Vedantsar (वेदान्तसार)
₹160.00
Author | Dr. Kapil Gautam |
Publisher | Rajasthan Hindi Granth Academy |
Language | Hindi |
Edition | 1st edition, 2021 |
ISBN | 978-93-90571-82-6 |
Pages | 200 |
Cover | Paper Back |
Size | 13 x 1 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RHGA0117 |
Other | Book Dispatch in 1-3 Days |
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CompareDescription
वेदान्तसार (Vedantsar) भारतीय दर्शन में वेदान्त तथा वेदान्तों में भी अद्वैत वेदान्त एक प्रमुख दर्शन है। भारत में दर्शनशास्त्र की परम्परा में सूत्रों पर भाष्य तथा भाष्यों पर टीकाएँ लिखी गयी हैं। इस प्रकार दर्शनपरम्परा विकसित हुई है। सूत्र, भाष्य एवं टीका में निबद्ध सम्पूर्ण दर्शन सिद्धान्त को शास्त्रीय गाम्भीर्य एवं तर्क-वितर्क के ऊहापोह से भिन्न समग्र रूप में तथा सरलता से समझने के लिए जिन ग्रन्थों का प्रणयन हुआ, उन्हें कहा गया – प्रकरण ग्रन्थ। अतः ब्रह्मसूत्र, शांकरभाष्य तथा भामती विवरणादि टीकाओं से पोषित अद्वैत वेदान्तशास्त्र को समग्र रूप में तथा सुगम भाषा में समझने के लिए आचार्य सदानन्दः ने वेदान्तसार नामक प्रकरण ग्रन्थ की रचना की है। प्रकरण ग्रन्थ की परिभाषा इस प्रकार दी गयी है
शास्त्रैकदेशसम्बद्ध शास्त्रकार्यान्तरे स्थितम्।
आहुः प्रकरणं नाम ग्रन्थभेदं विपश्चितः॥
शास्त्र के एक भाग से सम्बद्ध तथा किन्तु अपेक्षानुसार शास्त्र के कार्यान्तर में स्थित (ग्रन्थ) अर्थात् उस शास्त्र के अतिरिक्त अन्य शास्त्रों के उपयोगी अंशों को ग्रहण करने वाले ग्रन्थ को विद्वान् लोग प्रकरण नामक ग्रन्थ का भेद कहते हैं।
जिस प्रकार व्याकरण को समझने के लिए लघुसिद्धान्तकौमुदी के अध्ययन की अपेक्षा रहती है उसी प्रकार अद्वैत वेदान्त के विद्यार्थी के लिए वेदान्तसार का अध्ययन अपेक्षित है। अद्वैत-वेदान्त के सिद्धान्तों का एक समन्वित, संक्षिप्त तथा सरल रूप हमें वेदान्तसार में प्राप्त होता है। सदानन्द योगीन्द्र कृत वेदान्तसार देश के कई विश्वविद्यालयों के संस्कृत विषय के स्नातक एवं स्नाकोत्तर स्तर तथा नेट तथा स्लेट सस्कृत विषय कोड- 25 के पाठ्यक्रम में निर्धारित है। सदानन्द योगीन्द्र कृत वेदान्तसार के कतिपय अनुवाद हिन्दी तथा आंग्ल भाषाओं में हैं परन्तु जहाँ हिन्दीभाषा के अनुवाद शास्त्रीय गाम्भीर्य के दुरुह एवं जटिल है वहीं दूसरी ओर आंग्ल अनुवाद हिन्दी के विद्यार्थी के लिए कठिन प्रतीत होते हैं। वेदान्तसार पर यद्यपि अनेक स्वतन्त्र ग्रन्थ हैं परन्तु इन पुस्तकों में अद्वैत वेदान्त के सिद्धान्तों पर लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो सम्भवतः आचार्य सदानन्द के मूल भाव को तार्किक रूप में स्पष्टतया अभिव्यक्त कर पाने में समर्थ प्रतीत नहीं होते।
अतः वेदान्तसार ग्रन्थ को यहाँ सरल हिन्दी भाषा में अनुवाद ‘वेदान्तप्रभा’ नामक व्याख्या के द्वारा विशेष प्रतिपादन सहित पाठ्यपुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। मूल पदों के स्पष्टीकरण हेतु वेदान्त प्रभा नामक हिन्दी व्याख्या में वेदान्तसार ग्रन्थ की प्रमुख टीकाओं-सुबोधिनी, विद्वन्मनोरंजिनी, बालबोधिनी की सहायता ली गई है। विषय का प्रतिपादन शास्त्र की गम्भीरता तथा तर्क-वितर्क की गूढ़ता से बचते हुए सरल तथा सुगम हिन्दी भाषा में किया गया है। अतः यह पुस्तक विद्यार्थी एवं अद्वैत वेदान्त के जिज्ञासु के लिए समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगी, ऐसी आशा है।
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