Brihat Parashar Hora Shastra (बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम्)
₹361.00
Author | Dr. Satyaendra Mishr |
Publisher | Chaukhamba Krishnadas Academy |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2024 |
ISBN | 978-81-218-0257-1 |
Pages | 704 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0279 |
Other | Dispatched in 3 days |
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बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् (Brihat Parashar Hora Shastra) होरा में जातक के जन्मकालिक ग्रहस्थिति के अनुसार उसके भूत-वर्तमान व भविष्य के शुभाशुभ फलों का विमर्श रहता है। इसमें जगद् व्यवहारोपयोगि विषयों को १२ भागों में विभक्तकर उसमें ग्रहस्थित्यानुसार विचार दिया हुआ रहता है।
प्रस्तुत ग्रन्थ ‘कलौ पाराशरी स्मृताः’ के अनुसार सम्प्रति इस कलिकाल में महर्षि पराशर प्रणीत यह होराशास्त्र ही सर्वोत्कृष्ट व प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है । महर्षि पराशर का ‘वर्तमान’ किस कालखण्ड में रहा है यह कहना दुष्कर है क्योंकि कौटिल्य के अर्थशास्त्र में इनका उल्लेख है, वराहमिहिर ने भी इनका नामोल्लेख किया है। वृहदारण्यक के तैत्तिरीयारण्यक में भी इनका नामोल्लेख मिलता है निरुक्त में यास्क ने भी इनका नामोल्लेख किया है। अग्निपुराण में भी इनका नाम आया है महाभारत में भी इनसे सम्बन्धित आख्यान मिलते हैं।
पराशर ऋषि के दो ग्रन्थ सम्प्रति उपलब्ध होते हैं- १. लघुपाराशरी २. बृहत्पाराशर। यह ग्रन्थ पूर्व में पाराशरहोरा नाम से ही विख्यात रहा होगा परन्तु अति विस्तृत होने के कारण इसे बृहत्पाराशर कहा जाने लगा। इस ग्रन्थ में लग्नसाधनार्थ अयनांशसाधन की विधि नहीं दी गई है जबकि फलितशास्त्र के समग्र बिन्दुओं पर विचार किया गया है इससे यह सिद्ध होता है कि अयन चलन ज्ञान से पूर्व ही इस ग्रन्थ की रचना हुई थी। यह विपुलकाय ग्रन्थ शताध्यायी नाम से भी विख्यात है परन्तु यत्र-तत्र प्रकाशित प्रतियों में १०१ या ९९ या ९८ अध्याय भी मिलते हैं और वे (अध्याय) श्लोक संख्या में भी न्यूनाधिक हैं। प्राचीन काल में कागज इत्यादि की कमी से ऋषिप्रणीत वेद-वेदाङ्ग के ग्रन्थ ‘श्रुतिपरम्परा’ से ही संरक्षित होते थे। उसी क्रम में यह ग्रन्थ भी श्रुतिपरम्परा से ही संरक्षित होता रहा।
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