Ram Raksha Subodhani (रामरक्षासुबोधनी)
₹208.00
Author | Nityanand Mishra |
Publisher | Chaukhambha Viswabharati |
Language | English & Sanskrit |
Edition | 2022 |
ISBN | 978-93-91730-11-6 |
Pages | 143 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CVB0010 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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रामरक्षासुबोधनी (Ram Raksha Subodhani) स्तोत्र शब्द के श्रवणमात्र से एक ही साथ कई भावों का उदय होता है जैसे श्रद्धा, भक्ति, विश्वास, आत्मसमर्पण (प्रणिधान) आदि निष्काम भाव, तो दूसरी ओर उसकी फलश्रुति के रूप में सकाम भाव भी उदित होते हैं जो तात्कालिक अथवा कालान्तर में मिलने वाले फलों में आस्था के वाहक होते हैं। विश्व की सभी संस्कृतियों में किसी न किसी रूप में हमें स्तोत्र की परम्परा मिल ही जाएगी। भारतीय संस्कृति में सर्वाधिक मूल्य धारण करने वाली संस्कृत भाषा में स्तोत्रों की संख्या इतनी अधिक है कि इसके समावेश के लिए ‘स्तोत्र-साहित्य’ का इतिहास जैसी कल्पना की गई है। जब स्तोत्रों की परिगणना से काम नहीं चला तो इसके लक्षण देने की आवश्यकता हुई-लक्षणप्रमाणाभ्यामर्थसिद्धिः। यही नहीं, आगे भी कहा गया-
ऋषयोऽपि पदार्थानां नान्तं यान्ति पृथक्त्वशः ।
लक्षणेन तु सिद्धानामन्तं यान्ति विपश्चितः ॥
अतः शतकोटि-प्रविस्तर स्तोत्र-समूह के लक्षण से इसका स्वरूप समझाने के प्रयास हुए। वैदिक युग की याज्ञिक परम्परा में यह पारिभाषिक शब्द था। प्रगीतमन्त्रसाध्या स्तुतिः अथवा “साम-गान से विशिष्ट मन्त्रों के संकलन” के रूप में परिभाषित था। क्रमशः कालान्तर में इसका अर्थविस्तार हुआ तो यह स्तव, स्तवन या स्तुति का पर्याय हो गया। ये सभी समान धातु (स्तु) से उत्पन्न हैं। प्रशंसा शब्द अतिलौकिक है, नुति प्राचीन शब्द है जो ईश्वर वाचक प्रणव का स्मरण कराता है। स्तूयतेऽनेनेति स्तोत्रम् इस निरुक्ति के आधार पर जिस शब्दरूप-करण (साधन) के द्वारा हम किसी आराध्य देवता या गुरु से अभीष्ट कामना (अभ्युदय या निःश्रेयस) की पूर्ति के लिए स्वसमर्पण-पूर्वक निवेदन कर रहे हों, वही स्तोत्र है।
संस्कृत में लघुतम ॐकार से लेकर सहस्राधिक पद्मों वाले बृहत्तम स्तोत्र भी हैं। वेदों के सूक्त तो स्तोत्रों के आदिरूप हैं ही, सहस्रों वर्गों की सुदीर्घ सनातन परम्परा में लक्षाधिक स्तोत्र रचे गये, भारत के कोने-कोने में इनका प्रचार-प्रसार हुआ। आधुनिक युग में भारतीयों के साथ विश्व भर में स्तोत्रों की यात्रा हुई। अब केवल संस्कृत और उनके हिन्दी या अन्य भारतीय भाषाओं में हो अनुवाद से काम नहीं चलता, अपितु रोमन लिपि में स्तोत्रों के प्रकाशन तथा अंग्रेजी आदि विदेशो भाषाओं में भी उनके अनुवाद प्रकाशित हो रहे हैं।
कुछ लोग श्रद्धावश तो कुछ लोग उत्सुकतावश भी इन्हें खरीदकर अपने पास रखने में गौरव की अनुभूति करते हैं। देवताओं में प्रायः शिव, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, राम, कृष्ण, सूर्य, गणेश, विष्णु, गुरु (शंकराचार्य आदि) आदि के स्तोत्र बहुत लोकप्रिय हैं। ऐसे ही वर्गीकरण करके स्तोत्र संग्रह (बड़े-छोटे) विभिन्न संस्थाओं से प्रकाशित हुए हैं, कहीं-कहीं सानुवाद प्रकाशन है तो कहीं मूलमात्र ही स्तोत्र हैं। स्तोत्र-विषयक इस संक्षिप्त निरीक्षण के आलोक में श्रीराम-विषयक श्रीरामरक्षास्तोत्र की लोकप्रियता असीम है, असंख्य श्रद्धालु इसका दैनिक पाठ करते हैं। अनेक लोग तो इतने श्रद्धालु हैं कि इसका ताबीज बनाकर इसे कण्ठ या बाँह पर धारण करते हैं। विभिन्न लोगों ने इसके पाठ या प्रयोग से अपार संकटों से मुक्ति के संस्मरण दिये हैं। यह स्तोत्र का लौकिक पक्ष है। एक जापानी छात्र ने साठ के दशक में मुझसे पटना विश्वविद्यालय में इस स्तोत्र का उच्चारण सीखा था तथा मेरे उच्चारण का ध्वन्यंकन भी किया था। उसके पास पुणे से प्रकाशित श्रीरामरक्षास्तोत्र का मूल देवनागरी संस्करण तथा अंग्रेजी अनुवाद भी संस्कृत पाठ के साथ था। उसका अनुरोध विशेष रूप से इसके विविध छन्दों का उच्चारण सीखने का था।
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