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Yagyavalkya Smriti (याज्ञवल्क्यस्मृतिः)

340.00

Author Dr. Keshav Kishore Kashyap
Publisher Chaukhamba Krishnadas Academy
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2021
ISBN -
Pages 645
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0404
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Description

याज्ञवल्क्यस्मृतिः (Yagyavalkya Smriti) याज्ञवल्क्य स्मृति के प्रणेता याज्ञल्वक्य ऋषि है, एतद्विषयक सामान्य ज्ञान नाम से ही हो जाता है; किन्तु इस विषय में मतान्तर का अभाव भी नहीं है। याज्ञवल्क्य स्मृति के प्रसिद्ध टीकाकार विज्ञानेश्वर ने प्रथम श्लोक के अवतरणिका में कहा है-

याज्ञवल्क्यशिष्यः कश्चित्प्रश्नोत्तररूपं याज्ञवल्क्यमुनिप्रणीतं।

धर्मशास्त्रं संक्षिप्य कथयामास यथा मनुप्रणीतं भृगुः।।

अर्थात् जिस प्रकार मनुस्मृति के रचयिता भृगु को मानते हैं, उसी प्रकार प्रकृत ग्रन्थ के रचयिता भी किसी अन्य को मानते हैं।

प्रो० काणे आदि विद्वान् मिताक्षराकार के उपर्युक्त कथन तथा भाषा आदि के आधार पर याज्ञवल्क्य को प्रकृत-स्मृति का प्रणेता नहीं मानते। वस्तुतः याज्ञवल्क्य की गणना वैदिक ऋषियों में की जाती है। वे शुक्ल यजुर्वेद के उद्घोषक है, शान्तिपर्व (महाभारत) में एक उपाख्यान मिलता है कि वैशम्पायन के शिष्य याज्ञवल्क्य को अपने गुरु से किसी विषय पर विवाद हो गया था, जिसके कारण वे गुरु से अर्जित विद्या को वान्तर (उल्टी) कर दिए थे। तत्पश्चात् वे (याज्ञवल्क्य) भगवान् सूर्य की उपासना करके मध्याह्न काल में सूर्य से यजुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किए। इसी यजुर्वेद को शुक्लयजुर्वेद नाम से अभिहित किया गया तथा मध्य दिन में सूर्य से यजुर्वेद की शिक्षा प्राप्त करने के कारण उसका नाम माध्यन्दिन संहिता पड़ा। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार याज्ञवल्क्य एवं विदेहराज जनक के मध्य अग्निहोत्रादि विषयों पर परस्पर चर्चा की बात प्राप्त होती है। शतपथ के अनुसार याज्ञवल्क्य ने यजुर्वेद का ज्ञान भगवान् सूर्य से प्राप्त करने के उपरान्त उद्घोषित की थी। बृहदारण्यकोपनिषद् के याज्ञवल्क्य दार्शनिक थे तथा उनकी पत्नी मैत्रेयी को भी दर्शन का सम्यक ज्ञान था। इसीलिए वे अपनी पत्नी के साथ ब्रह्म एवं अमरता आदि दर्शन के गूढ तत्त्वों पर चर्चा करते थे। वृहदारण्यकोपनिषद् (३.१.१-२) द्वारा याज्ञवल्क्य को एक विद्वान् ब्राह्मण के रूप में राजा जनक द्वारा प्रदत्त एक हजार गौओ को ले जाने की कथा मिलती है। प्रकृत ग्रन्थ के प्रायश्चिताध्याय में एक श्लोक द्वारा कहा गया है-

ज्ञेयं चारण्यकमहं यदादित्यादवाप्तवान् ।

योगशास्त्रं च मत्त्रोक्तं ज्ञेयं योगमभीप्सता ।। (या०३/११०)

अर्थात् मैं वृहदारण्यक का ज्ञान सूर्य देव से प्राप्त किया हूँ, उसका ज्ञान तथा मेरे द्वारा रचित योग शास्त्र का ज्ञान योग साधना के लिए करना चाहिए।

उपर्युक्त तथ्यों से ऋषि याज्ञवल्क्य की अति प्राचीनता सिद्ध हो जाती है।

याज्ञवल्क्य स्मृति का काल-निर्णय में आधुनिक दृष्टि से पुष्ट साक्ष्य के रूप में विश्वरूप को लिया जाता है, वे याज्ञवल्क्य स्मृति के यशस्वी टीकाकार हैं और उनका काल ९वीं शताब्दी है। यद्यपि विश्वरूप के पूर्व भी इस स्मृति पर अनेक टिकाएँ हुई है, जिसका सङ्केत विश्वरूप ने अपनी कीर्ति में दिया है। प्रायश्चित मयूख के अनुसार शङ्कराचार्य की कीर्ति ब्रह्मसूत्र के भाष्य में याज्ञवल्क्य की चर्चा की गई है। इसी प्रकार अन्यान्य सूत्रों के आधार पर विद्वानों ने इनका काल ई०पू० पहली शताब्दी से लेकर ईसा के तीसरी शताब्दी के मध्य माना है।

याज्ञवल्क्य स्मृति के अतिरिक्त याज्ञवल्क्य नाम से तीन और अन्य ऋषियों के नाम मिलते है-बृद्धयाज्ञवल्क्य, योगयाज्ञवल्क्य तथा बृहद्याज्ञवल्क्य । उपर्युक्त तीनो की चर्चा याज्ञवल्क्य स्मृति के यशस्वी टीकाकारों ने अपनी-अपनी कीर्ति में की है। विश्वरूप ने उद्धरण के रूप में वृद्ध याज्ञवल्क्य का नाम दिया है। मिताक्षरा तथा अपरार्क ने भी अनेक बार उद्धृत किया है। दाय भाग के अनुसार जितेन्द्रिय ने बृहद्याज्ञवल्क्य की चर्चा की है, जिसकी चर्चा मिताक्षराकार ने भी की है। वाचस्पति मिश्र ने योगसूत्र भाष्य में योगयाज्ञवल्क्य की चर्चा की है। इसी प्रकार न्यायसूची निबन्ध, अपरार्क, पराशर माघवीय, कुल्लूकभट्ट की टीका मन्वर्थ मुक्तावली में भी योग-याज्ञवल्क्य का नाम उद्धृत है। प्रो० काणे के अनुसार योग-याज्ञवल्क्य की द्वादश अध्यायों से युक्त चार सौ पनचानवे (४९५) श्लोको में निबद्ध हस्तलिखित प्रतियाँ डेकन कालेज में उपलब्ध है। मान्यतानुसार योग-याज्ञवल्क्य ने योगशास्त्र का ज्ञान ब्रह्मा से प्राप्त कर अपनी पत्नी गार्गी को दिया। इस ग्रन्थ में योग के आठ अंगों, उनके विभागों एवं उपविभागों की सम्यक् चर्चा की गई है। डेकन कालेज के संग्रह में ही वृहद् योगि-याज्ञवल्क्य स्मृति १२ अध्यायो एवं ९३० श्लोकों से युक्त पायी जाती है।

ऊपर के विवेचन से स्पष्ट है, योग-याज्ञवल्क्य तथा वृहद-याज्ञवल्क्य स्मृति ग्रन्थ नहीं है। अतः याज्ञवल्क्य स्मृति के प्रणेता शुक्लयजुर्वेद के उद्घोषक याज्ञवल्क्य ऋषि ही है।

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