Loading...
Get FREE Surprise gift on the purchase of Rs. 2000/- and above.

Virah Padawali (विरह पदावली)

30.00

Author Sudarshan Singh
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Sanskrit & Hindi
Edition -
ISBN -
Pages 222
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0151
Other Code - 547

 

10 in stock (can be backordered)

Compare

Description

विरह पदावली (Virah Padawali) सूरदास जी के पदों का यह छठा संग्रह ‘विरह-पदावली’ के नाम से पाठकों की सेवा में प्रस्तुत किया जा रहा है। इसमें श्रीकृष्ण-विरह सम्बन्धी सवा तीन सौ से अधिक पदों का चयन किया गया है। जिस समय कंस के भेजे हुए अक्रूर रथ लेकर बलराम-श्रीकृष्ण को मथुरा ले जाने के लिये व्रज में पहुँचते हैं, उसी समय व्रज वासियों का उक्त दोनों कुमारों के प्रति स्नेह से छलछलाता हुआ चित्त भावी विरह की आशंका से उद्विग्न हो उठता है। विशेषतः वात्सल्य मूर्ति माँ यशोदा की तथा प्रेम की प्रतिमा श्रीगोपी जनों की उस समय क्या दशा होती है-इसका बड़ा ही मार्मिक चित्रण तद्भावभावित कवि ने बड़े ही हृदय स्पर्शी शब्दों में किया है। उनके सजीव वर्णन को पढ़कर ऐसा लगता है, मानो क्रान्त दर्शी कवि ने उन सब के हृदय में प्रवेश करके उनके हद्गत भावोंका शब्द- चित्र खींचा हो।

श्रीकृष्ण-बलराम उन सबके जीवन-सर्वस्व थे। उनके लिये श्रीगोपीजनोंने अपना लोक-परलोक त्याग दिया था। वे रात-दिन सोते-जागते, घरका काम करते उन्हींकी मनोहारिणी छविका तथा उनकी मधुरातिमधुर लीलाओंका दर्शन एवं प्रत्यक्षवत् चिन्तन किया करती थीं। ऐसी दशामें श्रीकृष्णके मथुरा जानेकी बात सुनकर तथा उससे भी कहीं अधिक उनके चले जानेपर उन सबपर क्या बीतती है और वे किस प्रकार एक-दूसरीसे मिलकर अपनी व्यथा कह सुनाती हैं- इसीका करुण वर्णन कविने इस संग्रहके पदोंमें किया है, जिसे पढ़कर किसी भी सहदय पाठकका चित्त उद्वेलित हुए बिना नहीं रह सकता। उन सबके हृदयमें श्रीकृष्णको अपने बीचमें न पाकर जो मर्मान्तक पीड़ा होती है, उसका अनुभव कोई श्रीकृष्ण-विरही ही कर सकता है। जो गोपियाँ पलकों के गिरनेसे निमेषमात्रके लिये श्रीकृष्णका अपने नेत्रोंसे ओझल होना सहन नहीं कर पाती थीं और इसके लिये पलकॉकी रचना करनेवाले विधाताको कोसने लगती थीं, वे अपने प्राणप्रियतमके निरवधि कालके लिये व्रजसे चले जानेपर कितनी असह्य वेदनाका अनुभव करती थीं, इसका वर्णन करनेमें वाणी पंगु हो जाती है।

भक्तकवि सूरदासजीने उस हृदयविदारिणी वेदनाका संकेतमात्र करके अपनी वाणीको अमर बना दिया है। विद्वान् अनुवादकने भी पदोंके गूढ़ भावोंकी सरल शब्दोंमें व्याख्या करके जनताका अमित उपकार किया है। साथ ही, व्रजसाहित्यके मर्मज्ञ पं० श्रीजवाहरलालजी चतुर्वेदीने पूर्ववर्ती संग्रहोंकी भाँति इस संग्रहका भी पाठ एवं अर्थको ठीक करनेमें जो अमूल्य सहायता प्रदान की है, उसके लिये हम उनके भी कृतज्ञ हैं, यद्यपि वर्तनी हमने वही रहने दी है जो पूर्ववर्ती संग्रहोंमें बरती गयी है। अन्तमें भगवान्की वस्तुको उन्हींके चरणोंमें अर्पितकर हम कृपालु एवं प्रेमी पाठक-पाठिकाओंसे प्रूफ आदिकी तथा अन्य भूलोंके लिये हाथ जोड़कर क्षमा माँगते हैं और विज्ञ पाठकोंसे प्रार्थना करते हैं कि पदों के पाठ एवं अर्थ में जो भी भूलें रह गयी हों, उन्हें बतलाने की कृपा करें, जिससे उन्हें अगले संस्करण में सुधारा जा सके। किमधिकं सुज्ञेषु।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Virah Padawali (विरह पदावली)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Navigation
×