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Brahaman Grantho Me Srishti Vichar (ब्राह्मण ग्रंथो में सृष्टि विचार)

276.00

Author Dr. Nityanand Shukla
Publisher Chaukhamba Krishnadas Academy
Language Hindi & Sanskrit
Edition 1983
ISBN -
Pages 214
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0451
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Description

ब्राह्मण ग्रंथो में सृष्टि विचार (Brahaman Grantho Me Srishti Vichar) वेद भारतीय धर्म एवं दर्शन के प्रतिनिधि ग्रन्थ हैं। हम सर्वदा से उन त्रिकालज्ञ वेदद्रष्टा ऋषियों के ऋणी रहे हैं, जिन्होंने जीवन की ऐहिक उपलब्धियों से ऊर्ध्वगमन कर उत्थान एवं निःश्रेयस के प्रशस्त मार्ग का निर्देशन किया है। परम्परागतरूप से वेद को अपौरुषेय माना गया है। इसे ब्रह्मा के निःश्वास से उद्गत कहा गया है, निर्मित नहीं ( सायणभाष्य-उपोद्घात-2– यस्य निःश्वसितं वेदाः)। निःश्वसित से क्रियात्व का कोई सम्बन्ध नहीं है, अपितु यह उसका स्वाभाविक धर्म है। यह सृष्टि के पूर्व भी हो सकती है; क्योंकि वेद से ही अनुदिष्ट होकर सृष्टिकर्त्ता प्रजापति ने सृजन किया होगा। इसे पौरुषेय मान लेने पर तो उपयुक्त तर्क ही धराशायी हो जायेगा तथा पुरुषकृत विविध प्रमाणोपलब्धि होने लगेगी, जिसका वर्णन सायणाचार्य ने अपनी ऋग्वेदभाष्यभूमिका में किया है। उपयुक्त तर्कों के आधार पर ही वेद को श्रुति भी कहा जाता है; क्योंकि लिपि-विकास की पूर्वावस्था में सभी ने अपनी गुरुपरम्परा से वेद को सुना, पढ़ा तथा तदनुरूप आचरण किया।

विद्वत्समाज से अनुप्रेरित होते हुए भारतीय दर्शन के आधार ‘सृष्टि-तत्त्व’ को वैदिकसाहित्य-सागर में प्रविष्ट कर, ब्राह्मण ग्रन्थों को निकट से परखने के फलस्वरूप इस ग्रन्थ का प्रणयन हुआ। मानव मस्तिष्क से सहजोद्भत विश्व-सृष्टि की प्रहेलिकाएँ ही उस विवेक को दार्शनिक बना देती हैं। अनादिकाल से यह विचार श्रुति-परम्परा की श्रृंखला में ही निहित था, जो कालान्तर में लेखन का विषय बना और विश्व के प्राचीनतम वैदिकसाहित्य में जीवन्त रूप को प्राप्त हुआ। अब तक इस चिन्तन की सहज भाषा-शैली का प्रायः अभाव ही था। प्रस्तुत ग्रन्थ में इस अभाव की सम्पूति का पूरा प्रयास किया गया है।

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