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Sant Ravidas (संत रविदास)

45.00

Author Virendra Pandey
Publisher Uttar Pradesh Hindi Sansthan
Language Hindi
Edition 4th edition, 2017
ISBN 978-81-934527-0-7
Pages 51
Cover Paper Back
Size 17 x 1 x 24 (l x w x h)
Weight
Item Code UPHS0034
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Description

संत रविदास (Sant Ravidas) स्वामी रामानन्द के शिष्यों में संत रविदास का एक प्रमुख और महत्त्वपूर्ण स्थान है। भगवद्भक्ति के उच्चतम शिखर पर आरूढ़ होनेवाले महान् कर्मयोगी भक्त, संत रविदास के हृदय में जहाँ दलितों के प्रति दर्द और शोषितों के लिए स्नेह था, वहीं अपने समय में धार्मिक क्षेत्र में आधिपत्य जमानेवाले गुरुजन के लिए आदर का भाव भी था। भक्ति रस में प्रतिक्षण आत्मविभोर होते हुए भी उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से समय और समाज की आधारभूत माँगों को पहचाना था। बुनियादी रूप में वे भक्त थे। किन्तु, उसके साथ ही, वे अपने युग के महानतम तत्त्वदर्शी, सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत, कवि और विचारक भी थे। अपनी विमल वाणी द्वारा उन्होंने पीड़ित और प्रताड़ित जन समुदाय को नवजीवन प्रदान किया। समाज और संस्कृति के लिए विकास का नया पथ आलोकित किया और राष्ट्र के शिथिल पड़ जानेवाले अंगों-अवयवों में शक्ति का नया स्रोत प्रवाहित किया। भारतीय ऋषियों की परम्परा में उन्होंने सत्य, अहिंसा और अस्तेय के साथ-साथ कर्त्तव्य के प्रति निष्ठा को भी प्रतिष्ठित किया। श्रम के महत्त्व में विश्वास रखते हुए, निष्काम भाव से कर्त्तव्यरत रहना ही उनके जीवन का महानतम आदर्श था।

भारतीय दार्शनिक और संत महात्मा सदा ही परमार्थप्रिय रहे हैं। भगवद्भजन में लीन भारतीय ऋषि या संत अपना सर्वस्व समर्पण कर देता है। ब्रह्म में मिलकर एकाकार हो जाना ही उसका लक्ष्य रहा है। ‘नाम और ध्यान’ में वह इतना निमग्न हो जाता है कि उसे अपने स्वतंत्र अस्तित्व का ध्यान ही नहीं रहता। विज्ञप्ति और विज्ञापन का तो प्रश्न ही नहीं उठता। यही कारण है कि हमें अधिकतर प्राचीन ऋषियों, विचारकों, भक्तों और कवियों के सम्बन्ध में बहुत कम जानकारी प्राप्त हो सकी है। संत शिरोमणि रविदास के बारे में भी जानकारी के प्रामाणिक साक्ष्यों का सर्वथा अभाव-सा है। अधिकतर बाह्य साक्षियों ही हमें मिलती हैं। अतः केवल नाम, जाति, गृहस्थ जीवन और विचारधारा आदि कुछ तथ्यों की जानकारी ही हमें प्राप्त है।

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