Atma Vigyan Evam Sankshipt Vedant Vichar (आत्मविज्ञान एवं संक्षिप्त वेदान्तविचार)
₹80.00
Author | Swami Maheshanad Giri ji |
Publisher | Dakshinamurty Math Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2015 |
ISBN | - |
Pages | 154 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | dmm0006 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
आत्मविज्ञान एवं संक्षिप्त वेदान्तविचार (Atma Vigyan Evam Sankshipt Vedant Vichar) श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्य निरंजन पीठाधीश्वर श्री 108 स्वामी महेशानन्द गिरिजी महाराज के दिव्य अमृतमय व्याख्यान लगभग पचास वर्षों तक अनवरत उपलब्ध होते रहे जिनसे असंख्य असंस्कारियों में श्रद्धा का उन्मेष हुआ, अनेक श्रद्धालुओं में विवेक का प्रकाश हुआ, बहुत से विवेकियों की साधना प्रारम्भ हुई और काफी संख्या में ऐसे हैं जिन्हें शान्ति, सन्तोष, कृतार्थता की उपलब्धि हुई। वेदान्त-परम्परा अनादिकाल से शास्त्र की आचार्योक्त व्याख्या को समझकर जीवन में लाने की रही है। अनुभव में वेदान्त विज्ञान का अवसान है, केवल चिन्तन-कुशलता का लगभग कोई महत्त्व नहीं है। समय-समय पर ग्रन्थकार, आचार्य हुए एवं जो ग्रन्थरचना में नहीं भी संलग्न हुए, ऐसे ब्रह्मनिष्ठ भी ‘कथयन्तक्ष्च मां नित्यम्’ के भगवन्निर्देश का पालन करते हुए मुमुक्षुओं का पथप्रदर्शन करते ही रहे हैं। शास्त्र-वचनों का सार हृदयंगम करना साधकों के लिये अनिवार्य है।
उपनिषत्-साहित्य में बृहदारण्यक का अत्यन्त महत्त्व है। सबसे विस्तृत भाष्य उसी पर है, सुरेश्वराचार्य ने उसी पर बारह हज़ार श्लोकों का वार्तिक रचा! उपनिषदें सभी परिपूर्ण हैं पर जितना संग्रह इस बृहदारण्यक में सुलभ है उतना अन्यत्र नहीं यह प्रत्यक्ष ही है। इसका एक प्रसिद्ध मन्त्र आचार्य श्रीभारती तीर्थ को इतना गम्भीर लगा कि उन्होंने पंचदशी में एक समूचे प्रकरण में दो सौ अट्ठानबे श्लोकों में उसका विवेचन किया। फरवरी सन् १९८५ में श्री महाराजजी ने तद्नुसार उस मन्त्र पर प्रवचन दिये थे जिनमें कुछ को पट्टलेखों में एकत्र किया गया था पर उनमें से भी अनेक बिगड़ गये और वह वक्तव्यमाला अतिखण्डित रूप में बच पायी। श्रद्धालु श्री महेश पचौरी ने अथक परिश्रम से पट्टलेख सुनकर यथासम्भव लिपिबद्ध किया। जितना भाग संग्रह हो पाया वही सुरक्षित रह जाये-इस भाव से ग्यारह प्रवचन प्रकाशित किये जा रहे हैं। आदि-मध्य-अन्त तीनों खण्डित होने पर भी उपलब्ध उपदेश साधन-निरूपण के लिये पर्याप्त है। ब्राह्मणोपयोगी वित्त की चर्चा अतिगम्भीर है। ज्ञानयोग्यता पाने की कोशिश हर कल्याणेच्छुक की प्राथमिकता होती है। साध्यविचार आवश्यक है लेकिन उसे समझ पाने के लिये ज़रूरी साधन अपनाना और भी अधिक अनिवार्य है। अतः महाराजश्री जी ने इस विषय पर विशेष बल दिया है। ‘मदर्स इण्टरनैश्नल’ विद्यालयमें आयोजित प्रवचन श्रृंखला का भी इस पुस्तक में समायोजन कर लिया गया है।
Reviews
There are no reviews yet.