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Mudgal Puranam Part-4 (मुद्‍गल पुराणम् भाग-4)

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Author Prof. Dalveer Shingh Chauhan
Publisher Chaukhambha Krishandas Akadami
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st edition, 2023
ISBN -
Pages 445
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0386
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Description

मुद्‍गल पुराणम् भाग-4 (Mudgal Puranam Part-4)  सप्तम खण्ड की सामाजिक उपादेयता

यह खण्ड ममतासुर की कथा से प्रारम्भ होता है। यह ममतासुर पार्वती और शंकर के विवाह से सम्बन्धित है। जब पार्वती ने शंकर को तप द्वारा विवाह हेतु जीत लिया तब उनके प्रसन्नतापूर्ण हास्य से एक ममतासुर दैत्य की उत्पत्ति हो गयी। तब दैत्य शंबर के परामर्श से उसने श्रीगणेश से तीनों कालों में, तीनों गुणों से बने चारों प्रकार के प्राणियों से न मरने का वर लेकर समस्त ब्रह्माण्ड पर अपना राज्य स्थापित कर लिया और ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सूर्य और शक्ति सब देवों को वन में भूखे रहने को विवश कर दिया। उसके बाद उस दैत्य ने अहंकारवश यज्ञों का विध्वंस शुरू कर दिया। मन्दिरों में देव मूर्तियों यहाँ तक कि श्रीगणेश की मूर्तियों को तुड़वा कर अपनी मूर्तियाँ स्थापित करना प्रारम्भ कर दिया। स्वर्ग की अप्सराओं का भोग करना प्रारम्भ कर दिया। प्रभुता पाकर वह दैत्य जब घोर अत्याचार करने लगा तब सब देवों ने श्रीगणेश की स्तुति की। तब चिरकाल तक तप करने के बाद श्रीगणेश प्रकट हुए। तब श्रीगणेश ने नारद जी को सन्धि के लिये भेजा तो नारद जी ने कहा कि हे दैत्य ! तुम देवताओं से सन्धि कर लो, उससे तुम्हारा ही कल्याण होगा। वे किसी के पक्षधर नहीं हैं। वे तो शान्ति चाहते हैं। उनकी बात मान लो, अन्यथा मारे जाओगे। ऐसा ही शुक्राचार्य ने कहा। तब उसने अपने दैत्य राजाओं से पूछा तो ममतासुर के पुत्र धर्म और अधर्म ने कहा कि युद्ध में मर कर वीरगति प्राप्त करना उचित है, सन्धि ही करेंगे। उसके बाद युद्ध हुआ और फिर सब देवता पराजित होकर भाग गये। उसके बाद श्रीगणेश ने कमल को छोड़ दिया। उसकी गन्ध से उसके दोनों पुत्र मारे गये और दैत्य सेना में हाहाकार मच गया। सब सेना भाग गयी। उसके बाद ममतासुर ने उस कमल की स्तुति कर उसे शान्त किया और फिर वह श्रीगणेश के पास गया और उनकी स्तुति की और पूछा कि हे देव! आपका मैं भक्त हूँ, फिर भी आप देवताओं के पक्ष में क्यों आये? तब श्रीगणेश ने कहा कि हे दैत्यराज ! मैं किसी का पक्षधर नहीं हूँ। जब जो घमण्ड में चूर होकर अत्याचार करने लगता है, मैं उसका घमण्ड चूर करने के लिये अवतार लेता हूँ और उसका घमण्ड नष्ट कर संसार में शान्ति स्थापित करता हूँ। इसलिये हे दैत्यराज ! सत्ता प्राप्त कर मनुष्य को अहंकार नहीं करना चाहिये और घमंड में चूर होकर अत्याचार नहीं करना चाहिये। जब देवताओं के अत्याचार बढ़ जाते हैं तो मैं किसी दैत्य को वर देकर या दिलवा कर उसे इतना शक्तिशाली बना देता हूँ कि वह देवताओं के घमंड को चूर-चूर कर देता है। तथा जब दैत्यों का अत्याचार बढ़ जाता है तब अवतार ग्रहण कर उसका घमंड नष्ट करता हूँ। इस प्रकार यह कथा आधुनिक समाज के लिये अत्यन्त शिक्षाप्रद है। जो सत्ता, धनसम्पत्ति पाकर घमण्ड न करने की सलाह देती है। अन्यथा परिणाम नाशक ही होगा। अतः इस कथा से सामाजिक समरसता की शिक्षा भी प्राप्त होती है तथा यह भी सिद्ध होता है कि वह पूर्ण ब्रह्म परमात्मा पक्षपाती नहीं है। वह घमंड और अत्याचार का नाश अवश्य करता है।

अष्टम खण्ड की सामाजिक उपादेयता

समस्त मुद्गल पुराण में श्रीगणेश पूर्ण ब्रह्म के रूप में चित्रित हैं। उनका साकार रूप प्रतीकात्मक वे निराकार रूप में भी चित्रित किये गये हैं। उचित भी है; क्योंकि साकार की शक्ति सीमित होती है, वह सबमें व्याप्त नहीं हो सकता।

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