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Yogiraj Tailanga Swami (योगिराज तैलंग स्वामी)

51.00

Author Vishwanath Mukharaji
Publisher Vishwavidyalay Prakashan
Language Hindi
Edition 6th edition, 2022
ISBN 978-81-89498-62-7
Pages 91
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code VVP0133
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Description

योगिराज तैलंग स्वामी (Yogiraj Tailanga Swami) अनादिकाल से काशी साधकों के निकट साधना-भूमि रही है। बुद्ध से लेकर स्वामी विशुद्धानन्द तक यहाँ निवास करते रहे।

तैलंग स्वामी एक ऐसे योगिराज थे जो २८० वर्ष तक जीवित रहे। सन् १७३७ ई० से १८८७ ई० तक यानी पूरे १५० वर्ष तक वे काशी में थे। आपकी योग विभूतियों से प्रभावित होकर नगर के लोग उन्हें साक्षात् विश्वनाथ समझते थे। तैलंग स्वामी की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि आपने न किसी मठ की स्थापना की और न अपने नाम से सम्प्रदाय चलाया। यहाँ तक कि आपके शिष्यों की संख्या भी नगण्य रही।

महात्मा तैलंग स्वामी के सम्बन्ध में बंगला में सर्वप्रथम पुस्तक श्री नारायणचन्द्र दास ने लिखकर छपवायी। यह १६वीं शताब्दी के अन्त या बीसवीं शताब्दी के प्रथम चरण की घटना है। सन् १६१८ में स्वामीजी के अन्तिम गृहस्य शिष्य श्री उमाचरण मुखोपाध्याय ने ‘महात्मा तैलंग स्वामीर जीवन चरित ओ तत्त्वोपदेश’ लिखकर छपवायी। श्री मुखोपाध्याय यह स्वीकार करते हैं कि संस्मरण के अलावा जीवनी का अंश उन्होंने स्वामीजी के द्वितीय शिष्य कालीचरण स्वामी से जवानी प्राप्त किया है जब कि नारायणचन्द्र दास की पुस्तक में ये सारी बातें हैं।

इन्हीं दो पुस्तकों के आधार पर बंगला में सर्वश्री सुरेन्द्रकुमार सेनगुप्ता, रमेन गुप्त, नवकुमार विश्वास, अमरेन्द्रकुमार घोष, स्वामी कृष्णानन्द सरस्वती तथा स्वामी परमानन्द सरस्वती (आप तैलंग स्वामी की शिष्या शंकरी माता के शिष्य थे, आपने उगाचरणजी की पुस्तक में वर्णित अनेक बातों का खण्डन किया है।) आदि ने पुस्तकें लिखी हैं।

श्री उमाचरण मुखोपाध्याय की पुस्तक के हिन्दी अनुवाद का प्रकाशन काशी के ही किसी सज्जन ने किया था, जो एक अर्से से अप्राप्त है। उस अभाव की पूर्ति इस पुस्तक के माध्यम से की गयी है। विश्वास है कि योगिराज तैलंग स्वामी के भक्तों तथा जिज्ञासुओं को यह कृति पसन्द आयेगी।

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