Vopadev Ka Sanskrit Vyakaran Ko Yogdan (वोपदेव का संस्कृत व्याकरण को योगदान)
₹895.00
Author | Dr. Shanno Grover |
Publisher | Vidyanidhi Prakashan, Delhi |
Language | Sanskrit Text With Hindi Translation |
Edition | 2020 |
ISBN | - |
Pages | 567 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | VN0055 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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वोपदेव का संस्कृत व्याकरण को योगदान (Vopadev Ka Sanskrit Vyakaran Ko Yogdan) संस्कृत की एक सुप्रसिद्ध उक्ति है- युगे युगे व्याकरणान्तराणि, समय-समय पर भिन्न-भिन्न व्याकरणों की रचना होती रहती है। आचार्य पाणिनि-जिन्होंने व्याकरणसम्प्रदाय में अभूतपूर्व ख्याति प्राप्त की-इसके प्रमाण के रूप में ‘इति पाणिनि’ शब्द ही पर्याप्त है जिसका अर्थ है- पाणिनि शब्दो लोके प्रकाशते पाणिनि शब्द लोकप्रसिद्ध है ने भी अपने ग्रन्थ में अपने से पूर्ववर्ती दस वैयाकरणों का नामतः उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त प्रांचाम् और उदीचाम् आदि के द्वारा उन्होंने पूर्वी भारत तथा उत्तरी भारत के व्याकरण सम्प्रदायों का सङ्केत किया है। ‘इन्द्रश्चन्द्रः काशकृत्स्न-आपिशलिः, शाकटायनः, पाणिन्यमरजैनेन्द्रा: जयन्त्य ष्टादिशब्दिकाः’ इस पद्य में आठ आदि शब्दिकों, वैयाकरणों का उल्लेख है।
संस्कृत व्याकरण की महनीय परम्परा आचार्य पाणिनि के सर्वाङ्गसुन्दर व्याकरण के साथ ही, जिसने उनका संदेश बच्चे-बच्चे तक पहुँचा दिया था, आकुमारं यशः पाणिनेः, अवरुद्ध नहीं हुई। उनके पश्चात् भी नाना व्याकरणों की रचना हुई। इन व्याकरणों के रचयिताओं ने अपने-अपने ढंग से संस्कृत के व्याकरण को प्रस्तुत किया है। इन व्याकरणों की आवश्यकता सम्भवतः दो कारणों से अनुभव की गई जिनमें पहला था संक्षेप। पाणिनि व्याकरण बड़ा था यद्यपि अति सुश्लिष्ट तथा संस्कृत भाषा के विशाल स्वरूप को देखते हुए बहुत संक्षिप्त था तो भी परवर्ती वैयाकरणों को वह बहुत बड़ा लगा। उसे और अधिक संक्षिप्त करने की आवश्यकता उन्होंने अनुभव की। इसके साथ पाणिनि व्याकरण उन्हें दुरूह भी लगा। उसकी जटिल प्रक्रिया को सरल रूप में प्रस्तुत करने की इच्छा भी उनमें जगी। दूसरा कारण सम्भवतः था भाषा में समय-समय पर होने वाले परिवर्तनों को भी व्याकरण की परिधि में लाना, नये शब्द रूपों का विश्लेषण करना जो कि पाणिनि व्याकरण परम्परा में उक्तानुक्त दुरुक्त चिन्ता रूप वार्तिकों के रूप में प्रारम्भ हो गया था।
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