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Shravani Upakarma Paddhati (श्रावणी उपाकर्म पद्धति)

68.00

Author Dr. Ramamilan Mishra
Publisher Shree Vedang Sansthan Prayagraj
Language Hindi & Sanskrit
Edition 1st Edition
ISBN 978-81-937051-3-1
Pages 104
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code SVS0010
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Description

श्रावणी उपाकर्म पद्धति (Shravani Upakarma Paddhati) द्विजाति मात्र का आत्मशोधन कारक श्रावणी उपाकर्म पर्व वैदिक काल से ही मनाया जा रहा है शास्त्रोक्त पथ से चलते हुए भी मानव से स्वभावतः प्रमाद या अज्ञानतावशात् पाप कर्म हो ही जाते हैं, अतः ऋषियों ने उन पापकर्मों के पाप फलशमनार्थ प्रायश्चित्त रूप में श्रावणी उपाकर्म करने का निर्देश किया है, जो कि प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाता है। श्रावणी उपाकर्म के दशविध स्नान तर्पण, सन्ध्योपासन (सूर्योपस्थान) ऋषि पूजन, यज्ञोपवीत प्रतिष्ठा व यज्ञोपवीत धारण प्रमुख अंग हैं।

किसी पवित्र जलाशय गंगादि नदियों के तट पर अधिक संख्या में लोग एकत्रित होकर श्रावणी उपाकर्म आचार्य या गुरु के निर्देशानुसार करते हैं। हेमाद्रि संकल्प जिसमें कि अनेक प्रकार के मानव सम्भावित पाप कर्मों के उल्लेखपूर्वक तत् शमन हेतु स्नान का संकल्प किया जाता है जिसको सुनने में भी व्यक्ति के मानस पटल पर उन कर्तव्यों को भविष्य में न करने की प्रेरणा मिलती है एवं पूर्व वर्ष में किये गये भूलवश पाप कर्मों का प्रायश्चित्त भी हो जाता है।

तर्पण द्वारा देव ऋषि व पितरों को संतुष्ट किया जाता है जिससे व्यक्ति का चतुर्विध उत्थान सम्भव होता है। ऋषियों के प्रति कृतज्ञता व आदर्श के भाव सप्तर्षिपूजन से पुनर्जागृत होते हैं, इससे ऋषि ऋण मुक्ति का भी पथ प्रशस्त होता है। ब्रह्मवर्चस् जागृत रहे व त्रिविध ऋणों का विस्मरण न हो इस हेतु यज्ञोपवीत का पूजन करके विधि पूर्वक यज्ञोपवीत धारण करते हैं अन्त में हवनादि करके विसर्जन किया जाता है।

इस प्रकार प्राचीन वैदिक परम्परा के निर्वाह के साथ ही हम अपने वाचिक, मानसिक, शारीरिक पापों को श्रावणी उपाकर्म के माध्यम से नष्ट करते हैं, सम्पूर्ण द्विजाति के लिए श्रावणी उपाकर्म प्रतिवर्ष अवश्य करणीय है।

श्रावणी उपाकर्म विधि का क्रमशः साङ्गोपाङ्ग विवेचन प्रायः सर्वत्र नहीं पाया जता, एक वर्ष में एकबार ही इसकी आवश्यकता पड़ती है अतः पुस्तकें भी कम प्राप्त होती हैं, इस स्थिति को ध्यान में रखकर द्विजों को श्रावणी का अवसर आसानी से प्राप्त हो सके और पुस्तक के कारण श्रावणी उपाकर्म बाधित न हो, अतः श्री वेदाङ्ग संस्थान, के द्वारा श्रावणी उपाकर्म की शास्त्रीय पुस्तक प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया।

श्रावणी उपाकर्म पद्धति पुस्तक सरल व सर्वोपयोगी हो इसका विशेष ध्यान रखा गया है किन्तु कुछ मौलिक बिन्दुओं को यथावत् ही रखा गया है जिससे कि श्रावणी उपाकर्म की गरिमा बनी रहे क्रम से सम्पूर्ण क्रियायें दी गयी हैं जिससे उपाकर्म कराने वाले आचार्यों को कठिनाई न होवे। स्वाभाविक रूप से पुस्तक में हुयी त्रुटियों को अवगत कराते हुए विद्वान लोग अवश्य कृतार्थ करेंगे इसी निवेदन के साथ सभी को श्रावणी उपाकर्म से अभीष्ट आध्यात्मिक लाभ की पुष्टि हो इसी कामना के साथ प्रस्तुत नवीन संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है।

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