Abhinava Stotravali (अभिनवस्तोत्रावलिः)
₹240.00
Author | Shashishekhar Chaturvedi |
Publisher | Chaukhamba Surbharati Prakashan |
Language | Sanskrit, Hindi & English |
Edition | 2011 |
ISBN | 978-9380326610 |
Pages | 84 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSP0064 |
Other | Dispatched in 3 days |
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अभिनवस्तोत्रावलिः (Abhinava Stotravali) भक्तिमार्ग अन्य सभी मार्गों से उत्तम होता है। भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा कि ज्ञानयोग से पराभक्ति की प्राप्ति होती है और पराभक्ति से भगवत्प्राप्ति।भगवत्प्राप्ति ही मोक्ष है-
ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति।
समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम्॥ – भ.गी. १८/५४
और-
भक्त्या माभिजानाति यावन्यश्चास्मि तत्त्वतः।
ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम्॥ – भ.गी. १८/५४
स्तोत्र ही उस पराभक्ति और मुक्ति का सर्वोत्तम उपाय है। महाकवि कालिदास ने भी ‘स्तोत्रं कस्य न तुष्टये’ कहकर स्तोत्रों के महत्त्व का प्रतिपादन किया है। प्रसिद्ध है कि अपने समय का सवश्रेष्ठ पण्डित रावण ‘शिवताण्डवस्तोत्र’ से भगवान् शङ्कर को प्रसन्नकर अपना मनोवाञ्छित प्राप्त करता था। अनेक विद्वानों के द्वारा रचित महान् स्तोत्रों की श्रृंखला में काश्मीर शैवदर्शन के सर्वश्रेष्ठ आचार्य अभिनवगुप्तपाद के द्वारा रचित स्तोत्र भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इन स्तोत्रों का अद्यावधि कोई अनुवाद नहीं हो पाया था। प्रस्तुत संस्करण में अभिनवगुप्त के स्तोत्रों का हिन्दी और आंग्लभाषा प्रेमियों-दोनों के लिए अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है।
‘अभिनवस्तोत्रावलिः’ शीर्षक के अन्तर्गत भैरवावतार अभिनवगुप्तपादाचार्य के द्वारा रचित और वर्तमान में प्राप्त होने वाले कुल दश स्तोत्रों का अनुवाद किया गया है। इनके स्तोत्रों में शिव और उसकी पराशक्ति की स्तुति की गयी है। इसमें शिव के विश्चोतीर्ण और विश्वमय अवस्था के साथ-साथ उसको परा नामक शक्ति जो पुराणादि में लक्ष्मी, सरस्वती आदि अनेक नामों से जानी जाती है, का वर्णन है। इन स्तोत्रों में ज्ञानयोग एवं भक्तियोग की निर्मल धारा अविरल प्रवाहमान है। अन्य स्तोत्रों की अपेक्षा अभिनवगुप्त के स्तोत्र अलग महत्त्व रखते हैं क्योंकि इनमें भक्ति-भावना के साथ-साथ काश्मीर शैवदर्शन के तत्त्वों एवं सिद्धान्तों का भी समावेश है। इसलिए ये स्तोत्र शोधकार्य की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
प्रस्तुत संस्करण में अनुवाद करते समय यह ध्यान रखा गया है कि भावों की अभिव्यक्ति में कोई स्खलन न हो फिरभी त्रुटियाँ मानव स्वभाव हैं इसलिए पाठकों एवं विद्वानों से उचित सुझाव अपेक्षित हैं जिनका बाद के संस्करण में संशोधन अवश्य कर दिया जायेगा।
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