M. M. Sri Sudhakara Divedi Vedhsala Parichay (म. म. श्री सुधाकरा द्विवेदी वेधशाला परिचय)
₹16.00
Author | Sri Kalyan Datt Sharma |
Publisher | Sampurnananad Sanskrit Vishwavidyalay |
Language | Hindi |
Edition | 1st edition |
ISBN | - |
Pages | 44 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 1 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SSV0010 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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म. म. श्री सुधाकरा द्विवेदी वेधशाला परिचय (M. M. Sri Sudhakara Divedi Vedhsala Parichay) श्रीसुधाकर द्विवेदी वेधशाला की कल्पना मेरे मन में बहुत दिनों से थी; क्योंकि ज्यौतिष-विद्या प्रयोगप्रधान चाक्षुष विद्या है। अतः अपनी आँख से समय का ज्ञान, ग्रहस्थिति का ज्ञान कराने की पाठ्यक्रम में व्यवस्था होनी चाहिये, पर यह तभी सम्भव है, जब शास्त्रों में जिन यन्त्रों का विधान किया गया है, उन यन्त्रों का विधान किया जाय। इन यन्त्रों के संग्रह को ही ‘वेधशाला’ कहा जाता है। हमारे देश में सर्वप्रथम मिर्जा राजा जयसिंह ने जयपुर में वेधशाला बनवाई एवं वाराणसी में मान-मन्दिर घाट पर वेधशाला तथा दिल्ली में ‘जन्तर-मन्तर’ नाम से वेधशाला का निर्माण कराया। इन तीनों का उपयोग शैक्षिक प्रयोजन के लिये नहीं हो सका। किसी भी भारतीय विश्वविद्यालय में भारतीय शास्त्रों के अनुरूप ऐसी कोई वेधशाला नहीं है। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय का विशेष दायित्व होता है कि ज्यौतिष के अध्ययन में यन्त्रों का विशेष ज्ञान कराया जाय। उन्नीसवीं शताब्दी में इस विश्वविद्यालय की बीज-संस्था ‘संस्कृत कालेज’ में श्रीसुधाकर द्विवेदी ज्यौतिष-विभागाध्यक्ष रहे। उन्होंने पाश्चात्त्य ज्यौतिष का विशेष अध्ययन किया, साथ ही उन्होंने अनेक ग्रन्थों का सम्पादन एवं मौलिक लेखन किया। उनका समस्त पुस्तक-संग्रह इस विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को अर्पित है।
उनकी स्मृति में इस वेधशाला के निर्माण का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। सौभाग्य से हमें इसके निर्माण में जयपुर के प्रख्यात ज्योतिर्विद् श्रीकल्याणदत्त शर्मा का सहयोग प्राप्त हुआ, जिन्होंने दिल्ली के ‘जन्तर-मन्तर’ के पुनर्निर्माण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। वे लगभग सालभर इसके निर्माण-परीक्षण एवं संशोधन आदि कार्यों में लगे रहे। इसमें ज्यौतिष-विभाग के अध्यापकों और छात्रों ने बड़ा सहयोग दिया, विशेष रूप से इसके विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णचन्द्र द्विवेदी तथा उपाचार्य श्री उमाशंकर शुक्ल का सहयोग रहा। इसके निर्माण काल में ही हमारे छात्र इस निर्माण-विधि के ज्ञान का अवसर पा सके, यह एक दुहरा लाभ हुआ। इसमें निम्नलिखित यन्नों का निर्माण हुआ है-
१. षष्ठांश यन्त्र, २. नाडीवलय यन्त्र, ३. क्रान्तिवृत्त यन्त्र, ४. याम्योत्तर थरातलीय तुरीय-यन्त्र, ५. मकरराशिवलय (सायन ग्रह स्पष्ट बोधक यन्त्र), ६. दिगंश यन् ७. चक्रयन्त्र, ८. कर्कराशिवलय (सायन ग्रह स्पष्ट बोधक यन्त्र), ९. याम्योत्तर धरातलीय चाप व तुरीय-यन्त्र, १०. बृहत् सम्राट् यन्त्र, ११. भारतीय तारामण्डल ।
इन यन्त्रों का विवरण इस पुस्तिका में विस्तारपूर्वक वर्णित है। शैक्षिक दृष्टि से यह बड़ा उपयोगी होगा । श्रीकल्याणदत्त शर्मा ने बड़े धैर्य एवं मनोयोग से इस पुस्तिका का लेखन किया है। इसके लिये मैं उन्हें साधुवाद देता हूँ। इस विश्वविद्यालय के अभियन्ता श्रीमदनमोहन मणि त्रिपाठी ने तकनीकी दृष्टि से कठिन इस निर्माण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। मैं उन्हें धन्यवाद देता हूँ।
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