Bharatiya Jyotish Ka Itihas (भारतीय ज्योतिष का इतिहास)
₹67.00
Author | Dr. Gorakh Prasad |
Publisher | Uttar Pradesh Hindi Sansthan |
Language | Hindi |
Edition | 4th edition, 2010 |
ISBN | 978-81-89989-56-9 |
Pages | 290 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | UPHS0027 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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भारतीय ज्योतिष का इतिहास (Bharatiya Jyotish Ka Itihas) भले ही आज ज्योतिष को भविष्य जानने की मनुष्य की स्वाभाविक उत्सुकता के साथ जोड़ कर अधिक देखा जाता हो, आदि काल से यह क्षेत्र समूचे ब्रह्माण्ड की स्थितियों, पृथ्वी से उनके सम्बन्ध और पड़ने वालों प्रभावों तथा काल गणना आदि के सन्दर्भ में अत्यंत गंभीर चिंतन-मनन व शोध से जुड़ा रहा है। प्रारम्भ में काल गणना में सूर्य को निकलने-डूबने के कारण ‘दिन’ को मान्यता मिली। इसकी परिधि बढ़ी, तो चन्द्रमा की गतिशीलता के आधार पर ‘माह’ की अवधारणा सामने आयी और फिर ‘वर्ष’ के रूप में विभिन्न मौसमों को हमारे पुरखों ने अपनाया। वर्षा और शरद इत्यादि ऋतुएं (जीवेत शरदः शतम्) उसकी प्रेरक बनीं। यों इनका भी मूल आधार एक साल में पूरी होने वाली सूर्य की पृथ्वी-परिक्रमा ही है। भारत में समय-समय पर ऐसे विभिन्न क्षेत्रों में आर्यभट्ट वाराहमिहिर, भास्कर व जयसिंह जैसे मनीषियों ने अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य किये, जिनके चलते अनेक पुस्तकों और उनकी टीकाओं के माध्यम से इस अत्यंत प्राचीन विज्ञान में न केवल जानकारियाँ जुड़ती गयीं, अपितु उसने विशेष रूप से अरबी, चीनी और यूनानी संस्कृतियों का भी मार्गदर्शन किया।
यह पुस्तक ‘भारतीय ज्योतिष का इतिहास’ इसी सुदीर्घ, सुविचारित और सर्वांगीण ज्ञान-परम्परा को संक्षिप्त रूप से ही सही, सुव्यवस्थित ढंग से समेटने और उसे शब्द देने का सफल प्रयास है। इसके लेखक डॉ० गोरखप्रसाद इस क्षेत्र के जाने-माने विद्वान थे। उन्होंने इस पुस्तक को 18 अध्यायों में बांटा है और इनके अन्तर्गत प्राचीनतम ज्योतिष से लेकर अब तक की उसकी विकास परम्परा, महान भारतीय खगोलविदों के व्यक्तित्व और कृतित्व तथा विशेषताओं को इस ढंग से प्रस्तुत किया है कि यह पुस्तक शोधार्थियों से लेकर जिज्ञासु पाठकों तक, सभी के लिए, अत्यंत उपयोगी रूप हमारे सामने आती है। इसी के चलते इसकी लोकप्रियता लगभग छः दशक बाद आज भी अक्षुण्ण है। हमारे हिन्दी समिति प्रभाग का यह पहला प्रकाशन है, अतः इसके प्रति विशेष अनुराग और चतुर्थ संस्करण के प्रकाशन की असाधारण प्रसन्नता स्वाभाविक है। प्रख्यात खगोलविद और ज्योतिषाचार्य डॉ० गोरखप्रसाद को नमन के साथ हम इस पुस्तक का यह पुनर्प्रकाशन हिन्दी समिति प्रभाग की प्रकाशन योजना के अन्तर्गत कर रहे हैं।
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