अपनाया जाय अर्थात् इसके आध्यात्मिक स्वरूप का प्रत्यक्षेपण भौतिक पर किया जाय या भौतिक का प्रत्यक्षेपण आध्यात्मिक पर। मैंने वाराणसी के आध्यात्मिक स्वरूप को यहाँ की परिस्थितिकीय संरचना के अन्तर्गत देखने का प्रयत्न किया है। यहाँ की मिट्टी, जल और आकाश सभी अपना भिन्न अर्थ और स्थान रखते हैं। यहाँ का प्रत्येक स्थल किसी न किसी देवी-देवता से सम्बद्ध है और आज भी श्रद्धालुजन इसका सामीप्य प्राप्त कर स्वयं को धन्य समझते हैं।
यह प्रबन्ध मेरे जैसे सीमित साधन वाले व्यक्ति के व्यक्तिगत अनुसन्धान का फल है किन्तु मैं अपने पूज्य गुरुवर डा० हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव का आभार शब्दों द्वारा प्रगट नहीं कर सकता जिनके सफल निर्देशन एवम् मार्गदर्शन के परिणाम स्वरूप मुझे इस कार्य में सफलता मिली तथा पाठकों के सम्मुख वाराणसी के सम्बन्ध में कुछ नवीन तथ्यों को प्रस्तुत करने में सफल हुआ। मेरे आग्रह पर उन्होंने इस पुस्तक के प्राक्कथन को लिखकर मुझपर जो अनुग्रह किया है वह वर्णनातीत है।
वाराणसी नगर ही नहीं वरन् एक संप्रत्यय भी है। इसका वास्तविक महत्व इसके मिथकीय बिम्बों में है। परम्परा के अनुसार यह नगर भगवान शंकर की राजधानी है। शंकर या शिव विश्व का निर्माण, पालन एवं संहार करने वाला देवता है। सप्ताह का प्रत्येक दिन और दिन का प्रत्येक पहर विशेष देवी-देवता के दर्शन-पूजन के लिए नियत हैं। हिन्दू-सामुदायिक जीवन निरंतर दैवी संरक्षण में चलता रहता है। इन प्रतीकों में भौतिक या अभौतिक का अन्तर मिट जाता है। जैसे गंगा नदी की अपनी चेतना अलग ही है। ‘काशी’ ईश्वर का आनित्य तत्व है। प्रलय में सब कुछ मिट जाता है। केवल ईश्वर का दिव्य अंश ‘काशी’ शेष रह जाता है। इस सूक्ष्म अनित्य तत्व का भौतिक प्रतीक काशी नगर है। प्रतीकात्मक भाषा में विश्व के स्थायित्व में यही स्थान स्थायी है। इस तरह वाराणसी नगर आस्थावानों की अन्तिम ‘आशा’ है। यह मोक्ष प्राप्त करने का स्थान है। वेदों के संकेतों से पता चलता है कि पंचगंगा घाट पर मध्य- मेश्वर मन्दिर और देहली विनायक के बीच का स्थान ‘काशी’ है। इस क्षेत्र में रहने और मरने वाले मोक्ष प्राप्त करते हैं। विश्वेश्वर के आस-पास दो सौ धनुष का क्षेत्र जगदीश का वास्तविक स्थान है। यही मोक्ष प्राप्ति का वास्तविक क्षेत्र है। इस नगर से सम्बन्धित अन्य सम्प्रत्ययों में यह आत्म प्रकाशित स्थान सत्यं, शिवं, सुन्दरम् का स्थान, कर्मो के फल से मुक्त होने का स्थान समझा गया है। काशी में मरनेवाला व्यक्ति आवागमन के चक्र से छूट जाता है। भौतिक स्थानों एवं वस्तुओं पर प्रत्यक्षेपित प्रती- कात्मक अर्थबोध से वाराणसी नगर की संरचना निर्मित है। आमूर्त संप्रत्ययों एवं विचारों का आकारगत रूप काशी हैं। योग को सम्पूर्ण प्रक्रिया का भौतिक रूपान्तरण काशी है।
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