Vikramank Dev Charitam (विक्रमाङ्कदेवचरितम प्रथमः सर्ग)
₹41.00
Author | Dr. Gjananshastri Muslgawkar |
Publisher | Chaukhambha Sanskrit Series Office |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2010 |
ISBN | - |
Pages | 80 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0622 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
विक्रमाङ्कदेवचरितम प्रथमः सर्ग (Vikramank Dev Charitam) आधुनिक विद्वानों ने पहले हर्षचरित और उसके बाद विक्रमांकदेवचरित को खोज निकाला। उसके बाद तो अनेक ऐतिहासिक ग्रंथ प्रकाश में आये, किन्तु अभी तक उपलब्ध पद्यात्मक चरित काव्यों में विक्रमांकदेवचरित का अपना अलग वैशिष्ट्य है। ‘विक्रमांकदेवचरित’ को प्रकाश में लाने का प्रशंसनीय कार्य किया जर्मन विद्वान् डॉ. जार्ज ब्युलर महोदय ने। अपने मित्र डॉ. एच. जेकोबी के साथ घूमते हुए वे सन् १८७४ में राजपुताना आये। यहाँ जैसलमेर स्थित “जैन बृहज्ज्ञान कोश भण्डार” में इस महाकाव्य की प्राचीन ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण प्रति उन्हें मिली। उन्हें बड़ी कठिनाई से इस सरस्वती मंदिर में प्रवेश की अनुमति मिली। इस ग्रंथ के महत्त्व एवं काव्य सौष्ठव से प्रभावित होकर उन्होंने जैकोबी महोदय के साथ मिलकर सात दिन में इस महाकाव्य की प्रतिलिपि तैयार की। अगले वर्ष मुम्बई संस्कृत ग्रंथ माला में इसे अपनी विस्तृत भूमिका के साथ प्रकाशित करवाया। अत्यन्त परिश्रम एवं शोधपूर्ण अनुशीलन से युक्त उस भूमिका में, काव्यगत सभी विषयों का विशद विवेचन उपलब्ध है। इस भूमिका से चालुक्य विक्रम विषयक अंश १८७६ ई. में इंडियन एण्टिक्वेरी नामक समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ। उसके बाद श्री राम कृष्ण गोपाल भाण्डारकर ने अपने ग्रंथ “Early History Of The Deccan” में एवं अन्य विद्वानों ने अपने-अपने ग्रंथों में विस्तार से चालुक्य वंश के इतिहास का वर्णन किया है। एम.ए. स्टाइन आदि विद्वानों ने राजतरङ्गिणी आदि ग्रंथों का सम्पादन कर काश्मीर का इतिहास परिष्कृत किया। १६०७ ई. में पं. श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी ने भी ‘व्रिकमांकदेवचरित चर्चा’ नामक ग्रंथ लिखा। ब्युलर के संस्करण के दुर्लभ होने पर पं. रामावतार शर्मा ने ‘काशिक ज्ञान मण्डल मुद्रणालय’ से इसे पुनः प्रकाशित करवाया।
Reviews
There are no reviews yet.