Loading...
Get FREE Surprise gift on the purchase of Rs. 2000/- and above.
-15%

Subhagoday Stuti (सुभगोदयस्तुतिः)

574.00

Author Dr. Shyama Kant Dwivedi
Publisher Chaukhambha Sanskrit Series Office
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2018
ISBN 978-81-7080-341-6
Pages 606
Cover Hard Cover
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0605
Other Dispatched in 1-3 days

10 in stock (can be backordered)

Compare

Description

सुभगोदयस्तुतिः (Subhagoday Stuti)

‘श्रीमातस्त्रिपुरे परात्परतरे देवि ! त्रिलोकीमहा,

सौन्दर्यार्णवमन्थनोद्भवसुधाप्राचुर्यवर्णोज्ज्वलम्।

उद्यद्भानुसहस्रनूतनजपापुष्पप्रभं ते वपुः,

स्वान्ते मे स्फुरतु त्रिलोकनिलयं ज्योतिर्मयं वाङ्गमयम्।’ – ऋषि दुर्वासा- ‘त्रिपुरा-महिम्नस्तोत्र’

शाक्त दर्शन के महान आचार्य, ‘श्रीविद्या’ के अन्यतम साधक, ‘समयाचार’ के प्रकाशस्तंभ एवं आचार्य शङ्कर के परम गुरु ‘गौड़पादाचार्य’ की ‘श्रीविद्या’ सम्बंधिनी कृति ‘सुभगोदय-स्तुति’ श्री विद्या का अन्यतम ग्रंथ है। यद्यपि आचार्य गौड़पाद ने ‘श्रीविद्या’ पर ‘श्रीविद्यारत्नसूत्र’ नामक सूत्र-ग्रंथ भी लिखा है किन्तु वह भी ‘सुभगोदय स्तुति’ के समतुल्य नहीं है।

‘परशुराम कल्पसूत्र’, ‘नित्योत्सव’, ‘योगिनी हृदय’, ‘नित्याषोडशिकार्णव’, ‘ज्ञानार्णव’, ‘कामकलाविलास’, ‘वरिवस्यारहस्यम्’, ‘सौन्दर्यलहरी’, ‘सुभगोदय (शिवानन्द), ‘सुभगोदय वासना’ (शिवानन्द), भावनोपनिषद् ‘सोभाग्य हृदय स्तोत्र’ (शिवानन्द) ‘ललितासहस्त्रनाम’ ‘सौभाग्य सुधोदय’ (अमृतानन्द), ‘त्रिपुरामहिम्नस्तोत्र’ (क्रोधभट्टारक दुर्वासा) एवं ‘लक्ष्मीधरा’ (लक्ष्मीधर) आदि दर्जनों ग्रंथ है, जो भगवती महात्रिपुरसुन्दरो, ‘श्रीचक्र’ एवं श्री विद्या आदि विषयो पर प्रकाश डालते है किन्तु जो सामग्री ‘सुभगोदयस्तुति’ में प्रस्तुत की गई है वह अन्य ग्रंथों में उपलब्ध नहीं है। ‘कौलमत’ एवं ‘समयतम’ की विभाजक रेखायें कौन-सी है? दोनों मतों की दार्शनिक दृष्टियों में क्या भेद है? वेदान्त की अद्वैत दृष्टि से ‘समयाचार’ की अद्वैत दृष्टि में क्या भेद है? ‘कुण्डलिनी की ‘कुमारी’ ‘योषित’ एवं ‘पतिव्रता’ अवस्थायें क्या है? एक ही ‘महाबिन्दु’ से समस्त चक्रों की एवं विराट विश्व की उत्पत्ति कैसे हुई? -इन समस्त विषयों पर आचार्य गौड़पाद ने जिस विस्तार से प्रकाश डाला है वह अन्यत्र दुर्लभ है।

‘श्रीविद्या’ एवं ‘श्रीविद्या-साधना’ के मुख्यतम अवयव – १. भगवती महात्रिपुर सुन्दरी, (२) श्रीविद्या, ३. श्रीचक्र, ४. षोडशी-विज्ञान, ५. पञ्चदशाक्षरी विद्या और उसकी सर्वानुस्यूतता एवं ६. विश्वाहन्तात्मक विराट अद्वैतवाद आदि तत्त्व हैं। ‘श्रीयन्त्र’ भगवती का आसन है, उनका शरीर है, शिवशक्ति के रहने का निलय है, समस्त नित्याओं- योगिनियों-कलाओं-वाग्वृत्तियों, शक्तियों, त्रिवेदों, यंत्रों, मंत्रों, लोक-लोकान्तरों, वर्णों एवं मातृकाओं आदि सभी का मूल उत्स है। इतना ही नहीं समस्त विश्व का एवं ३६ तत्त्वों का भी यही निलय है। यह विराट विश्व का ज्यामितिक चित्र है। भावनोपनिषदकार के अनुसार-‘नवचक्ररूपं श्री चक्रम्’ अर्थात् “”स्वकीयो। देह एव त्रैलोक्यमोहनादिनव चक्रसमष्टिरूप श्रीचक्राभिन्नः।’

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Subhagoday Stuti (सुभगोदयस्तुतिः)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Navigation
×