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Rigveda Kalin Bharat (ऋग्वेदकालीन भारत)

127.00

Author Sri Kanchhedilal Gupta
Publisher Chaukhamba Krishnadas Academy
Language Hindi
Edition 2007
ISBN 978-812180162-1
Pages 211
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSP0750
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Description

ऋग्वेदकालीन भारत (Rigveda Kalin Bharat) वेद समस्त हिन्दू जाति के प्राण हैं। प्राचीन काल से ही प्रत्येक हिन्दू की वेदों में अगाध श्रद्धा है। कोई भी हिन्दू हो, या किसी भी सम्प्रदाय का हो और संसार के किसी भी भाग में निवास करता हो, वह वेदों को पूज्य दृष्टि से देखता है। उसके लिए वेद ब्रह्म वाक्य ही नहीं, स्वयं ब्रह्म स्वरूप हैं। और आज ही नहीं, युग-युग से हिन्दुओं की यह धारणा रही है। जिस प्रकार ईसाइयों के लिये बाइबिल, मुसलमानों के लिए कुरान और पारसियों के लिए अवेस्ता मान्य है, उसी प्रकार हिन्दुओं के लिए वेद हैं।

वेद शब्द का अर्थ

वेद शब्द संस्कृत भाषा का है। संस्कृत ‘विद्’ धातु में घञ् प्रत्यय लगने से वेद शब्द बना है। विद् का अर्थ है- जानना और घञ् प्रत्यय का प्रयोग भाव या कर्म प्रदर्शित करने में होता है, अतएव वेद (विद् + घञ्) का अर्थ ज्ञान है। यह वेद शब्द का शाब्दिक (Etymological) अर्थ है। किन्तु व्यवहार में वेद से उन ग्रन्थों का बोध होता है, जो ज्ञान के भण्डार हैं। ज्ञान भावात्मक (Abstract) है। इस भावात्मक ज्ञान के वस्त्वात्मक (Concrete) स्वरूप को ही, जो यथार्थ में भाषा के आवरण में वेष्टित हैं, तथा जो ग्रन्थाकार हैं, वेद कहा जाता है।

वेदों की संख्या और उनका गठन

वेदों की संख्या चार है- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। इन चारों वेदों का गठन एक ही प्रकार का है। इनके स्वरूप में चार विभाग पाए जाते हैं- संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद्।

ऋग्वेद का महत्त्व

यद्यपि चारों वेद महत्त्वपूर्ण हैं, तो भी अनेकों कारणों से ऋग्वेद इन सबसे अधिक महत्त्व का है। प्राचीनता की दृष्टि से तो विश्व के समस्त ग्रन्थों में यह प्राचीनतम है ही, किन्तु वर्णित विषयों की विविधता और हिन्दू जीवन के समस्त क्षेत्रों में हजारों वर्षों से चले आते हुए उसके एकक्षत्र प्रभाव के कारण ऋग्वेद को सबसे अधिक महत्त्व, मान्यता, पूजन और श्रद्धा प्राप्त है। हिन्दू जीवन में ऋग्वेद का दर्शन जाह्नवी के दर्शन से कम पुण्यकारी नही समझा जाता।

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