Vyakaran Mahabhasyam (व्याकरण-महाभाष्यम्)
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Author | Dr. Jayshankar Lal Tripathi |
Publisher | Chaukhamba Sanskrit Series Office |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 6th edition, 2019 |
ISBN | - |
Pages | 152 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0055 |
Other | Chaukhamba Sanskrit Series Office |
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CompareDescription
व्याकरण महाभाष्यम् (Vyakaran Mahabhasyam) भारतीय साहित्य के मूल ग्रन्थ वेद हैं। वेदों की रक्षा और यथार्थ ज्ञान के लिए छः वेदाङ्ग बने। उनमें व्याकरण का प्रमुख स्थान है – “मुखं व्याकरणं स्मृतम्।” संस्कृत व्याकरण की एक सुदीर्घकालिक परम्परा में पाणिनि, कात्यायन और पतञ्जलि ये मुनित्रय सवर्वोपरि है। इनसे पूर्ववर्ती और परवर्ती अनेक आचायों का भी योगदान अस्वीकार नहीं किया जा सकता। यही कारण है आज संस्कृत व्याकरण व्याकरण-मात्र न रह कर ‘शास्त्र’ की श्रेणी में प्रतिष्ठित है और इसकी सूक्ष्मता, गम्भीरता तथा व्यापकता देखकर विश्व के सभी आलोचक इसकी प्रशंसा करने के लिए विवश है।
पाणिनि ने अपनी सूक्ष्म-दृष्टि, अनुभव और व्यापक ज्ञान के आधार पर अत्यल्प आकार वाले सूत्रों की रचना की। कात्यायन ने उसी में परिशिष्ट रूपेण वार्तिक बनाकर जोड़े। परन्तु दोनों का यथार्च अभिप्राय समझना कठिन था। जिज्ञासु अतृप्त थे। विभिन्न समस्याएँ उपस्थित हो रही थीं। इसी अवसर पर महामनीषी शेषावतार पतञ्जलि ने ‘महाभाष्य’ की रचना कर न केवल व्याकरण शास्त्र का अपितु संस्कृत वाड्मय का अवर्णनीय उपकार किया। उनके व्याख्यान- ग्रन्थ के साथ जुड़ा हुआ ‘महत्’ यह विशेषण इस ग्रन्थ का गौरव प्रकट करता है।
‘भाष्याब्धिः क्वातिगम्भीरः क्व चाल्पविषया मतिः’ इस कैयटीय वचन से महाभाष्य की गम्भीरता स्पष्ट है। इसी लिए कुछ ही विद्वानों ने इस पर व्याख्यान लिखे। उनमें कैयट का ‘प्रदीप’ और नागेश का ‘उद्योत’ परम सहायक माने जाते है। इन दोनों के विना भाष्य का ययार्थ रहस्य समझना असम्भव-सा है। सुदीर्घ अध्यापन-काल में मैंने छात्रो की समस्याएँ देखी और उनकी सहायता के लिए हिन्दी में व्याख्या लिखने का प्रथम प्रयास १९८० में किया था। वह ग्रन्थ प्रकाशित और पुरस्कृत हुआ।
किन्तु कैयटीय प्रदीप तथा नागेश की उद्योत व्याख्या के विना महाभाष्य समझना बहुत कठिन है, ऐसा सोचकर प्रस्तुत संस्करण में ‘प्रदीप’ तथा ‘उद्द्योत’ के साथ-साथ परिवर्द्धित और परिष्कृत हिन्दी व्याख्या ‘भावबोधिनी’ प्रकाशित की जा रही है। इसमे गम्भीर विषयों का स्पष्टीकरण ‘विमर्श’ के अन्तर्गत किया गया है। भूमिका में प्रायः सभी उपयोगी विषयों का विवेचन है। इसमें अपेक्षित विषयों का प्रतिपादन संस्कृत माध्यम से भी किया गया है। इससे यह ग्रन्थ सभी प्रकार के छात्रों एवं जिज्ञासुओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगा, ऐसी आशा है।
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