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Nitya Karma Puja Prakash (नित्यकर्म पूजाप्रकाश)
₹80.00
Author | Pt. Lal Bihari Mishr |
Publisher | Gita Press, Gorakhapur |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 92nd edition |
ISBN | - |
Pages | 382 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 1 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | GP0015 |
Other | Code - 592 |
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CompareDescription
नित्यकर्म पूजाप्रकाश (Nitya Karma Puja Prakash) भारतीय संस्कृति पुनर्जन्म एवं कर्म-सिद्धान्त पर आधारित है। संसारमें सर्वत्र सुख-दुःख, हानि-लाभ, जीवन-मरण, दरिद्रता- सम्पन्नता, रुग्णता-स्वस्थता और बुद्धिमत्ता-अबुद्धिमत्ता आदि वैभिन्य स्पष्ट-रूपसे दिखायी पड़ता है। पर यह वैभिन्य दृष्ट- कारणोंसे ही होना आवश्यक नहीं, कारण कि ऐसे बहुत सारे उदाहरण प्राप्त होते हैं, कि एक माता-पिताके एक साथ जन्मे युग्म बालकोंकी शिक्षा-दीक्षा, लालन-पालन आदि समान होनेपर भी व्यक्तिगत रूपसे उनकी परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं, जैसे कोई रुग्ण, कोई स्वस्थ, कोई दरिद्र तो कोई सम्पन्न, कोई अंगहीन तो कोई सर्वांग-सुन्दर इत्यादि । इन बातोंसे यह स्पष्ट है कि जन्मान्तरीय धर्माधर्मरूप अदृष्ट भी इन भोगोंका कारण है। अतः मानव-जन्म लेकर अपने कर्तव्यके पालन और स्व-धर्माचरणके प्रति प्रत्येक व्यक्तिको अत्यधिक सावधान होना चाहिये।
प्रत्येक मनुष्यके जीवनमें कुछ क्षण ऐसे होते हैं, जब उसकी बुद्धि निर्मल और सात्त्विक रहती है तथा उन क्षणोंमें किये हुए कार्यकलाप (कर्म) शुभ कामनाओंसे समन्वित एवं पुण्यवर्धन करनेवाले होते हैं, पर सामान्यतः काम-क्रोध, लोभ-मोह, मद- मात्सर्य, ईर्ष्या-दम्भ, राग-द्वेष आदि दुर्गुणोंके वशीभूत मानवका अधिकतर समय पापाचरणमें ही व्यतीत हो पाता है, जिसे वह स्वयं भी नहीं समझ पाता। चौबीस घंटेके समयमें यदि हमने एक घंटेका समय भगवदाराधन अथवा परोपकारादि शुभ कार्योंके निमित्त अर्पित किया तो शुभ कार्यका पुण्य हमें अवश्य प्राप्त होगा। पर साथ ही तेईस घंटेका जो समय हमने अवैध अर्थात् अशास्त्रीय (निषिद्ध) भोग-विलासमें तथा उन भोग्य पदार्थोंके साधन-संचयमें लगाया तो उसका पाप भी अवश्य भोगना पड़ेगा। इसलिये जीवन का प्रत्येक क्षण भगवदाराधन के रूपमें परिणत हो जाय-इसकी आवश्यकता है, जिससे मनुष्य अपने जीवनकालमें भगवत्संनिकटता प्राप्त कर सके और पूर्ण रूप से कल्याणका भागी बने। इसीलिये वेद-शास्त्रोंमें प्रातःकाल जागरणसे लेकर रात्रि-शयनतक तथा जन्मसे लेकर मृत्यु-पर्यन्त सम्पूर्ण क्रिया-कलापोंका विवेचन विधि-निषेध के रूप में हुआ है, जो मनुष्यके कर्तव्याकर्तव्य और धर्माधर्म का निर्णय करता है।
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