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Pranayam Ke Asadharan Prayog (प्राणायाम के असाधारण प्रयोग)

68.00

Author Dr. Chaman Lal Gautam
Publisher Sanskriti Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2019
ISBN -
Pages 300
Cover Paper Back
Size 12 x 2 x 17 (l x w x h)
Weight
Item Code SS0007
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Description

प्राणायाम के असाधारण प्रयोग (Pranayam Ke Asadharan Prayog) विज्ञान के इस तथाकथित प्रगतिशील युग में भारतीय संस्कृति की प्राचीन परम्पराओं, सिद्धान्तों और मान्यताओं की घोर उपेक्षा ही रही है, परन्तु आश्चर्य है कि भारत की प्राचीन योग-विद्या अपने उसी उच्च आसन पर आसीन है। इसको लोग व्यवहारिक रूप में भले ही न ला पाते हों परन्तु इसकी वैज्ञानिक उत्कृष्टता से इन्कार नहीं कर सकते। योग विद्या का जितना प्रचार भारत में है, उससे कहीं अधिक विदेशों में व्यापक रूप ग्रहण कर रहा है। आज भारत से अधिक विदेशों में योग विद्या की व्यवहारिक शिक्षा देने वाले केन्द्र खुल चुके हैं और यह विद्या वहाँ इतनी लोकप्रिय होती जा रही है कि इन केन्द्रों की संख्या दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। कारण स्पष्ट है कि उन लोगों ने योग की वैज्ञानिक उपलब्धियों के प्रत्यक्ष दर्शन किये हैं।

अभी तक जनता में यह अन्ध विश्वास मूलक धारणा व्याप्त थी कि प्राणायाम आदि यौगिक क्रियायें केवल गृहत्यागी पर्वतीय गुफाओं में साधनारत एकान्तवासी योगी साधकों के लिए ही निहित हैं परन्तु सारे विश्व में योग की बढ़ती लोकप्रियता ने सिद्ध कर दिया है कि वह क्रियायें केवल योगियों तक ही सीमित नहीं हैं वरन् इसे सर्व साधारण भी अपनाकर लाभान्वित हो सकते हैं। सर्व साधारण के लिये प्राणायाम की उपयोगिता को देखते हुए इंगलैंड के श्री जे. पी. मूलर ने अपनी पुस्तक “माई ब्रीदिंग सिस्टम” में यहाँ तक लिखा है कि शिक्षण संस्थाओं में प्राणायाम की सरल विधियों का अभ्यास कराया जाना चाहिये। अमेरिका के ख्याति प्राप्त प्राकृतिक चिकित्सक डॉ० बर्नर थैकफैडन ने प्राणायाम की महत्ता को स्वीकार किया है। वह तो इसे स्वास्थ्य रक्षा व विकास का मूल साधन मानते हैं और इसके दैनिक अभ्यास पर बल देते हैं।

बौद्धिक वर्ग की मान्यता भी यहीं तक सीमित है कि प्राणायांम केवल स्वास्थ्य रक्षा, विकास और कुछ सरल रोगों की निवृत्ति में ही सहायक सिद्ध हो सकता है परन्तु वास्तव में इसका प्रभाव क्षेत्र इससे कहीं अधिक दूरगामी है। शारीरिक ही नहीं यह मानसिक बौद्धिक व आत्मिक क्षेत्रों को भी प्रभावित करता है। इस तरह से मानक के चहुँमुखी विकास का यह श्रेष्ठ साधन है। यह शरीर का ही नहीं जीवन का भी कायाकल्प करने की क्षमता रखता है।

यह सर्व विदित तथ्य है कि प्राणायाम से फेफड़ों में आक्सीजन की मात्रा की वृद्धि होती रहती है जिससे रक्त संचालन व शुद्धि की प्रक्रिया भी भली प्रकार सम्पन्न होती रहती है। वास्तव में प्राणायाम से केवल फेफड़े ही सबल नहीं बनते वरन् अन्य शारीरिक यन्त्रों को भी शक्ति प्राप्त होती रहती है। पाकाशय की मांशपेशियों के सुव्यवस्थित संचालन से पाचन क्रिया में सहायता मिलती है, हृदय को बल मिलता है, दस अरब न्यूरोन्स से युक्त जटिल यन्त्र-मस्तिष्क सबल, जाग्रत, विकसित व क्रियाशील बना रहता है, अन्य ग्रन्थियाँ जिगर व तिल्ली भी सक्रिय बनी रहती हैं जिसके परिणामस्वरूप शरीर में असाधारण स्फूर्ति व क्रियाशीलता विद्यमान रहती है। इस तरह से प्राणायाम स्वास्थ्य संरक्षण और आयु वृद्धि में सहायक होता है और कब्ज, उदर, रोग, रक्त, चाप, हृदय की धड़कन, कण्ठ रोगों, जुकाम व कफ दोषों की निवृत्ति करता है। प्राणायाम साधक केवल अपने ही रोगों का शमन नहीं कर सकता वरन्, अन्य व्यक्तियों के रोगों का उपचार करने की क्षमता भी प्राप्त कर सकता है।

प्राणायाम को आध्यात्मिक यज्ञ की संज्ञा दी गई है। इससे आसुरी कुप्रवृत्तियों के शमन, पापों के नाश व दुर्गुणों के निराकरण, इन्द्रिय संयम व षट् ऋतुओं पर नियन्त्रण में सहयोग मिलता है, ज्ञान का विकास व विवेक की जागृति होती है और आत्मिक उत्थान होता है। मानसिक शक्ति का विकास होकर जीवन की अनेकों जटिल व उलझी गुत्थियों का समाधान हो जाता है।

प्राणायाम से अनेकों प्रकार के चमत्कारी परिणाम देखे गये हैं सूर्य, कुण्डलिनी जागरण व शक्ति विस्फोट की साधना से विभिन्न प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इसके चमत्कारी प्रयोगों से तो लोग आश्चर्य चकित हो जाते हैं। अतुल शारीरिक सामर्थ्य प्राप्त करके चलती मोटर को रोकना और हार्थी को छाती से गुजारने के प्रदर्शन तो सभी ने देखे होंगे। प्राणायाम से भूख प्यास पर विजय और शीत पर संयम प्राप्त किया जा सकता है। और सन्देश प्रेक्षण की क्रिया संचालित की जा सकती है। प्राण शरीर का परकाया प्रवेश भी इससे सम्पन्न होता है। दीर्घकालीन अभ्यास से आकाश गमन की सम्भावना भी हो सकती है। प्राणायाम के साधारण व असाधारण सभी प्रयोगों के विधान विस्तार से इस पुस्तक में दिये गये हैं ताकि सर्व साधारण इससे लाभान्वित हो सकें।

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