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Mahabharat (महाभारत)

595.00

Author Pt. Ramalagan Pandey
Publisher Shri Thakur Prasad Pustak Bhandar
Language Hindi
Edition 2014
ISBN 121-542-2392544
Pages 1232
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code RTP0153
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Description

महाभारत (Mahabharat) वैशम्पायनजी बोले-हे राजा जनमेजय ! महाभारत की कथा बड़ी ही पवित्र है! इसके श्रवण करने से पापों का नाश हो जाता है। सर्व प्रथम आदि पर्व है इसके श्रवणपान से मनुष्य को यम का त्रास नहीं होता। जो फल एकादशी का व्रत करने से होता है और जो फल भूमि का दान करने से होता है, जो फल करोड़ों कन्यादान का होता है और जो फल सब तीर्थों के करने से होता है जो फल यज्ञ और धर्म करने से होता है, वही फल महाभारत के सुनने से मनुष्य को प्राप्त होता है। जो मनुष्य महाभारत की कथा सुनता और कहता है, उसके निकट पाप का प्रवेश नहीं होता। जो फल संग्राम में प्राण त्यागने से होता है, वह फल श्रीमहाभारत के सुनने से होता है। क्योंकि महाभारत की कथा का प्रवेश बड़ा ही पुण्यदायक है, इससे हे राजन् ! इसे बड़ी सावधानी से सुनिये। क्योंकि इसमें प्रवेश करने से पापों का सर्वथा ही नाश हो जाता है तथा मनुष्य की आयु बढ़ती है। यदि क्षत्रिय सुने तो वह सुमार्ग को ग्रहण करे तथा इससे मनुष्यों में ज्ञान का प्रकाश होता है और अन्त में वह मनुष्य परमपद अर्थात् मोक्ष का लाभ करता है।

महाभारत के वन पर्व के अन्त में वेदव्यासजी ने कहा है कि, जो फल समुद्र आदि नदियों में स्नान करने से होता है, जो केदार और बद्रिकाश्रम जाने तथा श्रीजगन्नाथजी के दर्शन पाने से होता है तथा जो कष्ट सहनकर अनेक व्रत करने से होता है, वह फल सभा और वन पर्व की कथा सुनने से प्राप्त होता है। इसी प्रकार भीष्म पर्व के अन्त में कहा गया है कि, जो हजार गौ-दान और सब तीर्थों में स्नान का फल होता है, वही फल इस व्यासदेव के महाभारत को पढ़ने से प्राप्त होता है। क्योंकि इसके पढ़ने से पुण्य बढ़ता है और पाप नष्ट होता है। अतः श्रीराम, श्रीकृष्ण, हे कृष्ण और विष्णो ऐसा कहते हुए सर्वदा महाभारत की कथा को पढ़ना और सुनना चाहिये। इसके ऐषिक-पर्व में कहा गया है कि, जो इस महाभारत कथा को मन लगाकर सुनता है, उसके समीप पाप नहीं जाता। जो फल सब तीर्थों में स्नान करने और करोड़ों कन्या-दान देने से होता है, परमार्थ करने से जो फल होता है और जो सर्वदा सत्य बोलने का फल होता है, शरणागत की रक्षा का जो फल होता है और गया में पिण्डदान का तथा युद्ध में प्राण त्यागने का जो फल होता है वह फल इस कथा को सुनने से होता है महाभारत सुनने के और भी अनेक फल हैं जो मुझसे यहाँ नहीं कहे जाते। महाभारत के पढ़ने और सुनने से सहज ही में स्वर्ग की प्राप्ति होती है और स्वयं श्रीकृष्णजी अपना दर्शन देते हैं।

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