Shodashi Mahavidya (षोडशी महाविद्या)
₹255.00
Author | Goswami Prahlad Giri |
Publisher | Chaukhambha Krishnadas Academy |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2015 |
ISBN | 978-81-218-0276-8 |
Pages | 401 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0651 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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षोडशी महाविद्या (Shodashi Mahavidya) संसारमें व्यक्ति सदैव अपने प्रयोजनोंकी सिद्धिमें लगा रहता है। इसमें उसका मूल लक्ष्य है ‘सुख प्राप्त करना’। इसलिए वह किसी इष्टदेवताकी उपासना करता है जिससे कि उसका कार्य निर्विघ्न पूर्ण हो सके। इष्टोपासनामें ‘पूजा, जप तथा होम’ ये तीन आवश्यक कर्म किये जाते हैं। जैसे-
१. पूजाके अन्तर्गत इष्टदेवताकी पूजा की जाती है। पूजा दो प्रकारकी होती है-मानसिक तथा बाह्य। मानसिक पूजाको उत्तम स्थान प्राप्त है; जबकि बाह्य पूजा निम्न श्रेणिकी है। इष्टदेवताकी पूजासे जगतमें साधककी पूजा होती है और वह सर्वत्र सम्मानित होता है।
२. जपके अन्तर्गत इष्टदेवताके मन्त्रका जप किया जाता है। जप करनेसे साधकको सिद्धिकी प्राप्ति होती है।
३. होमके अन्तर्गत इष्टदेवताके लिए होम किया जाता है। इसमें भिन्न-भिन्न कामनाओंके लिए भिन्न-भिन्न द्रव्योंसे होम किया जाता है। होमसे सभी प्रयोजनोंकी सिद्धि होती है। इसलिए आगम शास्त्रमें कहा गया है-
‘उत्तमा मानसी पूजा बाह्या पूजा कनीयसी।
पूजया लभते पूजां जपात् सिद्धिर्न संशयः।
होमेन सर्वसिद्धिः स्यात् तस्मात् त्रितयमाचरेत्।।’
व्यक्ति अपनी इच्छाके अनुसार इष्टदेवताका चयन करता है। इष्टदेवता भी अपनी क्षमताके अन्तर्गत साधकको फल प्रदान करता है। पराशक्ति ‘परदेवता’ ही एकमात्र ऐसी इष्टदेवता है जो कि साधकको पूर्ण ‘भोग’ तथा ‘मोक्ष’ देनेमें समर्थ है। यही पराशक्ति’पराविद्या’ के रूपमें प्रसिद्ध है। इसे ‘श्रीविद्या’ भी कहते हैं।श्रीविद्या’ दश महाविद्याओंका समूह है। दश महाविद्याएँ हैं- १. श्यामाकाली, २. तारा, ३. षोडशी, ४. भुवनेश्वरी, ५. भैरवी, ६. छिन्नमस्ता, ७. धूमावती, ८. बगलामुखी, ९. मातङ्गिनी तथा १०. कमला। इन दश महाविद्याओंके अन्तर्गत अनेक विद्याएँ आती हैं जो कि अङ्गविद्याके रूपमें जानी जाती हैं। इन सभी विद्याओंका लक्ष्य है-पारम्परिक रूपसे ‘भोग’ तथा ‘मोक्ष’की प्राप्ति कराना।
श्रीमहात्रिपुरसुन्दरीके षोडश मुख हैं। इसलिए वह पारम्परिक रूपसे ‘षोडशी’ के नामसे ख्यात है। यह षोडशी वर्णात्मिका ‘परा’ अवस्थामें ‘श्रीमहाषोडशी पराविद्या’ कहलाती है; जबकि मन्त्रात्मिका ‘परापरा’ अवस्थामें ‘श्रीषोडशी महाविद्या’ के रूपमें जानी जाती है। श्रीषोडशी महाविद्या ही ‘पञ्चदशी मूलविद्या’ के रूपसे प्रसिद्ध है।अब ‘श्रीषोडशी महाविद्या’ से सम्बन्धित विषयों पर विवेचन प्रस्तुत करते हैं:-
श्रीषोडशी-यन्त्र-श्रीषोडशी महाविद्याकी उपासना ‘श्रीविद्या’ के अन्तर्गत की जाती है। ‘श्रीविद्या’ की उपासनाका सर्वश्रेष्ठ साधन है ‘श्रीचक्र’। ‘श्री’ कहते हैं-शक्तिको। ‘चक्र’ कहते हैं-समूहको। इसलिए ‘श्रीचक्र’ शक्तिसमूहात्मक कहलाता है। इसका निर्माण दश चक्रोंसे हुआ है अतः यह दशचक्रात्मक ‘श्रीयन्त्र’ के रूपमें जाना जाता है। ये दश चक्र हैं-१. त्रैलोक्य-मोहनकर ‘चतुरस्र’ चक्र, २. त्रैवर्ग- साधनकर ‘त्रिवृत्तक’ चक्र, ३. सर्वाशा-परिपूरक ‘षोडशदल’ चक्र, ४. सर्वसङ्क्षोभणकर ‘अष्टदल’ चक्र, ५. सर्वसौभाग्यदायक ‘चतु- देशार’ चक्र, ६. सर्वार्थसाधक ‘बहिर्दशार’ चक्र, ७. सर्वरक्षाकर ‘अन्तर्दशार’ चक्र, ८. सर्वरोगहर ‘अष्टार’ चक्र, ९. सर्वसिद्धिप्रद ‘त्रिकोण’ चक्र तथा १०. सर्वानन्दमय ‘बिन्दु’ चक्र। इन दश चक्रोंमें समस्त शक्तियोंका प्राकृतिक निवास है।
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