Bharatarnava (भरतार्णवः)
₹382.00
Author | Vachaspati Gairola |
Publisher | Chaukhambha Krishnadas Academy |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2013 |
ISBN | - |
Pages | 287 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0711 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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भरतार्णवः (Bharatarnava) भारतीय नाख्यशास्त्र की परम्परा में आचार्य नन्दिकेश्वर का नाम अग्रणी नाट्याचायों के रूप में उल्लिखित है। विभिन्न नाट्यशास्त्रीय ग्रन्थों में उनके मत को प्रामाणिक रूप में उद्धृत किया गया है। जहाँ तक उनके जीवन-वृत्त और स्थितिकाल के निर्धारण का प्रवन है, इस सम्बन्ध में विस्तृत एवं निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है। उनके जन्मस्थान के सम्वन्ध में जो बातें कही गयी हैं उनमें डा० मनमोहन घोष का भी अपना एक मत है। उन्होंने स्वसम्पादित ‘अभिनयदर्पण’ की भूमिका में लिखा है कि नन्दिकेश्वर दक्षिण के निवासी थे। इस आधार के लिये उन्होंने जो तथ्य दिया है उसे सम्भावित ही कहा जा सकता है। थी जानन्द कुमार स्वामी ने ‘अभिनयदर्पण’ (मिरर ऑफ जेश्चर) में लिखा है कि नन्दिकेश्वर तन्त्रविद्या, पूर्वमीमांसा और लिगायत सैव दर्शन के अनुयायी थे।
नन्दिकेश्वर के ग्रन्थ ‘भरतार्णव’ का अवलोकन करने से यह विश्वास होता है कि वे अनेक विषयों के ज्ञाता थे। नाट्य, संगीत और रस विषयों पर उनकी रचनायें परवर्ती साहित्य में पर्याप्त लोकप्रिय हो गयी थीं। उन्हें कामशास्त्र का भी ज्ञाता बताया गया है। ‘भरतार्णव’ की नाट्य-विवाओं का लोक-प्रचलन दक्षिण भारत में विद्यमान होने के कारण और उनके नाम से उपलब्ध होने वाली रचनाओं, विशेष रूप से ‘भरतार्णव’ और ‘अभिनयदर्पण’ की हस्तलिखित प्रतियां, दक्षिण भारत में ही उपलब्ध होने के कारण ही, अन्तःसाक्षियों के अभाव में भी यह सर्वथा संभव प्रतीत होता है कि वे दाक्षिणात्य थे।
नन्दिकेश्वर के स्थितिकाल के सम्बन्ध में भी मतैक्य नहीं है। संगीताचायं मतंग द्वारा नन्दिकेश्वर का उल्लेख होने के कारण कुछ विद्वानों का कहना है क्योंकि मतंग का समय ५वीं शती ई० था, अतः नन्दिकेश्वर का स्थितिकाल उससे पूर्व होना चाहिये। इस संभावना को अतवयं नहीं कहा जा सकता है। नन्दिकेश्वर के स्थितिकाल की उत्तर सीमा को निर्धारित करने में अधिक कठिनाई प्रतीत नहीं होती। संगीताचायं शाङ्गदेव ने अपने ‘संगीत-रत्नाकार में नन्दिकेश्वर के नाम का स्पष्ट उल्लेख किया है, अपितु ‘अभिनयदर्पण’ और ‘संगीत-रत्नाकर के कतिपय स्थलों में भी एकता है। ‘संगीत रत्नाकर’ की रचना १२४७ ई० में हुई। अतः नन्दिकेश्वर का समय उससे पूर्व होना चाहिये। नन्दिकेश्वर के उपलब्ध ग्रन्थों के आधार पर उनके स्थितिकाल के सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं मिलता। उक्त साक्ष्य के आधार पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि १३ वीं शती ई० के पूर्वाद्ध तक उनकी रचनायें लोकप्रिय हो गयीं थी।नन्दिकेश्वर के दो अन्य प्रकाशित हो चुके हैं, जिनके नाम हैं- ‘अभिनयदर्पण’ और ‘मरतार्णव’।
इनके अतिरिक्त म० म० रामकृष्ण कवि का अभिमत है कि नन्दिकेश्वर ने ‘बन्दिकेश्वर संहिता’ की रचना की थी जिसका अधिकतर भाग नष्ट हो गया; किन्तु केवळपात्र सम्बम्बी परिच्छेद बच गया। वही अवशिष्ट भाग संभवतः ‘अभिनयदर्पण’ है। मद्रास शासन द्वारा प्रकाशित संस्कृत हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची में नन्दिकेश्वर के नाम से ‘ताल लक्षण’ वा ‘तालादि लक्षण’ नामक ग्रन्थ का भी उल्लेख हुआ है। कविराज राजशेखर की ‘काव्यमीमांसा’ (१११) में काव्य पुरुष के अठारह दिव्य स्नातकों में जिन काव्याचायों का उल्लेख हुआ है उनमें नन्दिकेश्वर का भी एक नाम है। उन्होंने रसविषय पर ‘रसाधिकारिक’ ग्रन्थ की रचना की थी। यह एक स्वतन्त्र राज्य था अथवा उनके किसी अन्य ग्रन्थ का अंश था, इस सम्बन्ध में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। यह भी संभव हो सकता है कि ‘नन्दिकेश्वर-संहिता’ आचार्य भारत के ‘नाट्यशास्त्र’ ग्रन्थ के अनुरूप अपने विषय का सर्वांगीण एवं वृहत् ग्रन्थ रहा हो और अभिनयदर्पण’ तथा ‘नरतार्गव उसी के अंश हों; क्योंकि उनके उपलब्ध दोनों ग्रन्थ एक दूसरे के प्रपूरक प्रतीत होते हैं।
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