Mudgal Puranam Part-3 (मुद्गल पुराणम् भाग-3)
₹1,487.00
Author | Prof. Dalveer Singh Chauhan |
Publisher | Chaukhamba Sanskrit Series Office |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st edition, 2023 |
ISBN | - |
Pages | 657 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0385 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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मुद्गल पुराणम् भाग-3 (Mudgal Puranam Part-3) इस पुराण में श्रीगणेश के अनेकों अवतारों की कथा वर्णित है। वैसे यदि गम्भीरतापूर्वक विचार किया जाये तो सभी पुराणों की कथा काल्पनिक अधिक और ऐतिहासिक कम हैं। उसी प्रकार इस पुराण की सब कथायें प्रायः काल्पनिक हैं, जिनका उद्देश्य कुछ अन्य ही है, एक तो यह कि इसमें जो श्रीगणेश के अवतार हैं, वे सभी उन नामों से प्रस्तुत किये गये, जिनको मार कर योग की सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। जो सब योग के क्षेत्र में योगी के शत्रु हैं। मुगल मुनि एक महायोगी थे। उनके विषय पूर्ण परिचय तो प्राप्त नहीं होता है; परन्तु महाभारत ग्रन्य के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि वे एक महान् योगी और अद्वैतवाद के समर्थक थे। इसलिये देवराज ने उनकी तपस्या भंग करने के लिये दुर्वासा ऋषि को भेजा तो उन्होंने भोजन मांगा, तो तीन माह तक अपने व्रत पारण तक सारा भोजन देते रहे और कहा कि-
अहं तपसि संविष्टः शिलोच्छाजीवमाश्रितः। दश पञ्च दिनेष्वेव द्वादश्यां पारणं मम।।
द्रोणमात्रं चिनोभ्यन्नमुपोषण समन्वितः। तेनान्नेन यथान्यायं पञ्च यागान् करोम्यहम्।।
तीन मास तक कुछ भी न खाने के बाद भी मुद्गल मुनि व्रत से विचलित नहीं हुए। उनके उस व्यवहार से प्रसन्न होकर दुर्वासा मुनि उन्हें वर देकर चले गये। दुर्वासा मुनि के चले जाने पर स्वर्ग से एक विमान उन मुद्गल मुनि को लेने के लिये आ गया। उस समय मुद्गल का उस देवदूत के साथ संवाद हुआ। उन्होंने कहा कि स्वर्ग सुख शाश्वत नहीं है; क्योंकि वहाँ पर चित्त का स्वास्थ्य नहीं है। इसमें भेद भी है, ऐसा विचार करके वे मुद्गल मुनि स्वर्ग जाने के लिये तैयार नहीं हुए और फिर वह विमान उनके बिना ही लौट गया। उसके बाद अपने पिता अंगिरा को उन्होंने बताया। तब अंगिरा ने मुद्गल के लिये गाणेश अद्वैत सिद्धान्त परम ब्रह्म सम्पन्न ज्ञान का उपदेश दिया और एकाक्षर मन्त्र ॐ में दीक्षित किया।
इसी बीच में मुद्गल की पत्नी आत्रेयी ने पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम ‘नाक’ यह रखा गया। उसके बाद उस पुत्र को उनकी माता को सौंप कर मुद्गल पुनः तप करने निकल पड़े। उनके तीव्र तप से प्रसन्न श्रीगणेश प्रकट होकर बोले कि हे मुद्गल ! मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूँ। अतः तुम भक्तिपथ का यद्यपि यह पुराण प्रमुख अठारह पुराणों में अन्तर्भूत नहीं है और न ही उपपुराणों की संख्या में ही आता है, तथापि यह आन्त्य पुराण है, ऐसा उल्लेख पुराणों के अध्ययन की समाप्ति में देखा जा रहा है।
पुराणस्यास्य विनिर्मात्रे श्रीगणेशावतारिणे। ब्रह्मस्वरूपिणे तुभ्यं मुद्गलाय नमो नमः ।।
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