Brahma Varchaswa Shiddhi (ब्रह्मवर्चस्व सिद्धि)
₹30.00
Author | Dr. Ramamilan Mishra |
Publisher | Shree Vedang Sansthan Prayagraj |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 1st Edition |
ISBN | 978-81-941119-0-0 |
Pages | 48 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SVS0014 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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ब्रह्मवर्चस्व सिद्धि (Brahma Varchaswa Shiddhi) सम्यक् ध्यायन्ति सम्यक् ध्यायते वा परब्रह्मयस्यां सा सन्ध्या
जिस क्रिया के माध्यम से परब्रह्म का अच्छी तरह ध्यान किया जाता है, उसे सन्ध्या कहते हैं, तथा रात्रि और दिन के सन्धिकाल को सन्ध्या काल कहा जाता है।
सर्वकाल द्रष्टा ब्रह्मा जी ने यह जानकर कि आने वाले काल में द्विजाति गण शास्त्र विहित कर्मों के अतिरिक्त कार्य भी करेंगे इस निमित्त पापक्षय की साधन भूत सन्ध्या की सृष्टि की है। रात्रि या दिन में ज्ञान या अज्ञान से जो पाप हो जाते हैं वे सब त्रिकाल सन्ध्योपासन करने से नष्ट हो जाते हैं। प्रातः मध्याह्न एवं सायं ये ही त्रिकाल सन्ध्या के समय कहे गये हैं। प्रातः मध्याह्न एवं सायं ये ही त्रिकाल सन्ध्या के समय कहे गये हैं। प्रातः ब्राह्म मुहूर्त में तथा मध्याह्न में मध्याकाश में सूर्य की स्थिति दृष्टिगत होने पर तथा सायं सूर्यास्तकाल में सन्ध्योपासन करना चाहिए।
सन्ध्योपासन वह क्रिया है जिसके निरंतर करने से पापों, अरिष्टों एवं सभी प्रकार की आपत्तियों का नाश होता है तथा इसके प्रभाव से नैरुज्य, दीर्घायु तथा सपात्रता की वृद्धि होती है। सन्ध्या में की जाने वाली क्रियाएं बहुत ही वैज्ञानिक हैं अतः सभी द्विजातियों (ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य) को चाहिए की सन्ध्योपासन अवश्य करे क्योंकि सन्ध्या त्याग से व्यक्ति अधोगति को प्राप्त करता है तथा किसी भी शुभ कार्य करने का अधिकारी नहीं होता, यहाँ तक कि सूतक में भी सन्ध्या का त्याग न करें वरन् मानसिक सन्ध्या अवश्य करें। सन्ध्या के संबंध में विस्तृत जानकारी हेतु हमारी पुस्तक ‘सन्ध्या विज्ञान’ का अध्ययन करें।
वर्तमान समय में दिनों-दिन व्यक्ति अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं को त्यागता जा रहा है परिणामतः उसे विपत्ति, अत्याचार, भ्रष्टाचार तथा अनाचार से उत्पन्न विषम स्थितियों का सामना करना पड़ता है। प्रति व्यक्ति किसी न किसी आपत्ति से संकटग्रस्त एवं दीनहीन ही प्रतीत होता है। भले ही वह भौतिक सम्पदा का स्वामित्व प्राप्त कर ले किन्तु उसे सुख शान्ति एवं चैन नहीं मिलता उसका मात्र एक ही कारण है पथ भ्रष्टता एवं ऋषि दर्शित मार्ग से पतित होना, इन्हीं स्थितियों को देखकर विचार हुआ कि सन्ध्योपासन एक ऐसी क्रिया है जिसको प्रतिदिन करके व्यक्ति सुख शांति तो प्राप्त ही करेगा साथ ही अपने प्रतिदिन के पापों को नष्ट करता हुआ अपने परम उद्देश्य शिखर पर भी पहुँच जायेगा।
वैसे तो अनेक प्रकार की सन्ध्योपासना की पुस्तकें प्राप्त हो जाती हैं किन्तु हमारे संस्थान द्वारा प्रकाशित यह छोटी सी पुस्तिका पूर्णतः संशोधित एवं सर्वजन उपयोगी होगी यह हमें विश्वास है। साथ ही आप से बार-बार प्रार्थना है कि इस पुस्तक के माध्यम से सन्ध्योपासन का अभ्यास स्वयं तो करें ही साथ- साथ अपने बन्धु बान्धवों एवं मित्रों को भी प्रेरित करें तथा ऋषियों के द्वारा बनाये गये इस अमोघ क्रिया से लाभान्वित हों।
प्रस्तुत पुस्तक वेद विद्यालयों, संस्कृतविद्यालयों में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों के लिए जो प्रथमतः सन्ध्योपासन सीखते हैं उनके लिए अत्यन्त उपयोगी है साथ ही सभी द्विजातियों के लिए त्रिकाल सन्ध्योपासन के लिए आधारस्वरूप है, यह द्विजाति का संगृहणीय रत्न स्वरूप है।
ब्रह्मवर्चस्व सिद्धि की मांग को देखते हुए इस पर किया गया परिश्रम सार्थक रहा, प्रस्तुत द्वितीय संस्करण में जिज्ञासुओं के परामर्श से गायत्री तर्पण तथा संक्षिप्त सन्ध्योपासन भी इसमें प्रस्तुत किया गया, जिससे कम समय में भी सन्ध्योपासना की जा सके, साथ ही पूर्व संस्करण की अशुद्धियों को भी परिमार्जित किया गया है। विद्वानों तथा उपासकों से निवेदन है कि इस संस्करण में भी प्रकाशनगत त्रुटियों का सुझाव प्रदान करें जिससे अशुद्धि रहित प्रकाशन किया जा सके।
ब्रह्मवर्चस्व सिद्धि के प्रथम से पंचम संस्करण तक की मुद्रित प्रतियां शीघ्र ही आप सबके द्वारा स्वीकार की गई, अतः पुनः प्रकाशन की योजना बनी, पूर्व में संगणक प्रति सुरक्षित न होने से दोबारा टंकण कराया गया, इस बार इसे और अधिक परिवर्द्धित करने का प्रयास किया गया है। षष्ठ तथा सप्तम संस्करण की मुद्रित प्रतियाँ हाथों-हाथ स्वीकार कर ली गईं अतः अष्टम संस्करण और भी परिमार्जित करके निवेदित है। आशा है सुधी पाठक पूर्व की भाँति इस संस्करण का भी समादर करेंगे।
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