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Vivaran Upanyas (विवरणोपन्यासः)

166.50

Author Shree Ramanand Saraswati
Publisher Dakshinamurty Math Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition -
ISBN -
Pages 564
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code dmm0073
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Description

विवरणोपन्यासः (Vivaran Upanyas) आस्तिक दर्शनों में वेदान्तको दर्शनका पर्यवसानस्वरूप माना गया है। जो वेदान्तदर्शन उपलब्ध है उसका दार्शनिक रूपसे व्यवस्थापन ब्रह्मसूत्रों पर एवं उनके शंकरभगवत्पाद-प्रणीत प्रसन्नगम्भीर भाष्य पर ही आधारित है। भाष्यसे पूर्व यद्यपि गौडपादाचार्य की माण्डूक्यकारिकाओं में एवं योगवासिष्ठ में दार्शनिक रूप विद्यमान था तथापि समग्र उपनिषदों का व्यवस्थित रूपसे विचार ब्रह्मसूत्रभाष्यमें ही हुआ है। आचार्य शङ्करभगवत्पाद के प्रथम शिष्य पद्मपादाचार्य थे जिन्होंने भाष्यकार से नियुक्त होकर सूत्रभाष्य की विशद व्याख्या उपस्थित की जिसकी केवल चतुःसूत्री ही वर्तमानमें उपलब्ध है। सम्प्रदायमें चतुःसूत्री को समग्र सूत्रों का मूल माना जाता है अतः सभी प्रधान प्रमेय व प्रमाण इसमें प्रतिपादित हो जाते हैं। इस दृष्टि से उपलब्ध पञ्चपादिका स्वयं अपने में पूर्ण मानी जा सकती है। श्रीमत् प्रकाशात्मश्रीचरण ने पञ्चपादिका की चतुःसूत्री पर विशद विचार विवरण नामक व्याख्या में किया। आचार्य शंकर का समय ईस्वी ७८८ से ८२० तक स्वीकृत है अतः पद्मपादाचार्य का समय भी ईस्वी ८४० तक माना जा सकता है। आचार्य प्रकाशात्मयति संभवतः ईस्वी ८४० व ९४० के मध्य ही रहे होंगे। शतभूषणीकार पण्डितराज अनन्तकृष्ण शास्त्री के अनुसार तो वाचस्पति की भामतीरचना से पूर्व ही प्रकाशात्मा विवरण की रचना कर चुके थे; तब पद्मपादाचार्य के पचास वर्ष बाद विवरणरचना मानी जा सकती है। इस तरह पद्मपाद के साक्षात् शिष्य न होने पर भी प्रकाशात्मा को उनकी व्याख्या प्रामाणिक रूप से कुछ ही पीढियों के व्यवधान से अखण्ड सम्प्रदाय से प्राप्त हुई थी। इसीलिये प्रस्थान का नाम भी ‘विवरणप्रस्थान’ ही प्रसिद्ध है न कि ‘पद्मपादप्रस्थान’। अधिकतम वेदान्ताचार्यों ने विवरणप्रस्थानके अन्तर्गत ही विचार किया है।

विवरण में विचार बिखरे हुए होने से मन्दबुद्धि को उनकी सम्बद्ध उपस्थिति नहीं हो पाती अतः कई आचार्यों ने इसे संग्रहरूपसे उपस्थापित किया। आचार्य विद्यारण्य का विवरणप्रमेयसंग्रह और स्वामी रामानन्द सरस्वती का विवरणोपन्यास समधिक प्रसिद्ध हुए। विवरणप्रमेयसंग्रह का प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद अच्युतग्रन्थमाला, वाराणसी, में प्रकाशित हो चुका है तथा अंग्रेजी अनुवाद भी विद्यमान है। विवरणोपन्यास का किसी भी आधुनिक भाषा में अनुवाद अभी तक मुद्रित नहीं हुआ ऐसा प्रतीत होता है। स्वामी स्वयम्प्रकाशगिरि ने यह कार्य संपन्न कर वेदान्तजिज्ञासुओं का उपकार किया है। अनुवाद ग्रंथ के रहस्य खोलते हुए किया है एवं अनेक स्थलों पर मूल विवरण का भी निर्देश दे दिया है।

उपन्यास से लगभग दो शताब्दी पूर्व विवरणप्रमेयसंग्रह प्रकाशित हो चुका था अतः उसका लाभ आचार्य रामानन्द को उपलब्ध था ही जिससे संग्रह की कई कठिनाइयों का इसमें सहज समाधान हो सका है। दोनों ग्रन्थों की अपनी-अपनी उपयोगिता है अतः विद्यारसिकों को दोनों का ही अध्ययन लाभप्रद होगा। विवरण को समझने में उपन्यास अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है और उसके मन्थन में प्रमेयसंग्रह अधिक गतार्थ है। विद्यारण्य स्वतन्त्रप्रज्ञ थे, बहुश्रुत भी थे, अतः जैसे उनका वार्तिकसार वार्तिकप्रस्थान के अनेक पहलू आगे बढ़ाता है वैसे ही प्रमेयसंग्रह भी विवरणप्रस्थान में कई नवीन उद्भावनाओं को लाता है। उपन्यासमें विवरण तक ही सीमित रहने की उत्कण्ठा है अतः विस्तार नहीं है।

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