Bala Tripura Sundari (बाला त्रिपुरसुन्दरी)
₹319.00
Author | Goswami Prahlad Giri |
Publisher | Chaukhambha Krishnadas Academy |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2018 |
ISBN | 978-81-218-0396-0 |
Pages | 344 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0652 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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बाला त्रिपुरसुन्दरी (Bala Tripura Sundari) ‘बाला त्रिपुरसुन्दरी’ ग्रन्थ का प्रथम खण्ड है-ज्ञानखण्ड। इस ग्रन्थमें ग्यारह आवरण विद्यमान हैं जो कि श्रीचक्रात्मक श्रीबाला त्रिपुरसुन्दरी चक्रमें अवस्थित देवताओंके स्वरूपका प्रदर्शन करते हैं। ज्ञान खण्डके अन्तर्गत विभिन्न आगम तथा शास्त्रोंसे समर्थित ज्ञानात्मक तथ्योंका प्रतिपादन किया गया है जिनके विशिष्ट विवेचन प्रसङ्गानुसार स्थान-स्थान पर प्राप्त है। अब ग्रन्थके आवरणोंका विवरण प्रस्तुत है:-
प्रथमावरणमें सर्वप्रथम श्रीपरदेवताके स्वरूपका वर्णन किया गया है। दशचक्रात्मक परयन्त्रराज श्रीचक्रका निरूपण हुआ है। इन्द्र आदि दश दिक्पालोंके स्वरूपका वर्णन किया गया है। इन्द्र आदि दश दिक्पाल हैं-इन्द्र, अग्नि, यम, नैऋत, वरुण, वायु, कुवेर, ईशान, ब्रह्मा तथा अनन्त दिक्पाल। सृष्टिक्रमसे प्रारम्भ करके सबसे पहले भूपुरका निरूपण किया गया है। भूपुरके चार द्वारोंमें द्वारपाल तथा द्वारनायिकाके रूपमें सर्वयोगिनीस्वरूप सर्वभूत, क्षेत्रपति, गण- नायक, वटुक भैरव, तिरस्करी, वनदुर्गा, कामदेव, वसन्त, शङ्ख- निधि, पद्मनिधि, कुब्जकेशी, सिद्धलक्ष्मी, उन्मनी तथा दक्षिण- कालिकाके स्वरूपका वर्णन हुआ है। भूपुरकी प्रथम रेखामें स्थित अणिमा आदि ग्यारह सिद्धियोंके स्वरूपका वर्णन हुआ है। अणिमा आदि ग्यारह सिद्धियाँ है-अणिमा, गरिमा, लधिमा, महिमा, ईशिता, वशिता, प्राकाम्यका, सर्वभुक्तिकरी, इच्छा, प्राप्ति तथा सर्वार्थ सिद्धि। भूपुरकी द्वितीय रेखामें स्थित ब्राह्मी आदि आठ मातृकाओंके स्वरूप- का वर्णन हुआ है। ब्राह्मी आदि आठ मातृकाएँ हैं-ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, माहेन्द्री, चामुण्डा तथा महालक्ष्मी मातृका। भूपुरकी तृतीय रेखामें स्थित सर्वसङ्क्षोभिणी आदि ग्यारह मुद्राओंके स्वरूप का वर्णन हुआ है।
सर्वसङ्क्षोभिणी आदि ग्यारह मुद्राएँ हैं-सर्वसङ्क्षोभिणी, महायोनि, सर्वविद्राविणी, सर्वाकर्षिणी, सर्ववशङ्करी, सवर्वोन्मादिनी, सर्वमहाङ्कुशा, सर्वखेचरी, सर्वबीजा, सर्वयोनि तथा सर्वत्रिखण्डा मुद्रा। इसके बाद भूपुर चक्रेश्वरी श्रीत्रिपुराके स्वरूपका वर्णन किया गया है।द्वितीयावरणमें वृत्तत्रय चक्रका निरूपण हुआ है। वृत्तत्रय चक्रके प्रथम वृत्तमें स्थित कालरात्री आदि ऊनतीस मातृकाओंके स्वरूपका वर्णन किया गया है। कालरात्री आदि ऊनतीस मातृकाएँ हैं- काल- रात्री, खातिता, गात्री, घण्टा, डार्णात्मिका, चण्डा, छात्मिका, जया, झङ्कारिणी, ज्ञानरूपा, टङ्कहस्ता, ठङ्कारिणी, डकारिणी, ढङ्कारिणी, णकारिणी, तकारिणी, थाणी, दाक्षायणी, धात्री, नादा, पार्वती, फेट्- कारिणी, बन्धिनी, भद्रकाली, माया, श्री, षण्ढा, सरस्वती तथा हंस- वती मातृका। वृत्तत्रय चक्रके द्वितीय वृत्तमें स्थित अमृता आदि षोलह मातृकाम्बाओंके स्वरूपका वर्णन किया गया है। अमृता आदि षोलह मातृकाम्बाएँ हैं-अमृता, आकर्षिणी, इन्द्राणी, ईशानी, उमा, ऊर्ध्व- केशी, ऋद्धि-रात्री, ऋद्धीश्वरी, लता, लका, एकपादा, ऐश्वयिका, ओङ्कारात्मिका, औषधा, अम्बिका तथा अक्षरात्मिका मातृकाम्बा। वृत्त- त्रय चक्रके तृतीय वृत्तमें स्थित कामेश्वरी आदि षोलह तिथि-नित्या- कलाओंके स्वरूपका वर्णन किया गया है। कामेश्वरी आदि षोलह तिथिनित्याकलाएँ है-कामेश्वरी, भगमालिनी, नित्यक्लिन्ना, भेरुण्डा, वह्नि-वासिनी, वज्रेश्वरी, शिव-दूती, त्वरिता, कुल-सुन्दरी, विमला, नील-पताका, विजया, सर्वमङ्गला, ज्वाला-मालिनी, विचित्रा तथा श्रीसुन्दरी तिथिनित्याकला। इसके बाद वृत्तत्रय चक्रेश्वरी त्रिपुरेशिनीके स्वरूपका वर्णन हुआ है।
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