Rudra Abhishek Paddhati (रुद्राभिषेक पद्धति)
₹70.00
Author | Dr. Ramamilan Mishra |
Publisher | Shree Vedang Sansthan Prayagraj |
Language | Sanskrit |
Edition | 2022 |
ISBN | 978-81-958056-1-7 |
Pages | 144 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SVS0006 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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रुद्राभिषेक पद्धति (Rudra Abhishek Paddhati)
नमर्मोऽस्तु रुद्रेब्भ्यो वे ऽन्तरिक्षे येषां व्वात ऽइर्षवः ।
तेब्भ्यो दश प्प्राचीद्दर्श दक्षिणा दर्श प्प्रतीचीईशोर्दीचीईशोर्ध्वा ।
तेब्भ्यो नमो॑ ऽअस्तु ते नौऽवन्तु ते नौ मृडयन्तु ते यं द्विष्मो अश्श्च नोद्वेष्टृितमॆषाञ्जम्भै दध्ध्मः ।।
सभी गृहस्थों को नित्य पञ्च देवोपासना करना चाहिए ऐसा शास्त्रादेश है। पंचदेवों मे गणेश, सूर्य, दुर्गा, विष्णु तथा शिव आते हैं। इनमें से शिव जी शीघ्र प्रसन्न होने वाले और भक्त के अभीष्ट को त्वरित् पूर्ण करने वाले महादेव हैं। शिव जी को शंकर, भव, शर्व, महादेव, नीलकण्ठ, त्रिपुरारी, पार्वतीनाथ, त्र्यम्बक, रुद्र तथा आशुतोष इत्यादि नामों से जाना जाता है। भगवान शिव परं कल्याणकारी देवता है। रुद्रहृदयोपनिषद् में रुद्र को सर्वदेवात्मक और सभी देवता शिवात्मक हैं ऐसा कहा गया है-
सर्वदेवात्मको रुद्रः सर्वेदेवाः शिवात्मकः। रुद्रात् प्रवर्तते बीजं बीजयोनिः जनार्दनः ।।
यो रुद्रः स स्वयं ब्रह्मा, यो ब्रह्मा स हुताशनः । ब्रह्मविष्णुमयो रुद्रः अग्नीसोमात्मकं जगत् ।।
इस तथ्य के अनुसार रुद्र या शिव की पूजा करने से सभी देवाताओं की पूजा स्वतः हो जाती है। अतः सभी को रुद्र की पूजा करनी चाहिए। क्योंकि रुतम् दुःखम् द्रावयति नाशयति इतिः रुद्रः अर्थात् दुःखों का नाश करे वह रुद्र है, यो वै रुद्रः स भगवान् जो रुद्र है वही भगवान् है।
नमस्कारप्रियो भानुर्जलधारा शिवोप्रियः ।
अलङ्कारप्रियो विष्णुः ब्राह्मणं मधुरं प्रियम्।।
अर्थात् भगवान सूर्य नमस्कार करने से प्रसन्न होते हैं तथा भगवान विष्णु अलंकार से प्रसन्न होते हैं जबकि भगवान शंकर जलधारा मात्र से ही शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव को निरंतर जलधारा से स्नान कराने को रुद्राभिषेक कहा जाता है। रुद्रस्य अभिषेक एव रुद्राभिषेकः – अर्थात् भगवान् रुद्र (शिव) का अभिषेक ही रुद्राभिषेक है।
अभिषेकं स्नानमभिषिञ्चनं वा अभिषिञ्चन अथवा स्नान कराने को अभिषेक कहा जाता है अतः शिवजी को निरन्तर स्नान कराना ही अभिषेक है। जलधारा का तात्पर्य अभिषेक करने से है, इसी तथ्य से शिवजी के रुद्राभिषेक की परम्परा प्रचलित हुई। सर्वप्रथम जल धारा से रुद्राभिषेक किया जाता था किन्तु कालान्तर में कामनानुसार दुग्धादि अनेक पदार्थों से रुद्राभिषेक की परम्परा प्रचलित हो गयी जिसका पालन आज भी हम सब करते हुए अपने अभीष्ट कामना को सिद्ध करते हैं।
शिवलिङ्ग पूजन की पौराणिक कथा- शिवलिंग के पूजन के प्रारम्भ होने के सम्बन्ध में पौराणिकी कथा है कि दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में शिवजी का भाग नहीं रखा, जिससे कुपित होकर सती ने दक्ष के यज्ञ मण्डप में योगाग्रि द्वारा अपना शरीर जलाकर प्राण त्याग कर दिया। सती के शरीर के त्याग को जानकर शिवजी अत्यन्त क्रुद्ध हो गये और वे नग्न होकर पृथ्वी में भ्रमण करने लगे। एक दिन वह नग्नावस्था में ही ब्राह्मणों के गांव में पहुंच गये। शिवजी के नग्न-स्वरूप को देखकर ब्राह्मणों की स्त्रियां उन पर मोहित हो गईं, स्त्रियों की मोहावस्था देखकर ब्राह्मणों ने शिवजी को शाप दिया कि ‘इनका लिंग इनके शरीर से तत्काल गिर जाय।’ ब्राह्मणों के शाप के प्रभाव से शिवजी का लिंग उनके शरीर से अलग होकर गिर गया, जिससे तीनों लोकों में घोर उत्पात होने लगा।
समस्त देव, ऋषि, मुनि व्याकुल होकर ब्रह्माजी की शरण में गये। ब्रह्मा ने योगबल से शिव-लिंग के अलग होने का कारण जान लिया और वह समस्त देवताओं, ऋषियों और मुनियों को अपने साथ लेकर शिवजी के पास पहुंचे। ब्रह्मा ने शिवजी से प्रार्थना की कि आप अपने लिंग को पुनः धारण कीजिए अन्यथा तीनों लोक नष्ट हो जायेंगे।’ ब्रह्माजी की प्रार्थना सुनकर शिवजी बोले आज से सभी लोग मेरे लिंग की पूजा प्रारम्भ कर दें, तो मैं पुनः अपने लिंग को धारण कर लूंगा।’ शिवजी की बात सुनकर ब्रह्माजी ने सर्वप्रथम सुवर्ण का शिवलिंग बनाकर पूजन किया। तभी से शिवलिंग के पूजन का प्रारम्भ हुआ।
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