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Dharma Shastra Ka Itihas Set of 5 Vols. (धर्मशास्त्र का इतिहास 5 भागो में)

1,030.00

Author Dr. P.V. Kane
Publisher Uttar Pradesh Hindi Sansthan
Language Hindi
Edition 1966
ISBN 978-81-956803-3-7
Pages 3123
Cover Paper Back
Size 14 x 17 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code UPHS0048
Other Valume 1 & 2 Old and Rare Books

 

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Description

धर्मशास्त्र का इतिहास 5 भागो में (Dharma Shastra Ka Itihas Set of 5 Vols.) ‘व्यवहारमयूख’ के संस्करण के लिए सामग्री संकलित करते समय मेरे ध्यान में आया कि जिस प्रकार मैंने ‘साहित्यदर्पण’ के संस्करण में प्राक्कथन के रूप में “अलंकार साहित्य का इतिहास” नामक एक प्रकरण लिखा है, उसी पद्धति पर ‘व्यवहारमयूखु’ में मी एक प्रकरण संलग्न कर दूं, जो निश्चय ही धर्मशास्त्र के भारतीय छात्रों के लिए पूर्ण लाभप्रद होगा। इस दृष्टि से मैं जैसे-जैसे घर्मशास्त्र का अध्ययन करता गया, मुझे ऐसा दीख पड़ा कि सामग्री अत्यन्त विस्तृत एवं विशिष्ट है, उसे एक संक्षिप्त परिचय में आबद्ध करने से उसका उचित निरूपण न हो सकेगा; साथ ही उसकी प्रचुरता के समुचित परिज्ञान, सामाजिक मान्यताओं के अध्ययन, तुलनात्मक विधिशास्त्र तथा अन्य विविध शास्त्रों के लिए उसकी जो महत्ता है, उसका भी अपेक्षित प्रतिपादन न हो सकेगा। निदान, मैंने यह निश्चय किया कि स्वतन्त्र रूप से धर्मशास्त्र का एक इतिहास ही लिपिबद्ध करूँ। सर्वप्रथम, मैंने यह सोचा कि एक जिल्व में आदि काल से अब तक के धर्मशास्त्र के कालक्रम तथा विभिन्न प्रकरणों से युक्त ऐतिहासिक विकास के निरूपण से यह विषय पूर्ण हो जायगा। किन्तु धर्मशास्त्र में आनेवाले विविध विषयों के निरूपण के बिना यह ग्रन्य सांगोपांग नहीं माना जा सकता। इस विचार से इसमें वैदिक काल से लेकर आज तक के विधि-विधानों का वर्णन आवश्यक हो गया। भारतीय सामाजिक संस्थाओं में और सामान्यतः भारतीय इतिहास में जो क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं तथा भारतीय जनजीवन पर उनके जो प्रभाव पड़े हैं, वे बड़े गम्भीर हैं, चूंकि हमारे आचार्य उनके संबन्ध में अनोखी धारणाएँ रखते हैं, इसलिए मैं निकट भविष्य में इस पुस्तक का अनुवाद मातृभाषा मराठी एवं संस्कृत में करने का संकल्प इस आशा से करता हूँ कि उसे पढ़ने के बाद वे लोग अपने विचारों में स्वागत योग्य परिवर्तन का अनुभव करेंगे।

प्रस्तुत भाग में वर्णनीय विषयों के रूप में क्रमशः धर्म, घर्मशास्त्र, वर्ण, उनके कर्तव्य, अधिकार, अस्पृश्यता, दास-प्रथा, संस्कार, उपनयन, आश्रम, विवाह (सभी सामाजिक प्रश्नों के साथ), आह्निक आचार, पंच महायश, दान, प्रतिष्ठा, उत्सर्ग एवं गृह्य तथा श्रौत (वैदिक) यज्ञों का विवेचन किया गया है। ‘अगले भाग में राजशास्त्र, व्यवहार (विधि एवं प्रक्रिया), अशौच (जन्म और मृत्यु से उत्पन्न सूतक), श्राद्ध, प्रायश्चित्त, तीर्थ, व्रत, कात्र, शान्ति, घर्मशास्त्र पर मीमांसा आदि का प्रभाव, समय समय पर धर्मशास्त्र को परिवर्तित करनेवाली रीति एवं परम्परा और धर्मशास्त्र की भावी प्रगति एवं विकास प्रभूति प्रकरणों का विवेचन किया जायगा।

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