Kalsarpa Shanti Paddhati (कालसर्प शान्ति पद्धति)
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Author | Dr. Ramamilan Mishra |
Publisher | Shree Vedang Sansthan Prayagraj |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2021 |
ISBN | 978-81-935160-7-2 |
Pages | 204 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SVS0011 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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कालसर्प शान्ति पद्धति (Kalsarpa Shanti Paddhati) सम्प्रति ज्योतिष योगों में ‘कालसर्प’ नामक योग लोगों को अधिक भयाक्रान्त कर रहा है, कुण्डली में कालसर्प योग है ऐसा जानकर जातक अत्यन्त अवसाद ग्रस्त हो जाता है और वह कुंठित भावना से युक्त होकर अपने भाग्य को धिक्कारने लगता है, जबकि कालसर्प वाले जातक को कभी भी हतोत्साहित नहीं होना चाहिए, क्योंकि मंगली योग, विषकन्या योग, अरिष्ट योग, वैधव्य योग, एक नक्षत्र जनन योगों की तरह काल सर्प योग शांति का भी विधान है, जिसको सम्पन्न करके आप आजीवन आमोदित हो सकते हैं।
कहा जाता है जब जातक पूर्व के किसी जन्मों में सर्प या नाग की हत्या करता है अथवा उसे नष्ट कर देता है तो ऐसे व्यक्ति की कुण्डली में कालसर्प नामक योग होता है और इसके दुष्प्रभाव से व्यक्ति अनेक प्रकार से पीड़ित होते हैं। इस योग से धन का अभाव, पुत्र की हानि, दरिद्रता, दाम्पत्य सुख, में बाधा, तथा आजीविका में बाधा, कारागार का भय, स्वजनों से त्याग, अपमृत्यु, (अकाल मृत्यु) अथवा अन्य अनिष्ट होते हैं विशेषतः जिस जिस भाव में राहु केतु स्थित होते हैं और जिन भावों में ग्रहों को आच्छादित किये रहते हैं उन भावों का अवरोध होता है। अतः उक्त योग होने पर इसकी शांति अवश्य करनी चाहिए। कालसर्प योग विशेषतः राहु, केतु की दशाओं में अधिक प्रबल होता है अत: इन दशाओं से पूर्व ही कालसर्प की शांति कर लेनी चाहिए।
कालसर्प योग का भय जन-जन में व्याप्त है किन्तु इसके शांति की कोई प्रामाणिक शास्त्रीय पद्धति उपलब्ध न होने के कारण कठिन साधनापूर्वक कालसर्पशांति पद्धति का लेखन किया गया है प्रस्तुत ग्रंथ के संबंध में विद्वानों के सुझावों का समादर किया जायेगा। कालसर्प शान्ति पद्धति निवेदित करने से पूर्व माता-पिता, गुरु तथा इष्टदेव का मनसा नमन करते हुए उन महनीय विभूतियों का स्मरण करता हूँ, जिनका आशीर्वाद व स्नेह पीयूषाभिषिञ्चन सर्वदा शास्त्रों के प्रति जीवन्त बनाये रखता है।
प्रस्तुत पद्धति वेदान्त के अधिकारी विद्वान एवं सन्तशिरोमणि वैकुण्ठवासी स्वामी सुबोधानन्द सरस्वती (चिन्मय मिशन प्रमुख, उत्तर भारत) तथा सुप्रसिद्ध सन्त स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी (टीकरमाफी) जी के शुभाशीर्वाद से, वेद- वेदाङ्ग व निखिल संस्कृत वाङ्मय के विद्वान् डॉ० सुन्दरलाल द्विवेदी, डॉ० अञ्जनी प्रसाद पाण्डेय (वि०वि० रीवा), डॉ० हीरालाल पाण्डेय, डॉ० गिरिजाशङ्कर शास्त्री, डॉ० भगवत् शरण शुक्ल (बी०एच०यू०) डॉ० बाबूलाल मिश्र, डॉ० चिरञ्जीवि शर्मा, डॉ० अल्पनारायण त्रिपाठी, श्री त्रिभुवननाथ पाण्डेय, श्री शम्भुनाथ त्रिपाठी ‘अंशुल’ प्रभृति विद्वानों के अनुग्रह से, प्रयाग में कर्मकाण्ड क्षेत्र में लब्ध प्रतिष्ठ विद्वान पं० श्री अवधेशनारायण पाण्डेय, पं० श्री अयोध्या प्रसाद शास्त्री, पं० श्री किशोर जी पाठक सहित पौरोहित्य/कर्मकाण्ड में संलग्न वरेण्य मित्रों की सम्मति से, विशेषतः पं० श्री आनन्द नारायण गौतम तथा पं० श्री विमलेश द्विवेदी द्वारा विषय वस्तु की उपलब्धता एवं सुझाव से, संस्कृत टंकण कार्य में अग्रगण्य श्री ब्रह्मानन्द मिश्र जी कम्प्यूटर वर्ण-संयोजन सहयोग से साकार हो सकी है तदर्थ आप सबके प्रति हार्दिक कृतज्ञता निवेदित करते हुए कालसर्पशान्ति पद्धति को सर्वजन हिताय समर्पित कर रहा हूँ।
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