Bharatiya Evam Paschatya Gyan Mimansa (भारतीय एवं पाश्चात्य ज्ञान मीमांसा)
₹85.00
Author | Dr. Geetarani Agrawal |
Publisher | Bharatiya Vidya Sansthan |
Language | Hindi |
Edition | 2nd Edition 2006 |
ISBN | 81-87415-09-6 |
Pages | 242 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h ) |
Weight | |
Item Code | BVS0208 |
Other | - |
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CompareDescription
भारतीय एवं पाश्चात्य ज्ञान मीमांसा (Bharatiya Evam Paschatya Gyan Mimansa) ज्ञानमीमांसा दर्शनशास्त्र की एक प्रमुख शाखा है जिसमें ज्ञान के स्वरूप, उसकी उत्पत्ति एवं सरंचना, ज्ञान के साधन एवं प्रामाणिकता आदि से सम्बन्धित प्रश्नों का विचार किया जाता है। भारतीय एवं पाश्चात्य दोनों दर्शनों में इस शाखा की विशेष महत्त्व इसलिए है कि तत्त्वमीमांसा, मूल्यमीमांसा आदि ज्ञानमीमांसा पर ही आश्रित है क्योंकि ज्ञान के स्वरूप के निर्धारण के बिना इनका निर्धारण संभव नहीं हो सकता। दूसरे वर्ग के दार्शनिक तत्त्व मीमांसा को प्राथमिक स्थान देते हुए उसकी स्थापना के प्रमुख साधन के रूप में ज्ञान मीमांसा के महत्त्व को स्वीकार करते हैं। तीसरे वर्ग के दार्शनिकों की मान्यता है कि तत्त्वमीमांसा एवं ज्ञानमीमांसा दोनों का समान महत्त्व है। पाश्चात्य दर्शन एवं भारतीय दर्शन के अधिकांश भाग किसी न किसी प्रकार ज्ञान मीमांसा से सम्बन्धित है।
दर्शनशास्त्र के ऐतिहासिक सर्वेक्षण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि दर्शन के प्रारम्भिक काल में ज्ञान मीमांसा को तत्त्वमीमांसा से अलग रखकर विचार करने की प्रक्रिया नही थी। ये दोनों शाखायें इतनी मिली हुई थीं कि एक के निरूपण में दूसरे का निरूपण अपरिहार्य रूप से सम्मिलित हो जाता था। किन्तु चिन्तन के विकास क्रम में दर्शन की विभिन्न शाखाओं का अलग से विचार करने की परम्परा का उदय हुआ और ज्ञान से सम्बन्धित समस्याओं पर विचार करने के लिए ज्ञानमीमांसा शाखा का प्रादुर्भाव हुआ।
हिन्दी भाषी क्षेत्र के अनेक विश्वविद्यालयों में एम०ए० दर्शनशास्त्र के पाठ्यक्रम में ज्ञानमीमांसा एक स्वतंत्र प्रश्न-पत्र के रूप में रखा गया है। पाश्चात्य ज्ञानमीमांसा के सम्बन्ध में हिन्दी माध्यम से कुछ पुस्तकें उपलब्ध हैं जैसे डॉ० अशोक कुमार वर्मा की ‘तत्त्वमीमांसा एवं ज्ञानमीमांसा’ तथा डॉ० केदारनाथ तिवारी की ‘तत्त्वमीमांसा एवं ज्ञानमीमांसा’। किन्तु भारतीय ज्ञानमीमांसा पर कोई भी प्रामाणिक ग्रन्थ हिन्दी में उपलब्ध नहीं हैं इसलिए ज्ञानमीमांसा के छात्रों को अत्यधिक कठिनाई होती है।
प्रस्तुत ग्रन्थ दर्शनशास्त्र के एम०ए० के उन छात्रों को ध्यान में रखकर लिखा गया है जो ज्ञानमीमांसा को एक प्रश्न-पत्र के रूप में पढ़ते हैं। मैं अनेक वर्षों से एम०ए० के छात्रों को ज्ञानमीमांसा पढ़ाती आ रही हूँ और छात्रों की कठिनाइयों से भली-भाँति अवगत हूँ। अतः इस ग्रन्थ में भारतीय ज्ञानमीमांसा से सम्बन्धित उन समस्त प्रमुख बिन्दुओं पर विचार करने का प्रयास किया गया है जो छात्रों के ज्ञान एवं उनकी परीक्षा दोनों दृष्टियों से अत्यन्त उपयोगी एवं आवश्यक हैं। यह ग्रन्थ उन अध्यापकों के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगा जो हिन्दी माध्यम से भारतीय ज्ञानमीमांसा पढ़ाते हैं। साथ ही साथ दर्शनशास्त्र में रुचि रखने वाले जिज्ञासुओं के लिए भी यह उपादेय हो सकता है।
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