Loading...
Get FREE Surprise gift on the purchase of Rs. 2000/- and above.
-15%

Vishal Yagya Mantra Sindhu (विशाल यज्ञ मन्त्र सिंधु) 405

Original price was: ₹800.00.Current price is: ₹680.00.

Author Pt. Veniramji Gaud Vedacharya
Publisher Savitri Thakur Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st edistion, 2020
ISBN -
Pages 1008
Cover Hard Cover
Size 13 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code RTP0065
Other Dispatched In 1 - 3 Days

 

9 in stock (can be backordered)

Compare

Description

विशाल यज्ञ मन्त्र सिंधु (Vishal Yagya Mantra Sindhu) यज्ञ-माहात्म्य, यज्ञ-प्रवचन, यज्ञ-मन्त्र-दर्पण, यज्ञ-याज्ञिक-यजमान आदि की विवेचना एवं विधान, यज्ञ पात्र, हवनीय द्रव्य, अग्नि होम मुद्रा, हवन विधि, पूर्णाहुति सम्बन्धी नियम और विवेचना, विविध कुण्ड मण्डप निर्माण विधि, सङ्कल्प, यज्ञादि वैदिक मन्त्र, स्वाहाकार, न्यास-विनियोग, परिशिष्ट, हवन सामग्री एवं आरती सहित अथार्त ‘प्रेमवती’ हिन्दी अनुवाद सहित।

यज्ञ-शब्दार्थ

‘यज्’ धातु से ‘यज-याच-यत-विच्छ-प्रच्छ-रक्षो नङ’ (३।३।९०) इस पाणिनीय सूत्र से ‘नङ्’ प्रत्यय करने पर ‘यज्ञ’ शब्द बनता है। ‘नडन्तः’ इस पाणिनीय लिङ्गानुशासन से ‘यज्ञ’ शब्द पुल्लिङ्ग भी होता है।’ नङ्’ प्रत्यय भाव अर्थ में होता है, किन्तु ‘कृत्यल्युटो बहुलम्’ (३।३।११३) इस सूत्र पर ‘बहुलग्रहणं कृन्मात्रस्यार्थव्यभिचारार्थम्’ इस सिद्धान्त से कृदन्त के सभी प्रत्ययों का अर्थ आवश्यकतानुसार परिवर्तित किया जा सकता है। यही भाष्यकारादि सम्मत मार्ग है।

धातु-पाठ में ‘यज्’ धातु का पाठ किया गया है। ‘धातवः अनेकार्थाः’ इस वैयाकरणसिद्धान्त के अनुसार कतिपय आचार्यों ने ‘यज देवपूजासङ्गतिकरणदानेषु’ इस धातुपाठ के अनुसार ‘यज्’ धातु का देवपूजा, सङ्गतिकरण और दान इन तीन अर्थों में प्रयोग किया है। अर्थात् यज्ञ में देवपूजा होती है, देवतुल्य ऋषि-महर्षियों का सङ्गतिकरण होता है और दान भी होता है।

वैदिक संस्कृति के मूल आधार वेद हैं। चारो वेदों में ११३१ शाखाये हैं। जिनमें कर्मकाण्ड, उपासना काण्ड, ज्ञान-काण्ड, इन तीन विषयों की मुख्यत प्रधानता है। वेदों के समस्त एकल लक्ष मन्त्रों में अस्सी हजार मंत्र कर्मकाण्ड के हैं जबकि सोलह हजार यंत्र उपासना कांड के और ४ हजार मंत्र ज्ञान कांड के है।

अतः स्पष्ट है कि वेदों में ‘कर्मकाण्ड’ की विशेष प्रधानता है, अर्थात कर्मकाण्ड भाग (यज्ञ भाग) से ही वेद सजीव व महत्वपूर्ण है, इसलिए वेदों का मुख्य विषय यज्ञ है और यज्ञों से ही वेद प्रतिष्ठित और मान्य है। वेद-मंत्रों के बिना यज्ञ हो ही नही सकता और यज्ञ के बिना वेदमंत्रों की कोई उपयोगिता नहीं है स्पष्ट है कि वेद है तो यज्ञ है और यज्ञ है तो वेद हैं।

कोई भी दर्शन जब तत्वचिंतन के शिखर पर पहुंचता है तब उस परमतत्व के साक्षात्कार का प्रश्न शेष बचता है। वेदान्त ने ब्रह्म को अंतिम तत्व के रूप में प्रतिपादित किया और सांरत्य ने पुरुष और प्रकृति का चिंतन किया। चितन बुद्धि का विषय है परन्तु सिर्फ बुद्धि से साक्षात्कार संभव नहीं। क्योकि इन परम तत्वों के साक्षात्कार के निमित्त किसी निश्चित वैज्ञानिक साधना प्रणाली की

कल्पना भी दोनो चाहिए। निश्चित रुप से यज्ञ ही वह साधना-प्रणाली है जिसके द्वारा परमत्वों से साक्षात्कार किया जा सकता है। कालक्रम की दृष्टि से देखा जाय तो यज्ञ के अलावा जितनी भी साधना पद्धतियाँ है वे सब वेद के बाद की हैं। वेदों को भांति वेदांगभूत यज्ञ भी अत्यन्त दुरुह है। जिस प्रकार वेदों में उपास्य देवता है उसी प्रकार वेद अपौरुषेय, नित्य और अनादि है उसी प्रकार यज्ञ भी अपौरुषेय नित्य और अनादि हैं। ऋगवेद के प्रथम मंत्र “अग्निमांडे पुरोहितम” में यज्ञ पट आया है। जिससे सिद्ध होता है कि वेद से भी प्राचीन यज्ञ है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Vishal Yagya Mantra Sindhu (विशाल यज्ञ मन्त्र सिंधु) 405”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Navigation
×