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Shuka Saptati (शुकसप्ततिः)

170.00

Author Pt. Ramakant Tripathi
Publisher Chaukhambha Sanskrit Series Office
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2002
ISBN 81-7080-069-2
Pages 288
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0608
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Description

शुकसप्ततिः (Shuka Saptati) यह साहित्य अपने ऊपर पड़े हुए युग-प्रभाव को ग्रहण कर तत्कालीन परिस्थितियों और लोक भावनाओं का परिचायक होने के कारण अपना विशिष्ट महत्वपूर्ण स्थान बना चुका है। इसमें अन्तर्निहित सांस्कृतिक तत्त्वों से विश्व को हमारी अतीत- कालीन विस्तृत एवं समृद्ध सभ्यता तथा संस्कृति की झलक मिलती है। इसमें प्रदर्शित तस्कालीन आचार-विचार, धार्मिक मत, नैतिकता, शिक्षा प्रणाली एवं शासन-व्यवस्था आदि का निखरा स्वरूप विश्व के सामने उस युग का सजीव चिन्न उपस्थित कर रहा है। यह विशाल साहित्य किसी एक वर्ग के ही नहीं अपितु सम्पूर्ण मानव जाति के जीवन को ब्याप्त कर उसका ऐसा यथार्थ चित्र प्रस्तुत कर रहा है जिसमें उसकी भावी संभावनाओं की भी झाँकी दृष्टिगोचर हो रही है।

प्रवृत्ति भेद से यह संस्कृत आख्यान साहित्य दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-उपदेशात्मक पशुकथा अथवा नीतिकथा (Didactic Fable) और लोककथा अथवा मनोरञ्जक कथा (Popular Tale) । नीतिकथाओं में उपदेश की प्रवृत्ति प्रधान होती है और लोककथाओं में मनोरञ्जन की । पुनश्च लोककथाओं के पात्र प्रायः मनुष्य ही होते हैं, पशु-पक्षी नहीं। गुणाश्यकृत बृहत्कथा लोककथाओं का प्राचीनतम संग्रह है, जो अपने काल में प्रसिद्धि की पराकाष्ठा पर पहुँच चुकी रही होगी किन्तु अब तो यह काल के गर्त में विलीन हो गई है।

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