Akash Bhairav Tantram (आकाश भैरव तन्त्रम्)
₹404.00
Author | Shree Kapildev Narayan |
Publisher | Chaukhambha Sanskrit Series Office |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2023 |
ISBN | 978-81-7080-402-4 |
Pages | 364 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0734 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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आकाश भैरव तन्त्रम् (Akash Bhairav Tantram) इस ग्रन्थ का नाम आकाश भैरव कल्प तन्त्र है। नाम से जिज्ञासा होती है कि आकाश भैरव कौन हैं? और ‘कल्प’ किसे कहते हैं। भैरव शब्द से अधिकांश लोग परिचित हैं; क्योंकि कालभैरव का जिक्र पूजा पाठ में होता है। वाराणसी के कोतवाल कालभैरव हैं। इनके दर्शन पूजन के बिना विश्वनाथ प्रसन्न नहीं होते, ऐसी श्रुति है।
भगवान रुद्र को ही भैरव कहते हैं। विश्व के विकास का मूल सकल ब्रह्म है। सृष्टि संकल्प के साथ ही उसका ब्रह्मत्व सकल होता है। इसके पहले वह निष्कल, निर्गुण, निराकार परमात्मा कहलाता है। मन, वाणी से परे द्रव्य, गुण आदि छहों प्राकृत भाव पदार्थों से रहित होता है। वैखरी वाणी की श्रुतियों में इसका संकेत मात्र सत्, चित्, आनन्द रूप में है। वेदों में उसी का नाम रुद्र और तन्त्र शास्त्रों में भैरव है। वेदों और तन्त्रों में इनका वर्णन रौद्र या सौमय रूप दोनों रूपों में उपलब्ध है।
‘भैरव’ शब्द की व्युत्पत्ति, निरुक्ति और परिभाषायें नाना प्रकार की है। इनमें सरल परिभाषा है कि ‘भी’ धातु में औणादिक ‘डैरव’ लगाने से भैरव शब्द बना है। अर्थ है विभेति क्लेशो यस्मादिति भैरव। जिससे क्लेश डरता है, उसे भैरव कहते हैं। अनेक ग्रन्थों में अनेक भैरवों की चर्चा है। किसी में ८, किसी में १० और ‘रुद्रयामल’ में ६४ भैरवों की चर्चा है; परन्तु इनमें आकाश भैरव की चर्चा नहीं है। विष्णु और देवी के अवतारों के समान शिव भी भक्त की रक्षा, धर्मनियमन और धर्मसंस्थापन के लिये अवतार लेते हैं। शिव के अवतारों का प्रयोजन भक्त और धर्म का संरक्षण ही रहा है। कर्म विशेष के अनुसार शरभ, स्वर्णाकर्षण, मार्तण्ड, मंजुघोष, दुन्दुभि, आनन्द, दीपनाथ, वीरभद्र, कालभैरव आदि अवतार हुए हैं। कर्मों की सिद्धि के लिये साधक तदनुरूप ध्यान एवं मन्त्र प्रयोग करके फल प्राप्त करते हैं।
शरभ को ही आकाश भैरव कहते हैं। इनके अवतार की कथा निम्न प्रकार की है। भगवान विष्णु के अवतारों में हिरण्यकशिपु के वध और भक्तवर प्रह्लाद की रक्षा के लिये श्री नृसिंह का अनूठा अवतार हुआ। अपने भक्त प्रह्लाद के कथन- ‘मेरा प्रभु सर्वत्र व्याप्त है’ को सिद्ध करने के लिये विष्णु नृसिंह रूप में सभा में स्थित खम्भे से प्रकट हुए। इनका शिर सिंह का और धड़ मनुष्य का था। इसीलिये इनका नाम नरसिंह पड़ा।
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