Lalita Sahastranam (ललितासहस्रनाम)
₹595.00
Author | Bharat Bhushan |
Publisher | Chaukhambha Sanskrit Pratisthan |
Language | Hindi |
Edition | 2021 |
ISBN | 978-81-7084-058-9 |
Pages | 762 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0604 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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ललितासहस्रनाम (Lalita Sahastranam) ललितासहस्रनाम ब्रह्माण्यपुराण का अंश है। ब्रह्माण्डपुराण में इसका शीर्षक ‘ललितोपाख्यान’ के रूप में है। ललितासहस्रनाम मूल रूप में कई स्थानों से प्रकाशित हुआ है। सर जान बुडरफ विल्सन (एक्लोन ) ने तांत्रिक प्रन्यों में इसका अनेक स्थानों पर उल्लेख किया है। संस्कृत के अतिरिक्त अंग्रेजी में इसका भाष्य श्री आर० अनन्तकृष्ण शास्त्री ने किया है। तमिल में भी इसका भाष्य है। संस्कृत में इसकी परिभाषा ‘सौभाग्यभास्कर’ नाम से महान् मनीषी भास्करराय ने की है। सभी भाष्यों का बाधार भास्कर- राय-प्रणीत सौभाग्यभास्कर है। इस स्तोत्र को अत्यधिक लोकप्रिय बनाने का श्रेय इन्हें ही है। इन्हीं का दीक्षा नाम भासुरानन्दनाथ है। प्रस्तुत हिन्दी व्याख्या पूर्णतया इन्हीं के भाष्य पर आधारित है। सर्वप्रथम ‘सौभाग्यभास्कर’ का प्रकाशन निर्णयसागर प्रेस, बम्बई से हुवा था। ‘सौभाग्यभास्कर’ का रचना काल संवत् १७८५ माना जाता है और इसे भास्कर राय ने बनारस में पूर्ण किया था।
ललितासहस्रनाम में कुल मिलाकर ३२० (तीन सौ बीस) श्लोक हैं और ये तीन भागों में विभाजित हैं। पूर्व भाग में ५१, द्वितीय भाग नामावली में १८२३ तथा उत्तर भाग फलश्रुति में ८६३ श्लोक हैं। ब्रह्माण्ड पुराण के उत्तरखण्ड में भगवान् हयग्रीव और महामुनि अगस्त्य के संवाद के रूप में इसका विवेचन मिलता है। यह पुराण महर्षि वेदव्यास रचित १८वाँ और अन्तिम पुराण है। इसका अवलोकन करने से स्पष्ट हो जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने इस पुराण में तंत्र को अत्यधिक महत्त्व दिया है। ललितासहस्रनाम के पूर्व भाग, नामावली तथा फलश्रुति में अनेक बार श्रीविद्या और श्रीचक्र का उल्लेख है। सहस्रनाम के पारायण में भी श्रीविद्या तथा श्रीचक्र की उपासना पर बल दिया गया है। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि यह श्रीविद्या का मुख्य स्तोत्र है। पूर्व भाग तथा फलश्रुति के अनेक श्लोकों में इसका स्पष्ट उल्लेख है। नामावली में देवी के जो नाम आये हैं उनमें अधिकांश चक्रराज की देवियों तथा अधिष्ठात्रियों के नाम हैं। शरीर में स्थित चक्रों का विवरण और कुण्डलिनी जागरण की प्रक्रिया को भी गूढ संकेतों द्वारा बतलाया गया है। यह भी स्पष्ट है कि ललितासहह्ननाम के लिए श्रीविद्या और श्रीचक्र की साधना आवश्यक है और मह अधिकार बीक्षा से ही प्राप्त होता है।
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