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Artha Sangraha (अर्थसंग्रह:)

75.00

Author Sri Tatmbariswami
Publisher Chaukhamba Krishnadas Academy
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2022
ISBN -
Pages 179
Cover Paper Back
Size 12 x 2 x 17 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0113
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Description

अर्थसंग्रह: (Artha Sangraha) धर्माख्यं विषयं वक्तुं मीमांसायाः प्रयोजनम् । (कुमारिल)

मीमांसा शास्त्र का अनुशीलन वैदिक धर्म की जानकारी के लिये परम आवश्यक है। इसका मुख्य अभिप्राय यज्ञ-यागादि के लिये वैदिक अनुष्ठानों की तात्त्विक विवेचना है । विरोधी वाक्यों को एकवाक्यता करने की प्रक्रिया मीमांसा द्वारा ही स्पष्ट की गयी है। मीमांसा का अधिकतर उपयोग स्मृति ग्रन्थों का अर्थ करने में किया जाता है। स्मृतियों का व्यास बहुल है तथा उनमें अनेकानेक प्रकार के विरोध-सूचक वचन उपलब्ध होते हैं, जिससे धर्म-कर्म के निर्णय करने में विद्वानों को संकट उपस्थित हो जाता है। परन्तु मीमांसा की व्याख्या-शैली के आधार पर उन विरोधों का परिहार भली भांति हो जाता है ।

‘अर्थसंग्रह’ के रचयिता भास्कर लौगाक्षि मीमांसा शास्त्र के पारंगत विद्वान् माने जाते हैं। इनका यह ग्रन्थ पर्याप्त लोक प्रिय है। ‘भास्कर इनका नाम है और ‘लौगाक्षि’ इनके वंश की उपाधि है। इसी उपाधि से ये दाक्षि- णात्य सिद्ध होते हैं। इनके पिता का नाम ‘रुद्र’ था। ये १६ वीं शताब्दी के विद्वान् हैं। ( द्र० इण्डियन लोजिकः कीथ, पृ० ३२ ) । भास्कर लोगाक्षि ने मीमांसा शास्त्र में प्रवेश कराने के लिये सभी वैदिक कर्मसम्बन्धी पदार्थों का संक्षेप में संकलन कर प्रस्तुत ग्रन्थ का निर्माण किया है। ग्रन्थकार ने सरल सुबोध शब्दों में मीमांसा के गूढ़तम सिद्धान्तों को समझाने में प्रचुर सफलता प्राप्त की है। साधारण से संस्कृतज्ञों को भी मीमांसा शास्त्र के मर्म को सम- झाने में इस ग्रन्थ का बहुत बड़ा श्रेय हूं। भास्कर की इस कृति के आलोक में सारा मीमांसा शास्त्र निखर उठता है।

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