Vidya Parinayanam (विद्यापरिणयनम्)
₹20.00
Author | Acharya Ramchandra Mishr |
Publisher | Chaukhambha Sanskrit Series Office |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 1967 |
ISBN | - |
Pages | 178 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0714 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
विद्यापरिणयनम् (Vidya Parinayanam) भारतीय नाटक साहित्य विचारधारा तथा विकासक्रममें मूलतः स्वतन्त्र है इस बातको अब सभी आलोचक मानने लग गये हैं। वैदिक साहित्यको समीक्षासे पता चलता है कि वैदिककालसें नाटकके सभी अङ्ग-संवाद, सङ्गीत, नृत्य, एवं अभिनयकलाका किसी न किसी रूपमें अस्तित्व था। ऋग्वेदमें यम-यमी, उर्वशी गुरूरवा और सरमा पणिके संवादात्मक सूक्तोंमें नाटकीय संवादका तत्त्व वर्त्तमान। सामवेदकी संगीतप्राणता अतिप्रसिद्ध है। आलोचकों का अनुमान है कि ऐसे लवाद ही कालान्तरमें परिमार्जित होकर नाटकोंके रूपमें परिणत हुए। रामायण, महाभारतकालरों नाटकका कुछ और स्पष्ट उल्लेख पाया जाता है। विराटपर्वमें रङ्गशालाका स्पष्ट उल्लेख हुआ है। नटशब्दका भी वहाँ प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ श्रीधरस्वामीने ‘नवरसाभिनयचतुर’ किया है। हरिवंशमें रामायणकी कथापर आधारित एक नाटकके खेले जानेका वर्णन आया है।
रामायणमें भी ‘नट’, ‘नर्त्तक’, ‘नाटक’, ‘रङ्गमञ्च’ आदिका वर्णन स्थान-स्थानपर मिलता है। रामायणमें अभिनेताके अर्थमें ‘कुशीलव’ शब्दका प्रयोग भी पाया जाता है। महावैयाकरण पाणिनिने ‘पाराशर्यशिलालिम्यां निघुनटसूत्रयोः’ इस सूत्रमें नट सूत्रशब्दसे नाव्य- शास्त्रका स्मरण किया है। इन सारी बातों पर ध्यान देनेसे स्पष्ट हो जाता है कि उनके पूर्व ही अनेक नाटक रचे जा चुके होंगे, जिन नाटकोंके बाद इन नटसूर्योकी रचना हुई होगी, जिन्हें पाणिनिने पूर्वनिर्दिष्ट सूत्रमें स्मरण किया है। लक्ष्य ग्रन्थोंको देखकर ही लक्षण ग्रन्थ बनते हैं अतः नटसूत्रोंसे पूर्व में नाटकोंका अस्तित्व मानना होगा। इस तरह हम देखते हैं कि संस्कृत नाटक साहित्यकी परम्परा अतिप्राचीन है।
Reviews
There are no reviews yet.