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Bharatiya Jyotish Samhita Skandh Ka Itihas (भारतीय ज्योतिष संहिता स्कंध का इतिहास)
₹480.00
Author | Prof. Sacchidanand Mishra |
Publisher | Bharatiya Vidya Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st edition, 2017 |
ISBN | 978-93-81189-26-9 |
Pages | 600 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 3 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | BVS0016 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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भारतीय ज्योतिष संहिता स्कंध का इतिहास (Bharatiya Jyotish Samhita Skandh Ka Itihas) संहिता स्कन्ध गणित गोल तथा सतर्क यन्त्र निर्माण एवं शोध तथा प्रयोग के उच्चतम आधार से सम्यद्ध विस्तृत स्कन्ध है। इसके अन्तर्गत भूगोल खगोल एवं भगोल से सम्बन्धित अनेक विश्वजनीन विषयों का अद्भुत संकलन तथा विश्लेषण किया गया है।
इस स्कन्ध में अनेक विद्या शाखाएँ आज भी प्रयोग गम्य है। कुछ व्यवहार वाह्य हो गयी है, तो कुछ प्रयोग बाह्य हो रही है। भारतीय तथा पाश्चात्य अन्वेषणों के फलस्वरूप वर्तमान शताब्दी में संहिता के अनेक विषयों की प्रासंगिकता फिर से सिद्ध हो रही है। त्रिस्तरीय (दिव्य, नाभस तथा भौम) प्रभाव का समस्त भूगोला- भिप्रायिक प्रभावों का विश्लेषण करने वाली विद्या ज्योतिष शास्त्रीय संहिता स्कन्ध है।
‘भारतीय ज्यौतिष‘ में श्री शंकर बालकृष्ण दीक्षित द्वारा वेदाङ्ग-ज्यौतिष तथा मध्यकालीन सिद्धान्तज्योतिष की समुचित समीक्षा प्रस्तुत की गयी है। इस महान ग्रन्थ में संहिता तथा होरा के महत्व का नाममात्र समावेश किया गया है, लेकिन जो प्रस्तुत है, वे सूक्ष्मतम विधान एवं निष्कर्षप्रदायक है।
संहिता स्कन्ध का मूलाधार – गणित, गोल-गोलीयपना यथा मानवीष बुद्धि का समवेत रूप है। मानवीय पिण्ड से गोलीय पिण्डका गोलीय पिण्ड तका पक्षमहाभूतात्मक गुणात्मक विस्तार न्यूनाधिक रुष भूत निष्पति, प्राणांश, रोगंरा तथा कालांश का योगत एवं वियोनज चमत्कार मात्र है। दवदानुकरण से आविष्कारों का प्रादुर्भाव विश्वव्यापी दृशान्त में प्रत्यक्ष है। अजीब अपने पहापूर, विगुण, मन, बुद्धि, अहंकार, आत्मा तवा कात प्रभूति अवयव आत्मकेन्द्रिक है। अध्यांश १. मात्रिक प्राणांश २ माविक कार से जलीय, अर्थवतीय स्थलीय जीवनक्रम के वाणाम एवं अग्न्यांश संभूत जैवादि के क्रम मंहिता स्कन्ध के इतिहास को निम्नांकित विषय- विभाग द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा है।
वस्तुतः सक्षिप्त रूप में संहिता का परिचय श्रीमान् दीक्षित ने दिया है, लेकिन संहिता रुपी महासमुद्र का वास्तविक ज्ञान उसमे भी नहीं होता। इस पुस्तक में भी सं का संक्षिप्त विवरण एवं विषय का संक्षिप्त विवरण दिया जा सका है। समालोचना भাগ में इसके विषयों को विस्तारित किया जायेगा। समस्त प्रदत प्रन्दों को पाण्डुलिपियों के ऊपर काम करना संघ साध्यविषय है। में पथोपलब्धि के अनुसार यहाँ संक्षिप्त संकलन एवं समीक्षा के साथ प्रस्तुत किया हूँ। इससे पदि छाने एवं विद्वानों को पदि कुछ लाभ हो सका, तो मेरा उद्यम सफल माना जायेगा। सर्वे भवन्तु सुखीनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कति दुःख भाग भवेत। नीति शास्त्र गत मानवीय तथा सामाजिक सौहाई को स्थापित करना मुख-शान्ति, आरोग्य, निर्भयान, कल्याण तथा दुःखहीन जीवन भारतीय संस्कृति तथा संहिता स्कन्ध का मूलतय है। इति विद्वदर्श बदः सच्चिदानन्द मिश्रः।
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