Charak Samhita Set of 2 Vols. (चरक संहिता 2 भागो में)
₹1,350.00
Author | Pt. Shiv Prasad Sharma |
Publisher | Khemraj Sri Krishna Das Prakashan, Bombay |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2023 |
ISBN | - |
Pages | 1950 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | KH0080 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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चरक संहिता 2 भागो में (Charak Samhita Set of 2 Vols.)
“आयुर्वेदोपदेशेषु विधेयः परमादरः”
आयुर्वेदके उपदेशोंको परम आदरसे धारण करना चाहिये। यह क्यों ? इसलिये कि, यह ‘धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषायोंकी आधारभूत मनुष्यकी आरोग्यताकी प्राप्ति और आयुकी रक्षाके लिये है। और-
“हिताहितं सुखं दुःखमायुस्तस्य हिताहितम् ।
मानश्च तच्च यत्रोक्तमायुर्वेदः स उच्यते ॥”
अर्थात् जिस शास्त्रमें आयुसंबन्धी हित अवस्था, अहित अवस्था, सुखी अवस्था, दुःखी अवस्था, आयु, आयुका हित और अहित तथा आयुका परिमाण यथार्य-रूपसे कहे हों उसे आयुर्वेद कहते हैं। महात्मा धन्वन्तरिजीने सुश्रुतमें कहा है कि-
“एकोत्तरं मृत्युशतमथर्वाणः प्रचक्षते ।
तत्रैकः कालसंज्ञस्तु शेषास्स्वागन्तवः स्मृताः ॥”
अर्थात्-अथर्ववेदके जाननेवाले ‘१०१ मृत्युएँ होती हैं ‘ऐसा कहते हैं, उनमेंसे जो अवश्यम्भावी समयोचित एक मृत्यु है उसको कालमृत्यु कहते हैं शेप सी मृत्युओंको आगन्तुक (अकालमृत्यु) कहते हैं। उन १०० मृत्युओंसे बचनेके लिये ही आयुर्वेदके उपदेशोंको परभ आदरसे धारण करना चाहिये. क्योंकि, यह आयुर्वेदही धर्मादि चतुर्विध पुरुषार्थका साधनभूत आयुका रक्षक है।
यह आयुर्वेद प्रथम ब्रह्माके हृदयमें आविर्भूत हुआ, ब्रह्माने दक्ष प्रजापतिको पढाया, दक्षसे अश्विनीकुमारोंने पढा, अश्विनीकुमारोंने इन्द्रको पढाया, इन्द्रके यहांसे भरद्वाज (आयुर्वेदको) लाये और सांगोपांग ऋषिर्योको सुनाया। और इसी आयु र्वेदको महात्मा आत्रेयजीने आत्रेयसंहितानामक पचास हजार श्लोकोंमें एक संहिता बनाकर अग्निवेश आदि अपने छः शिष्योंको पढाया। फिर इन छःओं शिष्योंने भगवान् आत्रेयजीसे आयुर्वेदको पढकर अपने २ नामसे छः संहितायें बनाई उन सर्वोमें अग्निवेशकृत संहिता अत्युत्तम मानी गयी, इस संहिताकी ऋषि और देवताने भी प्रशंसा की। यह संपूर्ण संहितायें आज कल लुप्तप्राय सी होगयीं हैं।
इनके सिवाय शल्यशालाक्यतंत्र में भगवान् धन्वंतरिजीकी संहिता अत्युत्तम मानीगयी। भगवान् धन्वतरिजीने सुश्श्रुत आदि अपने शिष्योंको शल्यशालाक्य-प्रधान जो आयुर्वेदका उपदेश किया उसको महात्मा नागार्जुनने संग्रह किया, वह ग्रन्थ “सुश्रुतसंहिता” नामसे प्रख्यात और अति उत्तम तथा शल्यशालाक्य चिकित्सामें अति श्रेष्ठतम मानागया। और वृद्धवाग्भट्ट वाग्भट्टआदि और संहितायें भी चरक और सुश्रुतसे पीछे बनीं।
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