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Damar Tantra (डामर तन्त्र)

85.00

Author Ram Kumar Ray
Publisher Prachya Prakashan, Varanasi
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2004
ISBN -
Pages 105
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code RTP0135
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Description

डामर तन्त्र (Damar Tantra) डामर तन्त्र नागरी लिपि में सर्वप्रथम प्रस्तुत किया जा रहा है। इसका मूल पाठ बँगला लिपि में बहुत पहले प्रकाशित संस्करण पर आधारित है। बंगला लिपि में होने के कारण मूल पाठ में अनेक अशुद्धियाँ थीं जिन्हें वर्तमान संस्करण में यथाशक्ति सुधारने का प्रयास किया गया है।

विषयवस्तु की दृष्टि से बंगला लिपि में ही प्रकाशित “भूतडामर तन्त्र” तथा वर्तमान तन्त्र के आरम्भिक भागों में पर्याप्त साम्य है परन्तु ज्यों-ज्यों विषय आगे बढ़ता है दोनों का अन्तर स्पष्ट हो जाता है। इसलिये हमने इस तन्त्र को स्वतन्त्र रूप से प्रकाशित किया है। कालान्तर में हम भूतडामर तन्त्र भी हिन्दी अनुवाद के साथ प्रस्तुत करने का विचार रखते हैं।

वर्तमान डामर तन्त्र अनेक दृष्टियों से अपनी एक अलग विशिष्टता रखता है। इसमें षट्‌कर्मों का, विशेषतः वशीकरण का अत्यन्त विस्तार से वर्णन किया गया है। साथ ही अनेक ऐसे योगों का भी वर्णन है, जो कृषि कार्य में, धन-धान्य की समृद्धि प्राप्त करने में, रोगों के प्रशमन में तथा अनेक प्रकार की गृहवाधाओं के निराकरण में विशेष सहायक होंगे। अनेक ऐसे योग भी वर्णित हैं जिनके लिये किसी मन्त्र की साधना अवश्यक नहीं है। ये योग केवल साधना मात्र से सफल हो जाते हैं। इन दृष्टियों से यह तन्त्र अद्वितीय है।

तन्त्रशास्व के प्रति हिन्दू मात्र की श्रद्धा, आस्था और आदर के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं। तन्त्रोक्त मन्त्रों की साधना द्वारा कोई-कोई साधक कुछ अलौकिक कृत्य दिखाकर समय-समय पर लोगों को विस्मित करते रहते हैं। अनेक ऐसे तन्त्रज्ञ भी विद्यमान हैं जो बड़े-बड़े अद्भुत चमत्कार दिखाकर हमें चकित करते हैं। कलिकाल में तो तन्त्रोक्त कार्य ही मनोवांछित फल देने में समर्थ हो सकते हैं अन्य कुछ नहीं। इसी से तन्त्रशास्त्र का प्रचार आज न केवल भारत में ही बढ़ रहा है वरन् योरोप और अमेरिका जैसे देशों के लोग भी इसमें अत्यधिक रुचि लेने लगे हैं। यह अवश्य देखा जाता है कि हमारे देश में कुछ तथा- कथित पढ़े-लिखे लोग तन्वशास्त्र का नाम सुनते ही मुख फेर लेते हैं।परन्तुपाश्चात्य देशों में ऐसा नहीं है। वहाँ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वैज्ञानिकता की प्रधानता है। अतः वह लोग खुले दृष्टिकोण से तन्त्र और योग में अनुसन्धान कर रहे हैं तथा जो बात वैज्ञानिक कसौटी पर खरी उतरती है उसको वे ग्रहण करने में संकोच नहीं करते। अतः यह कथन अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है कि अपना ही प्राचीन शास्त्र अब हमें पाश्चात्य देशों से आयातित करना पड़ रहा है।

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